देश कृषि को कम आय वाला व्यवसाय माना जाता है. यही वजह है कि ग्रामीण क्षेत्रों के लोग खेती को छोड़कर शहरों की और रुख कर रहे हैं. लेकिन इसी के उलट कुछ पढ़े लिखे युवा अच्छी सैलरी वाली नौकरी छोड़कर आधुनिक कृषि के जरिए लाखों-करोडो सालाना कमा रहे हैं. और शहरों की चकाचौंध वाली जिंदगी छोड़कर गावों की और रुख कर रहे हैं. ऐसे ही एक व्यक्ति हैं सचिन, जिन्होंने शहरी जिंदगी छोड़कर गाँव में खेती करने को ही अपना कर्म बना लिया. बिलासपुर जिले के मेधपुर गांव में रहने वाले वसंत राव काले जीवन भर सरकारी नौकरी करते रहे. सेवानिवृति के बाद वो खेती के व्यवसाय से जुड़ना चाहते थे. खेती लंबे समय से उनका शौक रहा है. हालांकि खेती के पेशे में किसानों के समक्ष आने वाली चुनौतियों को सोच कर कई बार वो चिंतित हो उठते और खेती के साथ उनके जुड़ने का सिलसिला बैठ नहीं पा रहा था.
वसंत राव का पोता सचिन अक्सर अपने दादा से मिलने उनके गांव आता था और उनके द्वारा सुनाई गई खेती-किसानी की कहानी उसे आकर्षित करती थी. हालांकि भारत में अन्य मध्यवर्गीय परिवार की तरह ही उनके अभिभावक भी उन्हें डॉक्टर या इंजीनियर बनाना चाहते थे. सचिन को भी पढ़ना अच्छा लगता था, इसलिए उन्होंने आरईसी नागपुर से सन 2000 में मेक्निकल इंजीनियरिंग में अपनी पढ़ाई पूरी कर अपने अभिभावकों के इच्छा का सम्मान किया.
पढ़ाई में विलक्षण सचिन ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद एमबीए (फाइनेंस) का भी कोर्स पूरा किया और बाद में वो लॉ ग्रेजुएट भी हुए. पढ़ाई पूरी करने के बाद सचिन ने पॉवर प्लांट से अपने पेशेवर जीवन की शुरूआत की सालों साल मेहनत करने के बाद अपने कैरियर में शीर्ष पर पहुंचे.
साल 2007 में सचिन ने डेवलेपमेंटल इकॉनोमिक्स में पीएचडी की पढ़ाई भी शुरू की. ठीक इसी वक्त उनके मन में खुद का उद्यम शुरू करने का विचार आया. अपने कैरियर में लगातार आगे बढ़ रहे सचिन के मन में हमेशा ये सवाल उठता रहा कि किसी और के लिए काम करने की बजाए क्यों न खुद के लिए काम किया जाए. अपने फार्म में बैठे सचिन बताते हैं, ” उद्यम के तौर पर एक विकल्प के बारे में सोचते हुए मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि खाद्य उद्योग सबसे महत्वपूर्ण है हालांकि हम सबकी तरफ से ये सबसे ज्यादा उपेक्षित भी रहा है. ऐसा सोचते हुए खेती के बारे में दादा जी की बातों का मुझे ख्याल आया “.सचिन के दादा जी उनसे अक्सर एक बात कहते थे कि कैसे एक वक्त में एक व्यक्ति बगैर पैसा कमाए जिंदा रह सकता है लेकिन बगैर भोजन के जिंदा नहीं रह सकता. इसलिए अगर आप अपना भोजन खुद उपजाना जानते हैं आप किसी भी परिस्थिति में जीवित रह सकते हैं. वो अक्सर सचिन को अपने 25 एकड़ के पैतृक खेतों में लेकर जाते और उससे इस पूरे खेत को एक दिन फार्म के रूप में तैयार करने के अपनी इच्छा का जिक्र करते थे.
दादा जी से मिले अनेकों सीख में से सचिन ने श्रम की उपलब्धता पर बताई गई उनकी बातों पर अपना ध्यान केंद्रित किया. सचिन कहते हैं, “मेरे दादा जी खेती को एक पेशे के तौर पर अपनाने के प्रति मुझे अक्सर प्रोत्साहित करते थे लेकिन साथ ही साथ वो कहते थे कि ये चुनौतिपूर्ण पेशा है और इसकी सबसे बड़ी समस्या श्रमिकों की है “.
सचिन ने इस मुद्दे पर सोचना शुरू किया कि किस तरह से वो किसानों को लाभ दे सकते हैं. हालांकि वो ये जानते थे कि अगर उन्हें कृषि उद्यम की शुरूआत करनी है तो पहले उन्हें न केवल खेती सीखनी होगी बल्कि कृषि से अधिकतम लाभ अर्जित करने का उदाहरण भी सामने रखना होगा. सचिन ने गुड़गांव में बीता रहे अपने आलीशान जीवन को अलविदा कह कर मेधापुर में किसानों का जीवन बिताने निकल पड़े. सचिव गुड़गांव में Punj Llyod में मैनेजर थे और उनकी वार्षिक आय 24 लाख रुपये थी.
