आज के समय में महिलाएं किसी भी कार्यों को करने में पीछे नहीं हैं. उन्होंने लगभग हर काम में सफलता हासिल की है. तो चलिए आज हम आपके ऐसे ही एक गांव में लेकर चलते हैं, जहां पर महिलाओं की मेहनत (women's labor) के कारण ही गांव आत्मनिर्भर हो रहा है.
आपको बता दें कि हरियाणा (Haryana) के पानीपत गांव ऊझा में 68 साल की निक्को देवी की मेहनत के कारण आज पूरे गांव में मशरूम की खेती पर जोर दे रहे हैं. महिलाओं के इस कार्य में पुरुष भी उनका पूरा सहयोग कर रहे हैं. मशरूम की खेती से एक ही परिवार लगभग 4 लाख रूपए तक की कमाई कर रहा है. आपको बता दें कि महिलाओं का यह कारवां अब तीस महिलाओं तक पहुंच चुका है.
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ऐसे की खेती की शुरूआत (start of cultivation)
गांव में इस क्रांति की शुरुआत निक्को देवी ने की थी. जब वह एक दिन अपने पशुओं के लिए चारा लेने के लिए घर से बहार निकली, तो उसे रास्ते में कृषि विज्ञान केंद्र (Krishi Vigyan Kendra) के बहार कुछ लोग बैठे दिखाई दिए. लोगों को एक साथ देखकर निक्को देवी ने उनसे पूछ लिया कि यहां क्या हो रहा है. पूछने पर पता चला कि यह पर मशरूम यानि खुंभी उत्पादन का प्रशिक्षण चल रहा है. प्रशिक्षण को देखकर निक्को के मन में भी इसकी खेती करने का विचार आया और फिर उसने कृषि विज्ञान केंद्र (Krishi Vigyan Kendra) के इंचार्ज डॉ. राजबीर गर्ग और डा.सतपाल से कुछ दिन मशरूम का यह प्रशिक्षण सीखने की इच्छा जाहिर की. तो कृषि विज्ञान केंद्र ने उन्हें यह कुछ दिन आकर यह प्रशिक्षण सीखने के लिए मंजूरी दे दी.
तीन सौ किलो खुंभी का उत्पादन (Production of three hundred kilograms of cucumber)
निक्को का शुरूआत में मशरूम का प्रशिक्षण करीब सौ बैग से की. देखा जाए, तो एक बैग से तीन किलों तक खुंभी का उत्पादन (production of cucumber) प्राप्त किया जा सकता है. इसका मतलब निक्को देवी अकेले तीन सौ किलो खुंभी का उत्पादन पहले सीजन में किया. जिसमें से 3 हजार रुपए का माल बिका. निक्को की मेहनत और कमाई को देखकर गांव की बाकी महिलाएं ने भी यह कार्य करना शुरू कर दिया. वर्तमान समय में निक्को खुद एक सीजन में हजार बैग में मशरूम का उत्पादन (production of mushrooms) कर रही हैं और अच्छी मोटी कमाई कर रही हैं.
लोगों ने उड़ाया मजाक (people made fun of)
निक्को देवी ने बताया किशुरुआत में गांव के सभी लोग व मेरे घर के लोग मेरा मजाक बनाते थे. कहते थे कि अनपढ़ है कैसे खुंभी का उत्पादन करेंगी. देख लेंगे, लेकिन अब वहीं लोग मेरे पास इस काम को सीखने के लिए आते हैं.
निक्को यह भी बताती हैं कि हमारी गांव की सीमा बबली, नीलम, रेखा मशरूम के व्यापार से जुड़ी हुए हैं, जो पराली से खाद बनाने का कार्य करती हैं. मिली जानकारी के मुताबिक, एक बार में लगभग 10 गुना 12 के एक कमरे में लगभग 200 बैग तैयार करते हैं. आपको इस कारोबार के लिए कृषि विज्ञान केंद्र से एक बैग 102 रुपये में दिया जाता है और वहीं बाजार में यह बैग 80 रुपए तक आपको मिल जाता है. अगर आप खुद इस बैग को तैयार करते हो, तो इसमें कुल लागत 50 रुपए की आती है. गांव की कई महिलाएं खुद ही बैग तैयार कर मशरूम की खेती (Mushroom farming) से अच्छा लाभ कमा रही हैं. आपको बता दें कि बाजार में लगभग इनके तीन लाख तक बैग आराम से बिक जाते हैं. कमाई में ढाई लाख तक की बचत होती है.