Success Story of Natural Farmer Anil Kumar: हरियाणा के झज्जर जिले के ढाणा गांव के रहने वाले प्रगतिशील किसान अनिल कुमार ने अपनी मेहनत, समर्पण और प्राकृतिक खेती की पद्धतियों से न केवल अपनी खेती को सफल बनाया है, बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा स्रोत बने हैं. उनके अनुसार, प्राकृतिक खेती से उन्हें प्रति एकड़ 10 से 17 क्विंटल गेहूं की उपज मिलती है और इस गेहूं की कीमत 5000 रुपये प्रति क्विंटल तक मिलती है.
खास बात यह है कि अनिल कुमार के गेहूं में किसी भी प्रकार के केमिकल का उपयोग नहीं होता, जिसके कारण उनकी फसल की गुणवत्ता बहुत ही उच्च होती है. अगर वह इसे प्रोसेसिंग करके दलिया, आटा या सूजी बनाते हैं, तो यह 7000 रुपये प्रति क्विंटल तक या उससे अधिक कीमत पर बिक जाती है. अनिल कुमार की सफलता की कहानी प्राकृतिक खेती के प्रति उनके दृष्टिकोण और उनकी कठिन मेहनत का परिणाम है. ऐसे में आइए आज उनकी सफलता की कहानी के बारे में विस्तार से जानते हैं-
प्राकृतिक खेती की ओर रुख
प्रगतिशील किसान अनिल कुमार ने 2015 में प्राकृतिक खेती की शुरुआत की थी. उनके अनुसार, कृषि रसायनों का उपयोग न केवल मिट्टी की उर्वरता को कम करता है, बल्कि फसलों की गुणवत्ता और किसानों की सेहत पर भी नकारात्मक असर डालता है. इसीलिए उन्होंने प्राकृतिक तरीके से खेती करने का विचार किया.
प्राकृतिक खेती के सबसे महत्वपूर्ण तत्वों में से एक है देसी बीज. अनिल कुमार के अनुसार, "देसी बीज के बिना प्राकृतिक खेती संभव नहीं है." उन्होंने प्राकृतिक खेती में देसी किस्म के बीजों का इस्तेमाल शुरू किया और उनके परिणाम बहुत अच्छे रहे. इन बीजों ने न केवल उच्च गुणवत्ता वाली फसल दी, बल्कि कीमत भी अच्छी मिली.
प्राकृतिक खेती में प्रयोग
प्राकृतिक खेती में अनिल कुमार विभिन्न जैविक पदार्थों का उपयोग करते हैं. जीवामृत, घन जीवामृत, सरसों का खल, खट्टी लस्सी, उपले का पानी और गोबर खाद जैसे जैविक उर्वरकों का वह नियमित रूप से प्रयोग करते हैं. इनका उद्देश्य मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखना और फसलों की वृद्धि को बढ़ावा देना है.
इसके अलावा, उनका कहना है कि प्राकृतिक खेती में पानी का भी एक महत्वपूर्ण स्थान है. वह अपनी फसल को सिंचाई करते वक्त क्यारी बनाकर संतुलित मात्रा में पानी देते हैं, जिससे पानी की बर्बादी नहीं होती और फसल को सही मात्रा में पोषण मिलता है.
गेहूं की बुवाई का तरीका
प्रगतिशील किसान अनिल कुमार की गेहूं की खेती में एक विशेष तरीका है. वह रबी सीजन में अपनी अधिकांश जमीन पर गेहूं की खेती करते हैं. गेहूं की बुवाई के लिए वह पहले खेत में सिंचाई करते हैं. इसके बाद, जब मिट्टी की उपरी परत में नमी थोड़ी कम हो जाती है, तो वह बुवाई करते हैं. उनके अनुसार, यह तरीका इस लिए फायदेमंद है क्योंकि अनावश्यक खरपतवार इस तरीके से उगते नहीं हैं और गेहूं की जमवार भी अच्छी होती है.
गेहूं की बुवाई के बाद, वह अपनी फसल की देखभाल में भी कोई कसर नहीं छोड़ते. वह समय-समय पर फसल का निरीक्षण करते हैं और किसी भी प्रकार के रोग या कीटों के प्रभाव को रोकने के लिए जैविक तरीकों का प्रयोग करते हैं. उनका यह तरीका न केवल खेती के खर्चे को कम करता है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी बहुत फायदेमंद है.
मेहनत और लागत
प्राकृतिक खेती में अनिल कुमार का कहना है कि मेहनत थोड़ी अधिक लगती है, लेकिन लागत बहुत कम होती है. वह अपने खेतों में केमिकल्स का इस्तेमाल नहीं करते और सभी खाद और उर्वरक जैविक तरीके से तैयार करते हैं, जिससे उनकी खेती की लागत बहुत कम रहती है. प्राकृतिक खेती के इस तरीके से न केवल मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है, बल्कि पर्यावरण पर भी इसका सकारात्मक असर पड़ता है. उनके अनुसार, "प्राकृतिक खेती में मेहनत अधिक होती है, लेकिन यह ज्यादा लाभकारी है, क्योंकि इसमें लागत कम आती है और फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है."
अनिल कुमार ने यह भी बताया कि प्राकृतिक खेती करने के बावजूद उनके पास अधिक लाभ आता है क्योंकि रासायनिक खेती में होने वाली लागत से बचत होती है. उनके पास 5 एकड़ जमीन है, और इस जमीन पर वह प्राकृतिक खेती के साथ-साथ अपनी फसलों की प्रोसेसिंग भी करते हैं. जब वह गेहूं को आटा, दलिया या सूजी में परिवर्तित करते हैं, तो उन्हें इनकी बिक्री से अधिक लाभ मिलता है.
सफलता की ओर कदम
अनिल कुमार की सफलता का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि उन्होंने अपने क्षेत्र में प्राकृतिक खेती की अवधारणा को फैलाने का काम भी किया है. वह समय-समय पर किसानों को अपनी खेती के तरीकों के बारे में बताते हैं और उन्हें प्राकृतिक खेती की ओर प्रोत्साहित करते हैं.
वह अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहते हैं, "प्राकृतिक खेती से हम न केवल अपनी सेहत को बेहतर बना सकते हैं, बल्कि पर्यावरण को भी बचा सकते हैं. यह खेती का सबसे स्थायी तरीका है." अनिल कुमार की सफलता में उनके प्रयोगों का बड़ा योगदान रहा है. उन्होंने हर नई तकनीक को अपनाया और उसे अपने खेतों में आजमाया. हर एक प्रयोग के साथ उन्हें नई जानकारी मिली, जो उनकी खेती को और अधिक लाभकारी बनाती गई.
प्रगतिशील किसान अनिल कुमार का इंटरव्यू देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें