आलू विश्व की महत्वपूर्ण नकदी फसल है. यह कार्बोहाइट्रेड, प्रोटीन, विटामिन एवं खनिज तत्वों का अच्छा स्त्रोत होने का कारण दुनिया के करोडों लोगों के खाद्यान के विकल्प है. इसमें पोटेशियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है एवं सोडियम लवण की कम मात्रा में उपस्थिती होने के कारण उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए विशेष लाभकारी होता है. भारत आलू का पांचवा महत्वपूर्ण उत्पादक देश है. देश में आलू की खेती लगभग 14 00 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है एवं इसका उत्पादन 240 लाख टन है. उत्तर प्रदेश, प बंगाल, मध्य प्रदेश, बिहार, असम, कर्नाटक, गुजरात, एवं परियाणा देश के प्रमुख आलू उत्पादक राज्य है. देश के कुल उत्पादित आलू का 44 प्रतिशत आलू केवल उत्तर प्रदेश से आता है. मध्य प्रदेश में 35 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में आलू को उगाया जाता है और उत्पादकता लगभग 13.5 में टन प्रति हेक्टेयर है.
मिट्टी
आलू की खेती सूक्ष्म सिंचाई पद्धति के साथ सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है. इसके अधिकतम उत्पादन के लिए अच्छे जल निकास वाली भूरभूरी, कार्बनिक त्तव बुलई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है. बहुत ही भारी, पानी का निकास न हो पाने वाली चिकनी, क्षारीय मिट्टी आलू खेती के लिए अयोग्य है.
जलवायु
आलू ठंडी जयवायु की फसल है.अतः अच्छी वृद्धि के लिए 15 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूल है. साधारणतया फसल के प्रांरक्षिक वृद्धि के दौरान 22 से 25 डिग्री का तापमान चाहिए. 18 से 20 सेल्सियस तापमान एंव छोटा दिन होना लाभकारी है. अधिक लतापमान से कंद की वृद्धि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है.
किस्में
कुफरी बहार, कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी जवाहर, सतलज, कुफरी सूर्या, कुफरी सिंदूरी, कुफरी ज्योंति, चिप्सोना -1, चिप्सोना- 2, बादशाह आदि.
खेत की तैयारी
मिट्टी पलटाऊ हल से खेत की एक गहरी जुताई और देशी हल से 2 से 3 जुताई करें. जुताई से पूर्व खेत में 8 से 10 टन एकड़ सड़ी गोबर की खाद एवं कपोस्ट अच्छी तरह से मिला दीजीये
जैन ड्रिप सिंचाई पद्धति
आलू में जैन ड्रिप सिंचाई पद्धति द्वारा पौधों की जड़ों के समीप, कम दबाव से, लंबे समय तक बूंद-बूंद पानी पहुंचाया जाता है. यह बहुत की आसान एवं लाभप्रद सिंचाई पद्धति है. इस पद्धति से अधिकतम उत्पादन के लिए ऊंची उठी क्यारियों की सिफारिश की जाती है. ड्रिप सिंचाई के लिए जे-टर्बो अक्यूरा, जे-टर्बोलाईन, टर्बोलाइन पी, सी, जे टर्बो ब्लिम एवं चेंपीन ड्रिप टेप उपलब्ध है. पानी के स्त्रोत, गुणवत्ता के अनुसार सेड़ फिल्टर, स्क्रीन फिल्टर का चयन करें.
रेनपोर्ट स्रिपलंकर पद्धति
आलू की जड़े उथली होती है, इसीलिए आलू में सिंचाई के लिए रेनपोर्ट स्प्रिकलर्स उत्तम विधि है. स्प्रिकलर्स को जमीन से 1 मीटर ऊपर लोह की छड़ के सहारे अथवा बांस के टुकड़ों के सहारे पर लगाते है.
जैन ड्रिप सिंचाई पद्धति
आलू में जैन ड्रिप सिंचाई पद्धति द्वारा पौधों की जड़ों के समीप, कम दबाव से, लंबे समय तक बूंद-बूंद पानी पहुंचाया जाता है. यह बहुत की आसान एवं लाभप्रद सिंचाई पद्धति है. इस पद्धति से अधिकतम उत्पादन के लिए ऊंची उठी क्यारियों की सिफारिश की जाती है. ड्रिप सिंचाई के लिए जे-टर्बो अक्यूरा, जे-टर्बोलाईन, टर्बोलाइन पी, सी, जे टर्बो ब्लिम एवं चेंपीन ड्रिप टेप उपलब्ध है. पानी के स्त्रोत, गुणवत्ता के अनुसार सेड़ फिल्टर, स्क्रीन फिल्टर का चयन करें.
रेनपोर्ट स्रिपलंकर पद्धति
आलू की जड़े उथली होती है, इसीलिए आलू में सिंचाई के लिए रेनपोर्ट स्प्रिकलर्स उत्तम विधि है. स्प्रिकलर्स को जमीन से 1 मीटर ऊपर लोह की छड़ के सहारे अथवा बांस के टुकड़ों के सहारे पर लगाते है.