सन् 1971 में दिल्ली आईआईटी से बीटेक करने वाले महेन्द्र साबू ने मुम्बई महानगर की लग्जरी लाइफ को अलविदा कर 2007 में अपने 17 एकड़ खेत में जैविक खेती की शुरूआत की.
शुरूआत में उन्हें काफी परेशानी भी उठानी पड़ी लेकिन समय के साथ साथ उनमें उत्साह का संचार होता रहा व आत्मविश्वास को मजबूती मिली. इसके दम पर ही उनकी ख्याति अनेक किसानों में होने लगी है. वे अन्य किसानों को यह बताने में सफल रहे कि जहरीली और रासायनिक प्रयोग से की जाने वाली खेती से जैविक खेती बहुत फायदेमंद है.
वे अपने खेत में एलोवेरा, गेहूं, बाजरा, सरसों, जौ, मूंग, चना, च्वार, मेथी, मूली, गाजर, प्याज, गोभी, सौंफ आदि अनाज व सब्जियों की खेती करते हैं और खुद के बनाए जीवामृत का प्रयोग करते हैं.
महेन्द्र साबू ने बताया कि वे प्रति एकड़ करीब डेढ़ लाख रुपये की पैदावार करते हैं और लोकल मार्केट के अलावा वे महीने के प्रत्येक शनिवार को गुरुग्राम जाकर सामान बेचते हैं.
इसके अलावा महेन्द्र साबू ने 10 देशी नस्ल की गाय भी पाल रखी हैं जिससे वे खेती में प्रयोग में आने वाले जीवामृत को तैयार करते हैं. इस काम में उनकी वीणा साबू भी बढ़ चढ़ कर साथ दे रही है. वे गाय के दूध से पनीर, घी, पेड़ा, बिस्किट आदि तैयार करती है जिसकी गुरुग्राम मार्केट में अच्छी खासी डिमांड है.
महेन्द्र साबू ने बताया कि रासायनिक के प्रयोग से जमीन की उर्वरा शक्ति ही खत्म नहीं होती बल्कि इसके प्रयोग करने से मनुष्य भी अनेक प्रकार की बीमारियों की चपेट में आ जाता है. जीवामृत का लागत बहुत ही कम है वहीं इसका असर बहुत अच्छा है.
कारोबार समेटकर जैविक खेती की राह अपनाई (Engaging business and adopted the path of organic farming)
महेन्द्र साबू मुम्बई लायन्स क्लब के अध्यक्ष रह चुके हैं. उन्होंने जब आईआईटी से बीटेक किया उस समय इंजीनियरिंग का बड़ा क्रेज होता था.
बीटेक के बाद महेन्द्र साबू ने नौकरी की और फिर खुद का व्यवसाय किया लेकिन जब जैैविक खेती के बारे में उन्होंने सुना तो अपना कारोबार समेटकर अपने जीवन को जैविक खेती को समर्पित कर दिया. इंजीनियरिंग की तरह अब वे विभिन्न प्रकार की फसलें पैदा कर नए नए प्रयोग कर रहे हैं.