कहते हैं अगर कुछ कर दिखाने का जज्बा मन में हो, हौसले बुलंद हो और मेहनत की लौह में जलने की क्षमता हो तो इंसान अपने जीवन के कठिन काम को आसान बना सकता है. ऐसी ही एक कहानी मुदरै की रहने वाली 54 वर्ष की महिला पी. भुवनेश्वरी की है.
पी. भुवनेश्वरी ने अपनी मेहनत के बल पर खाली जमीन पर ऑर्गेनिक खेती से लाखों रुपए कमा रही हैं और आज के समय में वह एक सफल किसान है. ये सब उनकी सालों का मेहनत है.
पी. भुवनेश्वरी का प्रारंभिक जीवन
पी. भुवनेश्वरी का जन्म तमिलनाडु के तंजावुर जिले में स्थित कल्याणा दई गांव में किसान परिवार में हुआ था. पी. भुवनेश्वरी जमीन से जुड़ी महिला है, जो प्रकृति की गोद में खेल-कूदकर बढ़ी हुई.
पी. भुवनेश्वरी का कहना है कि उनके गांव में सभी तरह के फल और सब्जियां आसानी से प्राप्त हो जाती है. इनका यह भी कहना है कि जब रात के समय मच्छर सोने नहीं देते थे, तो वह नोची के पत्तों को तोड़कर सोते वक्त अपने चारों तरफ बिखेर देते थे. जिससे मच्छर उन्हें परेशान नहीं करते थे. यह तरीका किसी भी तरह का नुकसान दायक नहीं होता है. पी. भुवनेश्वरी का यह भी कहना है कि परिवार के साथ वह भी खेत पर जाती है और कृषि संबंधित सभी काम को ध्यान से देखती और समझती थी. जिससे उनकी खेती-बाड़ी में रूचि और अधिक बढ़ती गई.
ऐसे बदली पी. भुवनेश्वरी की जिंदगी
पी. भुवनेश्वरी शादी करने के मुदैर के पुदुकोट्टई करूप्पयुरानी गांव चली गई. जहां पर उन्हें अपने खेती की रुचि को बढ़ाने के लिए शौकिया तौर पर फूल लगाना शुरू किया. इसके बाद पी. भुवनेश्वरी ने पूरे तरह से खेती करने का फैसला लिया, तो उनके समक्ष दो लक्ष्य तय किए. एक कीटनाशकों का उपयोग किए बिना और दूसरा चावल की देसी किस्मों का सही से फिर से उत्पादन करना.
इन सबके लिए पी. भुवनेश्वरी ने अपने परिवार से लगभग 10 एकड़ के खेत में से 1.5 एकड़ खाली जमीन मांगी, जिसमें वह प्राकृतिक रूप से खेती कर सकें. परिवार वाले खेती करने के लिए जमीन देने के लिए तो सहमत थे, लेकिन बिना कीटनाशक के उपयोग से खेती करने के इस निर्णय पर सहमत नहीं थे. यहां तक की खेत में काम करने वाले मजदूरों को भी उनके इस तरीके के फैसले पर भरोसा नहीं था, लेकिन भुवनेश्वरी ने किसी की न सुनकर अपने तरीके से खेती करना का फैसला किया. उन्हें यकीन था कि वह पूरी तरह से जैविक खेती करने में सफल रहेंगी. उन्होंने अपने अनुभव के साथ बिना किसी के सहारे खेती करने का फैसला कर लिया. फिर क्या था, यहीं फैसला उनकी जिंदगी में एक बड़े बदलाव का कारण बन गया.
जैविक खेती के लिए ट्रेनिंग भी ली
पी. भुवनेश्वरी प्राकृतिक रूप से उगाई जाने वाली सब्जियों, अनाज और फलों के लिए एक आसान तरीका चाहती थीं, इसलिए उन्होंने साल 2013 में जैविक खेती का प्रयोग शुरू किया और इस खेती के बारे में अधिक जानने के लिए करूर करूर स्थित वनगम नम्मलवर इकोलोजिकल फाउंडेशन (Vanagam Nammalvar Ecological Foundation, Karur) से संपर्क किया. भुवनेश्वरी कहती है कि, फाउंडेशन ने उनका जैविक खेती करने में बेहद मदद की है. इनकी सहायता से ही वह ऑर्गेनिक खेती करने में सफल रह पाई.
कड़ी मेहनत रंग लाई
समय के साथ-साथ उनकी कड़ी मेहनत सफल होने लगी और जो लोग पहले उनके तरीके पर भरोसा नहीं करते थे. वे सब भी अब उनके इस तरीके पर भरोसा करने लगें.आपको बता दें कि आज से समय में भुवनेश्वरी पूरे 10 एकड़ की खेती में बिना किसी केमिकल व कीटनाशकों के प्रयोग से खेती करती है और साथ ही उनके खेत में एक अच्छी फसल लहलहाती है. कई लोग अब उनके तरीके से की गई खेती के बारे में जानने के लिए उनके खेत में आते है और भुवनेश्वरी उनके पूरी तरह से रसायन और कीटनाशक के बिना खेती करने के बारे में सुझाव देती है और दूसरे किसानों को भी अपने इस तरीके से खेती करने के लिए प्रेरित करती रहती है.
किसानों की मानसिकता में बदलाव जरूरी
पी. भुवनेश्वरी का कहना है कि देश के किसानों को अपनी खेती में हानिकारक रसायनों से छुटकारा पाने के लिए सबसे पहले अपनी सोच को बदलना होगा. उन्हें इस बात को समझना होगा कि केमिकल से की जाने वाली फसल एकमात्र तरीका नहीं है. बल्कि पारंपरिक तरीके से भी एक अच्छी फसल तैयार की जा सकती है. अपने खेत में जितना हो सकते गाय के गोबर और गन्ने की गीली घास का उपयोग करें. इसके अलावा आप अपने खेत में स्वदेशी वस्तुओं का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. जैसे कि नीम का तेल या कीट-विकर्षक पौधे, प्रकृति के पास सभी तरह का हल है. बस उसे आप सब को समझना होगा.