पिछले 70 -75 सालों में केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक ने इस बात के लिए कई कदम उठाये हैं कि कृषि क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा ऋण आए. हालांकि बैंक सेक्टर से ऋण बड़े या मध्यम किसानों को ही मिला है लेकिन छोटे और सीमान्त किसानों के पास ऋण नहीं पहुंचा है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि ज्यादातर बैंक ग्रहणाधिकार (Collateral) के आधार ऋण देते हैं. ऐसे में छोटे और सीमान्त किसानों को संगठित होना बेहद जरुरी है. जिसमें एफपीओ यानी किसान उत्पादक संगठन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.
यह बात कृषि जागरण के वर्चुअल प्रोग्राम में समुनती के वाइस प्रेसिडेंट (कैपिटल मार्केट्स और स्ट्रैटेजिक इनिशिएटिव) हरि राजागोपाल ने कही. वे कृषि क्षेत्र में बैंक और फाइनेंशियल इंस्टीटूशन की भूमिका पर अपने विचार रख रहे थे. उन्होंने कहा कि बैंक और फाइनेंशियल इंस्टीटूशन की कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका रही है. यदि किसानों को या किसान संगठनों को या व्यापारियों को समय पर और सही ब्याज दर पर ऋण नहीं मिलता तो शायद यह सब अपना कार्य सही तरीके से नहीं कर पाते. ऐसे में किसानों या व्यापारियों को सही समय पर ऋण देना बेहद जरुरी कदम है.
उन्होंने कहा कि पिछले 70 -75 सालों से केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक ने इस बात के लिए काफी कदम उठाये है कि कृषि क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा ऋण आए. हालांकि बैंक सेक्टर से ऋण बड़े या मध्यम किसानों को मिला है लेकिन छोटे और सीमान्त किसानों के पास ऋण नहीं पहुंचा है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि ज्यादातर बैंक ग्रहणाधिकार (Collateral) के आधार ऋण देते हैं. वे यह देखते हैं कि किसान के पास कितनी सिक्योरिटी है कितनी जमीन है या फिर किसानों का ट्रेक रिकॉर्ड क्या है या बैलेंस शीट कितनी मजबूत है. इसी प्रोसेस पर किसानों और व्यापारियों को बैंक लोन मिलता है. इस वजह से लघु और सीमान्त किसानों या छोटे व्यापारियों को लोन नहीं मिल पाते हैं.
आगे उन्होंने बताया कि किसानों को क्रॉप बेस या क्रेडिट कार्ड के आधार पर जो लोन मिलता है उसमें भी 70 प्रतिशत लोन बड़े या मध्यम किसानों को मिलता है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि कैसे लघु और सीमान्त किसानों को ऋण मिले. इसके लिए जो 5 एकड़ से कम जमीन वाले लघु या सीमान्त किसान है उन्हें लोन मिलने में बहुत दिक्कत होती है. जहां बैंकों को रूरल एरिया काम करना बेहद महंगा है इसलिए इसका हल यही है कि किसानों का एकत्रीकरण. उन्हें संगठित होकर खेती सम्बंधित विभिन्न चुनौतियों का सामना करना होगा.
श्री राजगोपाल ने कहा कि किसानों को संगठित करने में एफपीओ यानी किसान उत्पादक संगठन की अहम भूमिका रही है. वहीं एफपीओ क्षेत्र को मजबूती देने में सरकार और एनजीओ ने कई कदम उठाए हैं. लेकिन किसानों के संगठित होने से ही मार्केट उन तक नहीं पहुंच पाता है. इसके लिए एफपीओ संगठनों को प्रयास करने की बेहद जरुरत है. इसके लिए किसानों, व्यापारियों और प्रोसेजरों और उससे खरीदने वाले विक्रेताओं की एक वैल्यू चैन बनाना होगी.