Success Story: आज के समय में किसान खेती-किसानी/Farming करके हजारों-लाखों की कमाई कर रहे हैं. इसी क्रम में आज हम आपको ऐसे एक सफल किसान के बारे में बताएंगे, जिन्होंने खेती-बाड़ी से आज अपनी एक अलग पहचान बना ली है. दरअसल, जिस किसान की हम बात कर रहे हैं, वह महाराष्ट्र के सफल किसान अजय जाधव है. बता दें कि अजय जाधव अपने खेतों में उगाए गए गन्ने से विशेष गुड़ बनाकर 200 रुपये प्रति किलोग्राम मूल्य पर बेचते हैं जिसकी गुणवत्ता के कारण उसकी मांग बढ़ रही है. एक व्हाट्सएप समूह के द्वारा उन्हें अपने कृषि उत्पादों के लिए अमेरिका से ग्राहक मिल रहे हैं, जिससे वे एक लाख रुपये तक का मुनाफा कमाने में सक्षम हैं.
वही, किसान अजय जाधव कहते हैं “यह एक आकर्षक व्यवसाय है और मैं यहां इस मिथक को तोड़ने के लिए आया हूँ कि कृषि अन्य व्यवसायों की तरह लाभदायक नहीं हो सकती और अब तक मैं इसे सिद्ध करने में सफल रहा हूं.”
10 एकड़ खेत में किया जैविक खेती का अभ्यास
आगे उन्होंने कहा कि 90 के दशक के आरंभ में कोई भी व्यक्ति धन कमाने के लिए खेती के व्यवसाय की और नहीं जाना चाहता था क्योंकि यह क्षेत्र नियमों और प्रतिबंधों से भरा हुआ था. उस समय के किसान कुछ वाणिज्यिक फसलें उगाने के लिए पूरी तरह से रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर निर्भर रहते थे और अच्छी पैदावार पाने के लिए साथ ही अपनी जरूरतों को भी पूरा करने के लिए संघर्ष करते थे. अजय जाधव और उनके भाई जैविक खेती के प्रचलन में आने से बहुत पहले से ही वे अपनी 10 एकड़ भूमि पर इसका अभ्यास कर रहे थे.
जाधव बताते हैं, ''हम प्रगतिशील किसान थे. हमने पानी का कुशलतापूर्वक उपयोग करने के लिए ड्रिप का उपयोग किया. हम अपनी उपज विदेशों में निर्यात कर रहे थे और हर वर्ष लगभग 5-10 लाख रुपये कमा रहे थे. लेकिन फिर सरकारी नियमों के कारण सब कुछ थम सा गया.' 2005 में जब उनके साझेदार बड़े भाई का निधन हो गया. तब अजय जाधव के लिए जैसे दुनिया बिखर गई. जैविक खेती के साथ-साथ, महाराष्ट्र के खेड़ा गांव के इन दो भाइयों ने सफलतापूर्वक डेयरी फार्म भी चलाया, जिसमें 200% मुनाफा हुआ. अजय जाधव आगे कहते हैं “बहुत से लोग बेहतर अवसरों की तलाश में गांवों से पलायन करते हैं लेकिन हम खेती-किसानी में बहुत खुश थे और अच्छी कमाई कर रहे थे. साल 2005 में भाई के निधन के बाद मैंने व्यवसाय छोड़ दिया.'' जाधव में व्यवसाय के प्रति अद्भुत समझ है, लेकिन व्यक्तिगत हानि और सरकारी नियमों ने उन्हें 2010 तक आगे बढ़ने से रोके रखा. जैविक खेती के कारण उनकी लागत भी बढ़ती रही.
जाधव ने प्राकृतिक खेती का लिया प्रशिक्षण
साल 2010 में किसान अजय जाधव को एक ऐसी सफलता मिली जिसे उसका काफी समय से इंतजार था. जाधव को 2010 में आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण लिया. बता दें कि प्राकृतिक खेती की विधि, प्राचीन ज्ञान पर आधारित है, जो कृषि के लिए प्रकृति में पहले से विद्यमान सहजीवी संबंधों का उपयोग करती है. आर्ट ऑफ लिविंग, प्राकृतिक खेती परियोजना का नेतृत्व करता है. यह परियोजना वेदों और हमारे प्राचीन ऋषियों के इस ज्ञान की गहरी समझ पर आधारित है कि प्रकृति पारस्परिक संबंधों के माध्यम से जीवन को सरल बनाती है.
इस सहजीवी संबंध का एक उदाहरण दालों और अनाजों को एक साथ उगाना है. दालों की जड़ों में मौजूद सूक्ष्म जीव मिट्टी में वायुमंडलीय नाइट्रोजन प्रदान करते हैं, जो अनाज की फसलों के पनपने के लिए आवश्यक पोषक तत्व है. देशी गाय के गोबर और मूत्र से जैसे कि जैव मिश्रण में आवश्यक और अच्छे बैक्टीरिया होते हैं जो फसलों के लिए मिट्टी में मौजूद ज़रूरी पोषक तत्वों को आत्मसात करने में सहायता करते हैं. इससे सूक्ष्म जीव लंबे समय तक जीवित रहते हैं. आम तौर पर, किसान आरंभ में अपनी खेती की शैली को बदलने में झिझकते हैं क्योंकि यह मिथक है कि प्राकृतिक खेती पर्याप्त उपज नहीं दे सकती है और परिणाम दिखाने में लंबा समय लगता है, जिससे नुकसान हो सकता है. लेकिन जाधव के लिए, प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ने का यह निर्णय बिना अधिक सोचे-समझे लिया गया निर्णय था. जाधव ने आर्ट ऑफ लिविंग से प्राप्त प्रशिक्षण से घर पर प्राकृतिक इनपुट बनाना सीखा. "मैं पहले भी जैविक खेती कर रहा था लेकिन प्राकृतिक खेती की विधि/ Natural Farming Method अपनाने के बाद मेरी लागत काफी कम हो गई." अब उन्हें अपने इनपुट पर केवल 5000 रुपये खर्च करने पड़ते हैं.
