Success Story of Lemon Man Anand Mishra: उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के कचनावा गांव के रहने वाले प्रगतिशील किसान आनंद मिश्रा आज ‘लेमन मैन’ के नाम से जाने जाते हैं. उनकी कहानी कई लोगों के लिए प्रेरणा है जो खेती-बागवानी में अपना भविष्य देख रहे हैं. आनंद मिश्रा ने शहर में बैचलर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई पूरी की और इसके बाद एक मल्टीनेशनल कंपनी में 13 साल तक नौकरी की. लेकिन साल 2016 में उन्होंने नौकरी छोड़कर खेती का रास्ता अपनाने का साहस किया. अब देशभर के नौ राज्यों के किसान उनसे जुड़ चुके हैं, जिनको वे नींबू की खेती (Lemon Farming) की ट्रेनिंग और पौध सप्लाई करते हैं.
लेमन मैन आनंद मिश्रा की खेती का मॉडल अपना कर किसान एक एकड़ से लगभग 5 लाख रुपये तक का मुनाफा कमा रहे हैं. ऐसे में आइए इस प्रगतिशील की सफलता की कहानी (Success Story of a Progressive Farmer) विस्तार से जानते हैं-
खेती का शौक और शुरुआत
कृषि जागरण से बातचीत में प्रगतिशील किसान आनंद मिश्रा ने बताया कि उनका बागवानी के प्रति रुझान बचपन से था, लेकिन नौकरी के दौरान वह अपने इस शौक को पूरा नहीं कर पा रहे थे. जब उन्होंने नौकरी छोड़ गांव आने का फैसला किया, तो बागवानी में उनकी रुचि और बढ़ गई. शुरुआत में वे उलझन में थे कि कौन-सी फसल या बागवानी करें. इसके लिए उन्होंने कई जिलों का भ्रमण किया, खेती के बारे में जानकारियां जुटाईं, और रिसर्च किया.
आखिरकार उन्हें लगा कि बागवानी में अच्छी कमाई हो सकती है. हालांकि, यूपी में केले, अमरूद और आंवले जैसे फलों की खेती प्रचलित थी, लेकिन नींबू की खेती (Lemon Farming) ज्यादा नहीं होती थी. उन्होंने इस कमी को अवसर में बदलने का सोचा और थाई प्रजाति के नींबू की खेती (Lemon Farming) का फैसला किया. इसके लिए उन्होंने नींबू की उपयोगिता और उत्पादन के बारे में भी जानकारी प्राप्त की. फिर नींबू के पौधे खरीदे और उनकी बागवानी शुरू की.
नींबू की खेती में खासियत
आनंद मिश्रा के अनुसार, जहां गेहूं, धान और गन्ना जैसी फसलों की खेती होती है, वहां नींबू की खेती (Lemon Farming) भी आसानी से की जा सकती है. अगर मिट्टी कम उपजाऊ हो, तो ढैंचा और सनई की खेती करके उसे हरी खाद के तौर पर मिट्टी में मिलाया जा सकता है. नींबू के पौधे जुलाई में लगाए जा सकते हैं, और पौधे के बीच की दूरी 10 फिट लंबी और 20 फिट चौड़ी होनी चाहिए. एक एकड़ में लगभग 200 पौधे लगाए जा सकते हैं.
नींबू का एक पौधा लगभग 30 साल तक अच्छा फल देता है. हालांकि कुछ पौधे तीन साल में ही फल देना शुरू कर देते हैं, लेकिन बेहतर विकास के लिए तीन साल बाद ही फल लेना सही होता है. 3 साल बाद एक पौधा 20 से 25 किलो फल देने लगता है, और 7 साल बाद एक पौधा लगभग एक क्विंटल उत्पादन दे सकता है. बाजार में इसकी कीमत 30 रुपये से लेकर 100 रुपये प्रति किलो तक होती है.
आनंद मिश्रा ने अपने बाग में कागजी रसभरी, शाही शरबती, बालाजी, एनआरसीसी 7 और 8, पीडीकेवी बहार, और थाई नींबू जैसी सात से आठ किस्मों को लगाया है. वह सलाह देते हैं कि किसानों को तीन से अधिक किस्में जरूर लगानी चाहिए ताकि पूरे साल उन्हें फल मिलते रहें. उन्होंने कहा कि ग्राफ्टेड नींबू के पौधे नहीं लगाने चाहिए क्योंकि ग्राफ्टेड पौधों में फल बड़े हो जाते हैं, जो नींबू के लिए आवश्यक नहीं है.
सालभर रहती है नींबू की मांग
नींबू की मांग पूरे साल रहती है और इसका भंडारण अन्य फलों की तुलना में लंबे समय तक किया जा सकता है. आनंद मिश्रा का कहना है कि अब व्यापारी खुद गांव आकर उनसे नींबू खरीद लेते हैं.
सफलता के रास्ते में चुनौतियां
आनंद मिश्रा के लिए यह राह आसान नहीं थी. जब उन्होंने मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ी और बागवानी में कदम रखा, तो लोग उनका मजाक उड़ाने लगे. यहां तक कि उनके परिवार वालों ने भी विरोध किया, क्योंकि उन्हें लगा कि एसी के कमरे में काम करने वाला युवक बागवानी में सफल नहीं हो पाएगा. लेकिन ‘आनंद’ ने हार नहीं मानी. वे मानते हैं कि अगर इंसान की सोच बड़ी हो और समाज से हटकर काम करने का जुनून हो, तो सफलता मिलनी तय है.
नींबू की खेती में लागत और मुनाफा (Benefit of Lemon Farming)
आनंद मिश्रा बताते हैं कि वह खुद 2 एकड़ जमीन पर नींबू की खेती (Lemon Farming) करते हैं. लेकिन देश के 9 राज्यों के किसान उनसे जुड़े हैं. ये उन्हें खेती की ट्रेनिंग और पौध सप्लाई करते हैं. वही, उनकी नींबू की खेती में प्रति एकड़ लागत 60-70 हजार रुपये तक आती है, लेकिन एक एकड़ से लगभग 5 लाख रुपये तक का मुनाफा हो जाता है. उन्होंने बताया कि शुरुआती लागत ज्यादा नहीं होती है और एक-दो साल में ही वसूल हो जाती है. इसके बाद से लागत 70 से 80 प्रतिशत तक कम हो जाती है.
किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत
आनंद मिश्रा के जुनून ने उन्हें देशभर में ‘लेमन मैन’ के नाम से प्रसिद्ध कर दिया है. आनंद मिश्रा का कहना है कि वे बागवानी में सिर्फ आजीविका का साधन नहीं देख रहे, बल्कि समाज में कृषि और बागवानी को लेकर जो संकीर्ण सोच है, उसे बदलना चाहते हैं. उनके अनुसार, खेती में मेहनत तो है लेकिन इससे आत्मसंतोष और सफलता दोनों मिलती हैं.
ऐसे में हम यह कह सकते हैं कि प्रगतिशील किसान आनंद मिश्रा की कहानी उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है जो कृषि क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहते हैं. उन्होंने साबित कर दिया कि अगर इंसान में मेहनत और जुनून हो, तो किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल की जा सकती है. नौकरी छोड़कर खेती की ओर उनका रुख न केवल उनके लिए बल्कि कई अन्य किसानों के लिए भी एक मिसाल बन गया है.