भारत की ग्रामीण महिलाओं को देश की असली वर्किंग वुमन कहा जाता है. आखिर इसमें सच्चाई भी है क्योंकि देश में एक ग्रामीण पुरूष वर्ष भर में 1800 घंटे खेती का काम करता है जबकि एक ग्रामीण महिला वर्ष में 3000 घंटे खेती का काम करती है. इसके इतर भी उन्हें अन्य घरेलू काम करना पड़ते हैं. जहां भारत में लगभग 6 करोड़ से अधिक महिलाएं खेती का काम संभालती है. वहीं दुनियाभर में महिलाओं का कृषि कार्यो को करने में 50 प्रतिशत का योगदान रहता है. बावजूद उन्हें कभी खेती करने का श्रेय नहीं दिया जाता है और वे हमेशा हाशिए पर रही हैं. खेती का इतना काम करने के बाद भी उन्हें कभी किसान नहीं माना गया. लेकिन कुछ महिलाओं ने इस भ्रांति को तोड़कर खुद को बतौर किसान साबित किया है -
1. छाया नाचाप्पा-
13 साल की अथक मेहनत के बलबूते पर मैसूर की छाया नाचाप्पा एक सफल किसान के तौर अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो पाई है. उन्हें कर्नाटक की 'बी-क्वीन' के नाम से जाना जाता है. छाया की छोटी उम्र में शादी हो गई थी जो ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाई. लिहाजा वे पिता के यहां आ गई. लेकिन नियति ने उनके पिता को भी उनसे छीन लिया. पिता की मौत के बाद छाया ने शहद की आर्गेनिक खेती शुरू की. जिसमें उन्हें कामयाबी मिली और धीरे-धीरे अपना शहद प्रोसेसर प्लांट लगा लिया. अपने प्लांट की पूर्ति के करने के लिए उन्होंने अपने क्षेत्र के आदिवासी किसानों से संपर्क साधा और उनसे शहद खरीदना शुरू कर दिया. आज वे महिलाओं किसानों के लिए प्रेरणादायक है. वहीं वे सौ से अधिक लोगों को रोजगार भी दे रही है.
2. ममता कुमारी
ममता फलदार और लकड़ी वाले पौधे लगाकर अच्छी कमाई कर रही है. वे बिहार राज्य के कैमूर जिले के मोहनपुर गांव की ही. महज 50 रूपए का लोन लेकर उन्होंने अपनी नर्सरी शुरू की. जिसमें उन्होंने फलदार और लकड़ी वाले पौधे लगाए, जिन्हें वे क्षेत्रीय वनविभाग को बेचकर अच्छी कमाई करती है.
3. गीता देवी
गीता देवी भी बिहार के कैमूर जिले से ताल्लुक रखती हैं लेकिन मूल निवासी जैतपुर गांव की हैं. अपनी जीविका चलाने के लिए गीता ने लोन लेकर मछली पालन शुरू किया. जिससे वे आज अच्छा मुनाफा कमा रही है. 50 साल की गीता देवी अपने क्षेत्र में आज लोगों के लिए रोल मॉडल हैं.
4. क्रांति देवी
परंपरागत खेती को छोड़कर झारखंड के गुमला गांव की क्रांति देवी आज आधुनिक खेती कर रही हैं. 8 वीं तक पढ़ी लिखी क्रांति देवी को जल्द ही समझ आ गया कि पारंपरिक तरीके से खेती करने पर घर की जरूरतें भी पूरी नहीं होगी. इसलिए उन्होंने आधुनिक खेती करने का प्रशिक्षण लिया. आज क्रांति देवी की प्रेरणा गांव की 50 से अधिक महिलाएं खेती करने के उनके तौर तरीकों को अपना रही हैं.
5. आशा देवी
एक ग्रामीण महिला को दिन रात कई तरह की परेशानियों से गुजरना पड़ता है. खेती के अलावा भी उनके सामने कई तरह के काम रहते हैं. लेकिन इन सबके बीच बिहार की आशा देवी अपने गांव की 7 हजार से अधिक महिलाओं का प्रतिनिधित्व कर रही हैं. वे खेती में हाथ बंटाने के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को खुले में शौच से मुक्त करने और उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए प्रेरित कर रही हैं. एक स्वयं सहायता समूह को संचालित कर उन्होंने गांव के 7 हजार से अधिक महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत कर दिया है.