राजस्थान के झुझुंन जिले के नवलगढ़ तहसील के गांव चैलासी में रहने वाले किसान मुरलीधर सैनी ने अपने दिल की सुनकर कुछ अलग करके दिखाया है. मुरलीधर काफी लंबे समय से टमाटर की खेती करने का कार्य कर रहे है. मुरलीधर को दो वर्ष पहले पंजाब के एक किसान मित्र के जरिए ऑस्ट्रेलिया के टमाटरों की खेती की जानकारी मिली. जिसके बाद जब उनके मित्र का बेटा ऑस्ट्रेलिया गया तो उसी के माध्यम से उन्होंने बीज मंगवाए. जोकि 1800 रूपए प्रति 10 ग्राम पड़े. टमाटर की इस सीजन में पहली बार उन्होंने अपने खेत में देसी टमाटरों की बजाय ऑस्ट्रेलियाई टमाटरों की बुवाई की है. अब धीरे-धीरे उनके यह टमाटर उगने लगे है. इससे उनको काफी अच्छा मुनाफा प्राप्त होने लगा है.
देसी और ऑस्ट्रेलियाई टमाटर में अंतर
अगर हम मुरलीधर की बात करें तो ऑस्ट्रेलियाई और देसी टमाटर की खेती में बहुत अंतर है. सबसे खास बात यह है कि ऑस्ट्रेलियाई टमाटर का छिलका बहुत ही ज्यादा कठोर होता है, जो राजस्थान में गर्मियों में रहने वाले 40 डिग्री तक के तापमान को सहन कर सकता है, जबकि देसी से इतना तापमान सहन नहीं हो पाता है. इतने तापमान में देसी टमाटर के पौधे से फूल से फल नहीं बन पाते है. इस तरह की समस्या ऑस्ट्रेलियाई टमाटर में नहीं होती है. इसके अलावा ऑस्ट्रेलियाई टमाटर को देसी टमाटर की तुलना में अधिक समय तक स्टोर करके रखा जा सकता है.
इस तरह होती पैदावार
मुरलीधर ने बताया कि ऑस्ट्रेलियाई बीज के प्रति पौधे से औसतन 15 - 16 किलोग्राम टमाटर की पैदावार मिल रही है, जबकि भारतीय पौधे से औसतन 6-7 किलोग्राम ही पैदावार बैठती है. दोनों ही टमाटरों का भाव समान होता है. एक बीघा में बोए गए ऑस्ट्रेलियाई टमाटर की स्टोरेज क्षमता अधिक होने के वजह से इसकी खरीद हो रही है.
टीम भेजकर होगी जांच
कृषि विभाग झुझुनूं के उप निदेशक के मुताबिक सैनी ने बताया कि 'मुरलीधर एक प्रगतिशील किसान है जो इन दिनों ऑस्ट्रेलियाई टमाटर की खेती करने का कार्य कर रहे है. साथ ही विभाग की पूरी टीम उनके खेत में भेजकर जानकारी को एकत्र किया जाएगा ताकि जिले के अन्य किसान को इस नवाचार के प्रति प्रोत्साहित किया जा सके. टीम पूरी तरह से इस फसल को जांच करेगी और इसके बारे में जानकारी एकत्र करेगी.