भारत जहां एक तरफ विकासशील से विकसित देश में बदलने की कोशिश कर रहा है, जिसमें कृषि (Agriculture) का बहुत बड़ा योगदान है. वहीं दूसरे तरफ हमारे देश के किसान और वैज्ञानिक तरह-तरह की खेती का प्रयोग कर उससे मिसाल पेश कर रहें हैं और कुछ ऐसी ही ख़बर महाराष्ट्र के नासिक से भी आ रही है. बता दें कि, नासिक के रहने वाले नीलेश दत्तात्रेय नंद्रे (Nilesh Dattatray Nandre) ने 2016 से बांस की खेती शुरू की थी.
उस समय उत्तर महाराष्ट्र (Maharashtra) में बारिश कम होने के कारण किसानों को फसलों का नुकसान झेलना पड़ता था और रोजगार (Employment) की कमी भी आ रही थी और वो शहरों के तरफ जा रहे थे. ऐसे में किसानों को अपने साथ जोड़े रखने के लिए और उनकी मदद करने के लिए उन्होंने बांस की खेती (Bamboo Farming) करना शुरू की थी.
संकट से बचाने का लिया था संकल्प (Determined to save from the crisis)
नीलेश ने एग्री बिजनेस मैनेजमेंट (Agri Business Management) विषय में पोस्ट ग्रेजुएशन किया हुआ है. महाराष्ट्र की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ से ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान वो देखते थे कि कैसे किसान सेमीनार और मीटिंग्स में आकर अपनी समस्याओं का ज़िक्र करते थे.
नीलेश के मन में भी कई तरह के सवाल उठते थे कि कैसे किसानों की समस्या को दूर किया जाए. इसके लिए वो मध्य प्रदेश से लेकर हैदराबाद गए. नीलेश ने एग्री-क्लिनिक तथा एग्री-बिज़नेस सेंटर योजना के तहत पुणे के MITCON से ट्रेनिंग भी ली. फिर बांस के उत्पादन को लेकर किसानों को जागरूक करने का काम किया.
बांस की खेती का आर्थिक महत्व (Economic importance of bamboo cultivation)
बांस का ज़्यादातर कमर्शियल चीज़ों में इस्तेमाल किया जाता है और इसका उपयोग निर्माण सामग्री, फर्नीचर, लुगदी और प्लाईवुड के रूप में किया जाता है. इसके अतिरिक्त, यह शिल्प बनाने के लिए एक बढ़िया वस्तु है. कारीगर इसके साथ कई तरह के आइटम बनाते हैं. सूची में गहने, घर की सजावट के सामान, रसोई के सामान, उपयोगिता के सामान और फर्नीचर शामिल हैं.
इसके अतिरिक्त पौधे का उपयोग सजावटी पौधे के रूप में भी किया जाता है. मूल रूप से, यह फूल उद्योग में एक उभरती हुई वस्तु है. घरेलू और व्यावसायिक दोनों परिसरों की आंतरिक साज-सज्जा के लिए पॉटेड बांस सबसे अच्छी वस्तु मानी जाती है.
बांस की खेती के व्यवसाय में ध्यान देने वाली योग्य बातें (Things to note in bamboo farming business)
मिट्टी की स्थिति व्यावसायिक खेती का एक महत्वपूर्ण पहलू है. यदि आपके पास पहले से जमीन नहीं है, तो जमीन को अंतिम रूप देने से पहले मिट्टी की जांच कर लें. इससे पहले बिजनेस प्लान तैयार करना जरूरी है. आपके पास अंतर-फसल योजना होनी चाहिए. इसके अलावा, एक वित्तीय योजना भी तैयार करें साथ ही इनपुट लागत, अपेक्षित आरओआई और ब्रेक-ईवन की भी गणना करें. उसके बाद पौध संरक्षण के लिए एक योजना तैयारी रखें, क्योंकि आपको कीटों और बीमारियों से संभावित खतरों की स्पष्ट अवधारणा होनी चाहिए.