उन चुनौतियों के बारे में सचिन कहते हैं, “मेरे लिए उस वक्त हर चीज एक चुनौती की तरह थी क्योंकि खेती किसानी के बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता था. मिट्टी को समतल करने से लेकर बुआई तक मुझे हर चीज सीखना था”. सचिन ने 15 सालों में अपने प्रोविडंड फंड में जमा किए गए सारे पैसे को खेती में डाल दिया और ये तय किया कि अगर उन्हें खेती में सफलता नहीं मिलती है तो वो कॉरपोरेट जीवन में वापिस लौट जाएंगे. लेकिन उनकी कठिन मेहनत, लगन और कौशल ने चमत्कार दिखाया और उन्होंने ऐसा मॉडल विकसित करने में सफलता पाई जहां उनका फॉर्म की उपयोगिता सालों भर थी जिससे उन्हें अधिकतम लाभ मिल रहा था. अब उनका अगला लक्ष्य था कि उन्होंने जो कुछ भी सीखा था उससे किसानों को लाभ दिला सकें. उन्होंने कांट्रेक्ट फार्मिंग के बारे में जानकारियां जुटाना शुरू की और उन्हें ये विश्वास हो गया कि इसके जरिए किसानों को आजीविका का स्थायी उपलब्ध करा कर वो उनकी मदद कर सकते हैं.
इस तरह से 2014 में सचिन ने अपनी कंपनी इनोवेटिव एग्रीलाइफ सोल्युशंस प्राइवेट लिमिटेड की नींव डाली जो कांट्रेक्ट फार्मिंग मॉडल के जरिए किसानों की मदद करता है. सचिन ने बिलासपुर स्थित कृषि महाविधालय से परामर्शदाताओं को भी अपने साथ जोड़ा ताकि किसानों को नई प्रौद्योगिकी और सही तरीके से खेती करना सिखाया जा सके. कांट्रेक्ट फार्मिंग का मूल ढांचा बहुत सरल और लाभकारी है.
कांट्रेक्ट फार्मिंग खरीददार और कृषि उत्पादक के बीच एक समझौते के तहत किया जाता है जिसमें समझौतों के शर्तों के मुताबिक कृषि उत्पादन किया जाता है. खरीददार किसान को खेती करने के लिए आवश्यक पूंजी या उससे जुड़ी हर जरूरत को पूरी करने में मदद करता है. बदले में किसान को खरीददार के सुझाव और उनकी प्रौद्योगिकी के अनुरूप फसल का उत्पादन करना होता है. फसल उत्पाद का न्यूनतम विक्रय मूल्य पूर्व निर्धारित होता है और बाजार मूल्य कम होने के बावजूद क्रेता उत्पादित फसल को उस पूर्व निर्धारित न्यूनतम मूल्य पर ही खरीदता है. अगर बाजार मूल्य ज्यादा हो तो किसान को लाभ का शेयर मिलता है – ऐसी व्यवस्था जिसमें खरीददार और किसान दोनों के लिए ही माहौल अनुकूल होता है.
36 वर्षीय सचिन कहते हैं, “शुरूआत के दो साल कठिन थे क्योंकि कोई भी एक जवान शहरी युवक को एक सत्तर वर्षीय किसान को खेती की तकनीक समझाने पर भरोसा नहीं करता था. लेकिन जब मैंने बारीकियों और वित्तीय परिस्थितियों को कागज पर समझाना शुरू किया धीरे धीरे लोगों ने रूचि लेनी शुरू की”. सचिन ने अपने 24 एकड़ में फैले फार्म में धान और मौसमी सब्जियों की खेती भी धीरे-धीरे शुरू की. शुरू के दिनों में उन्होंने देखा था कि वहां के किसान सिर्फ धान का उत्पादन लेते थे जो कि मात्र तीन चार महीनों की ही बात होती थी और बांकि के आठ महीने उनके खेत खाली रहते थे. फिर उन्होंने उस इलाके में खेती का वह मॉडल शुरू किया जिसमें धान की खेती समाप्त होने के बाद लोग वहां पर बांकि समय में मौसमी सब्जियों का उत्पादन ले सकें. किसान सचिन की खेती का मॉडल देखकर खुश हुए और धीरे-धीरे वे किसान सचिन के साझीदार बनने लगे
आज सचिन की कंपनी 200 एकड़ में फैले फार्म पर 137 खुशहाल किसानों की मदद कर रहे हैं जिसका सालाना टर्नओवर तकरीबन दो करोड़ रुपये का है. सचिन कहते हैं कि, “मैं उनकी जमीन नहीं खरीदता हूं जिससे कि जमीन पर उनका मालिकाना हक बना रहे. मैं सिर्फ उनके उत्पाद खरीदता हूं और सीधे रिटेलर को बेच देता हूं जिससे हमें अच्छी ठीक ठाक लाभ होता है. मैं अपने लाभ का कुछ हिस्सा उन किसानों के साथ भी साझा करता हूं”.
सचिन की पत्नी कल्याणी जिन्होंने संचार विषय में मास्टर डिग्री हासिल की है, कंपनी के वित्तीय हिसाब का ब्यौरा रखती हैं ये पूछने पर कि क्या वो शहरी जीवन को मिस करती हैं, वो कहती हैं, “हां हम मॉल और मेट्रो के सफर को मिस करते हैं लेकिन उससे ज्यादा हम साथ बिताए गए पलों का आनंद लेते हैं. जब सचिन अपने कॉरपोरेट नौकरी में थे तब वो महीने के बीस दिन सफर ही करते थे. इससे भी ज्यादा हम यहां मिल रही ताजा हवा का आनंद लेते हैं साथ ही शहर की तुलना में ताजा और पौष्टिक स्वास्थ्यवर्धक भोजन का भी आनंद लेते हैं”.
सचिन का ख्वाब है कि उनकी कंपनी एक दिन मूंबई स्टॉक एक्सचेंज में सूचिबद्ध होगी और खेती एवं किसानों को अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा से वो जोड़ सकेंगें. आज सचिन दूसरो के लिए एक प्रेरणा बन चुके है और अपने दादा की इच्छा को पूरा का रहे हैं.