प्राकृतिक खेती से आय हुई डबल
प्राकृतिक खेती में सफलता के साथ-साथ जाधव की व्यावसायिक कुशलता कुछ ऐसी है जो कई किसानों को प्रेरित कर सकती है जो इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि उन्हें प्राकृतिक खेती/Natural Farming को अपनाना चाहिए या नहीं. 'प्राकृतिक खेती/Prakritik kheti से मेरी आय सीधे दोगुनी हो गई. मेरे पास 10 एकड़ जमीन है और मैं 180 प्रकार की अलग-अलग फसलें उगाता हूँ. गुड़ मेरे क्षेत्र से निकलने वाला प्रमुख उत्पाद बन गया है. इसका स्वाद अच्छा होता है और जैसे-जैसे यह पुराना होता जाता है यह बेहतर होता जाता है. लोग इसे 200 रुपये प्रति किलोग्राम में भी खरीदते हैं, जहाँ बाजार दर 40 रुपये प्रति किलोग्राम है. मेरा गुड़ एक साल बाद भी काला नहीं पड़ता.” उनकी सबसे बड़ी सीख यह है, 'हर किसान को यह पता होना चाहिए कि उनके उत्पाद का मूल्य क्या होना चाहिए ताकि वे कभी खेती छोड़ने के बारे में न सोचें.' प्राकृतिक खेती और बहु-फसली विधि की सहायता से जाधव ने 180 से अधिक फसलों वाला एक आदर्श खेत बनाया है. उन्हें लगा कि यह ज्ञान केवल उनके पास ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसे अन्य किसानों के साथ साझा करने की भी आवश्यकता है.
जाधव ने अपने फार्म को एक मॉडल फार्म/ Model Farm में बदल दिया है, जहां कोई भी सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक जा सकता है और उनके द्वारा उपयोग में लायी जा रही विधियों के बारे में जान सकता है. वह अब आर्ट ऑफ लिविंग/Art of Living के प्राकृतिक खेती प्रशिक्षक भी हैं. अब तक 5 लाख से अधिक किसान उनके मॉडल फार्म को देखने आ चुके हैं, जहाँ वह उन्हें उपज की पैकेजिंग प्रक्रिया और ब्रांडिंग का प्रशिक्षण भी देते हैं. इससे उन्हें विश्वसनीयता बनाने में मदद मिली है और अब सैकड़ों परिवार उनसे लाखों रुपये की स्वस्थ, पौष्टिक और प्राकृतिक रूप से उगाई गई सब्जियां खरीदते हैं.
जाधव के पास 300 अलग प्रकार के हैं देसी बीज
जाधव के पास अपने खेत में 200 प्रकार की सब्जियां, 200 प्रकार के उप उत्पाद और 300 विभिन्न प्रकार के देसी बीज हैं. 'मैं अब विभिन्न प्रकार के केले भी उगाता हूँ - लाल केला, इलायची केला, आदि और मैं उन्हें बाजार मूल्य से दोगुनी कीमत पर बेचता हूँ. मैं पानी का भी कुशलतापूर्वक उपयोग करता हूँ.'' तकनीक-प्रेमी जाधव ने 1000 से अधिक सदस्यों के अपने व्हाट्सएप समूह के द्वारा अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया चैनल भी खोजे हैं. “मेरी उपज की आपूर्ति भारत के 21 राज्यों में की जाती है. मेरे ग्राहक मुझसे खरीदते हैं और इसे अमेरिका में निर्यात भी करते हैं. मेरे पास दुबई से भी नियमित ग्राहक हैं. केवल व्हाट्सएप के माध्यम से, मैं हर महीने 1 लाख रुपये से अधिक कमाता हूं. मेरे पास ऐसे ग्राहक हैं जो हर हफ्ते 3,000 रुपये की सब्जियां खरीदते हैं.” जाधव अपनी सुखद समस्या साझा करते हुए कहते हैं, ''कई बार मेरे पास आपूर्ति करने के लिए पर्याप्त उपज नहीं होती है.''
आर्ट ऑफ लिविंग ने देश के कई किसानों को किया प्रशिक्षित
जाधव की तरह, अब तक आर्ट ऑफ लिविंग ने भारत में 22 लाख किसानों और महाराष्ट्र में 1 लाख से किसानों को प्रशिक्षित किया है. वे अब बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा बेचे जाने वाले उर्वरकों, आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों और कीटनाशकों का प्रयोग से अपनी कृषि भूमि को बचाने और पुनर्जीवित करने के लिए इस प्राचीन ज्ञान से शिक्षित हो चुके हैं. प्रशिक्षण ने किसानों को बीज बैंक के माध्यम से दुर्लभ और कीमती देसी बीज किस्मों को संरक्षित करने और बढ़ाने के साथ-साथ रासायनिक खेती की तुलना में उनकी लागत को 1/5 तक कम करने में सहायता की है. सीमांत किसान जो आमतौर पर बीज, उर्वरक और कीटनाशकों पर प्रति एकड़ 10,000 रुपये तक खर्च करते हैं, अब प्राकृतिक खेती के प्रशिक्षण और देशी गाय की सहायता से अपनी इनपुट लागत को 1,000 रुपये प्रति एकड़ के भीतर लाने में सक्षम हैं. उन्हें खेती के लिए पहले की तुलना में आवश्यक पानी के पांचवें हिस्से से भी कम की आवश्यकता होती है.