सर्दी के मौसम में अमरूद खाना किसको पसंद नहीं होता है। अगर इसकी किस्मों की बात करें तो कई किस्में बाजार में मिल जाती है। लेकिन आज हम बात कर रहे है मध्य प्रदेश के छोटे से गांव के अमरूद की। इस छोटे से गांव के अमरूद की मांग पूरे देश में मशहूर है। यहां के अमरूद की सबसे खास बात यह है कि यह खाने में जायकेदार होने के साथ ही बड़ा और क्रीम कलर का होता है जिसको देखर बिना खाए नहीं रहा जा सकता है। यहां के एक-एक अमरूद के पौधे में एक-एक कुंतल अमरूद की पैदावार होती है जिसके कारण यहां के किसानों की आमदनी लाखों में पहुंच जाती है।
वरदान साबित हो रही अमरूद की खेती
मध्य प्रदेश के मंदसौर की गरोठ तहसील का एक छोटा सा गांव कोटड़ाबुजुर्ग है। यहां के किसान पहले सिर्फ पारंपरिक खेती जैसे गेहूं, धान की ही खेती करने का कार्य करते थे। लेकिन कुछ सालों पहले किसान ने अपनी आय को ब़ाने की कोशिश में लगे हुए है। यहां के गांव की जमीन किसानों के लिए अमरूद की खेती के लिए वरदान साबित हुई है। कुल तीन एकड़ में खेती करने वाले किसान मुकेश पाटीदार बताते है कि पहले सिर्फ पारंपरिक खेती से घर का गल्ला ही आ पाता था और मुनाफा तो बिल्कुल नहीं था। मुकेश का कहना है कि किसानों ने आपसी सहमति और बहुमत से इस खेती को करने का फैसला किया है।
लखनऊ से लाए गए पौधे
किसान प्रकाश पाटीदार बताते है कि हमारे गांव में साल 2008 तक कोई भी किसान अमरूद की खेती कोई नहीं करता है। करीब आठ वर्ष हमारे किसान काशीराम पाटीदार लखनऊ गए है और वहां से अमरूद के 50 पौधे ले कर आए और रोपित किया गया है। यहां की जमीन में इस खेती को भा गई और देखते ही देखते पूरे गांव में अमरूद की खेती होने लगी। अमरूर की पैदावार इतनी होने लगी की यहां का उसकी खपत नहीं कर पा रहा था। कुछ समय थोड़ी बहुत अमरूद को बेचने में मसक्कत करनी पड़ी लेकिन जब हमारे यहां का अमरूद दूसरे प्रदेशों में जाने लगा तो व्यापरी खुद यहां आकर से अमरूर खरीद कर ले जाते हैं।
अन्य राज्यों में ले जा रहे अमरूद
कोटड़ाबुजुर्ग गांव के किसानों के लिए यहां की धरती वरदान साबित हो रही है। यहां पैदा होने वाला अमरूद देश के कई राज्यों में मिठास फैला रहा है। यहा के अमरूद की मांग मध्य प्रदेश के साथ-साथ, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्यों से आ रही है। अमरूद का सीजन आते ही कई राज्यों के व्यापारी कोटड़ाबुजुर्ग गांव पहुंच जाते हैं जो किसानों से उनकी फसल खरीद कर अपने-अपने राज्य ले जाते हैं।
किशन अग्रवाल, कृषि जागरण