वाणिज्यिक बांस की खेती के लिए सर्वोत्तम किस्में (Best varieties for commercial bamboo cultivation)
सही किस्म का चयन वाणिज्यिक बांस की खेती के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है. मूल रूप से, आपको मिट्टी की स्थिति, जलवायु और अंतिम उपयोग के लक्ष्य के अनुसार किस्म का चयन करना चाहिए.
हालांकि, सभी किस्में व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य नहीं हैं. बांस की कुछ बेहतरीन किस्मों में बम्बुसा नूतन, बम्बुसा बालकोआ, बम्बूसा बम्बोस, बम्बुसा टुल्डा, थायरोस्टैचिस ओलिवेरी, ओचलैंड्रा त्रावणकोरिका, शिज़ोस्टैच्युम डुल्लूआ शामिल है.
बांस की खेती के साथ बकरी पालन कैसे करें? (how to do goat farming with bamboo farming)
नीलेश दत्तात्रेय नंद्रे ने बांस की खेती के साथ बकरी पालन (Goat Farming) भी करना शुरू किया और उनका यह कहना है कि बकरियां एक शानदार जीव हैं जिन्हें लंबे समय से भारत में पाला गया है. दुनिया के लगभग हर कोने में बकरियों को व्यावसायिक रूप से पाला जा रहा है. इसके अलावा, वाणिज्यिक बकरी पालन धीरे-धीरे पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो रहा है. जैसे-जैसे दुनिया की आबादी बढ़ती है, वैसे-वैसे भोजन की मांग भी बढ़ती जाती है. बढ़ती खाद्य मांग को पूरा करने में वाणिज्यिक बकरी पालन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की क्षमता रखता है.
बकरी पालन के लाभ (benefits of goat farming)
न्यूनतम स्थान आवश्यक है:
बकरियां छोटी हैं और नतीजतन, उन्हें कुछ अन्य घरेलू जानवरों की तुलना में कम जगह की आवश्यकता होती है. उनके पास कम आवास की जरूरत है, इस प्रकार न्यूनतम सुविधाओं वाला एक घर पर्याप्त होगा.
खाने की जरूरतें कम है:
बकरियों को कम चारा की आवश्यकता होती है क्योंकि वे छोटे जानवर होते हैं. भारत में, बकरी की कई किस्में हैं जो कम गुणवत्ता वाले फ़ीड पर भी पनप सकती हैं.
बहुउद्देशीय उपयोग:
बकरियों को कई कारणों से पाला जाता है. बकरी पालन व्यवसाय का एक अन्य लाभ इसका बहुउद्देशीय उपयोग है. जैसे- छाल, मांस और दूध
बकरी पालन के साथ सहजन की खेती के लाभ (Benefits of Drumstick Farming with Goat Farming)
नीलेश दत्तात्रेय नंद्रे सिर्फ यहीं नहीं रुके, बल्कि उन्होंने सहजन की खेती (Drumstick Farming) भी इसी के साथ शुरू कर दी. नीलेश बताते हैं कि बांस की खेती में अगर दो लाइन के बीच 15 फ़ीट और दो पौधों के बीच 8 फ़ीट की दूरी रखी जाए तो इसमें कई और फसलें लगाई जा सकती हैं और सहजन की खेती (Drumstick farming) की जा सकती है.
सहजन बकरियों को दिए जाने वाले आहार में आता है. बांस की खेती से ही बकरी पालन की शुरुआत करने के बाद एक बार इनकम आने लग जाए तो बड़े स्तर पर इसे ले जा सकते हैं.
सहजन की खेती आसान, कम समय लेने वाली और भुगतान करने वाली भी है. इसलिए, इच्छुक किसान इस तरह के प्रयास में जा सकते हैं और अपना भविष्य उज्जवल बना सकते हैं.