किसी ने सच ही कहा है कि हसरत से हौसला है और हौसले से ही उड़ान होती है. इस बात को उत्तर प्रदेश के किसानों ने साबित कर दिखाया है. किसानों ने सफेद रेत को हरे सोने की खदान में बदल दिया है. यह उनके कठिन परिश्रम का फल है, जिससे उनके बैंक खातों की इबारत भी बदलने लगी है.
यह कहानी उत्तर प्रदेश में रुदौली क्षेत्र की सरयू नदी के कछार में फैले सैकड़ों बीघे सफेद रेत पर खेती करने वाले किसानों की है. यहां बाराबंकी, गोंडा व अयोध्या की सीमा पर एक दर्जन से अधिक गांव बसे हैं. इनकी लगभग आबादी 15 हजार है. यहां सभी किसान सब्जियों की खेती करते हैं. वह अपनी उपज को रुदौली, बाराबंकी, सुल्तानपुर, अमेठी, जगदीशपुर, गोंडा और बलरामपुर में बेचते हैं. इससे किसानों को बहुत अच्छा लाभ मिल रहा है. बता दें कि यहां से थोक व्यापारी सस्ते दामों पर किसानों का उत्पाद खरीदते हैं और मंडी तक ले जाते हैं.
आपको बता दें कि जिन किसानों ने सरयू नदी के सफेद रेत से भरे कछार पर अपनी मेहनत की दम पर रेत में भी फसलों की खेती की है, वह किसान उधरौरा, अब्बुपुर, नूरगंज, कैथी, मंहगूपुरवा, सल्लाहपुर, कोपेपुर, बरई, सराय नासिर, चक्का, चिर्रा, खजुरी, कोटरा, खैरी और मुजैहना के रहने वाले हैं. इन किसानों की मेहनत और लगन से चांदी की तरह चमकने वाले खेत हरे-भरे नजर आने लगे हैं.
तरबूज और खरबूज की लगाई फसल
किसान नदी के रेत में बड़े स्तर पर तरबूज और खरबूज की फसल लगाते हैं. जब फसल तैयार हो जाती है, तो कई जिले के व्यापारी ट्रक द्वारा फसल ले जाते हैं. किसानों का कहना है कि खेती ने उनके बैंक के खाते को भी वजनी कर दिया है. बता दें कि किसान तरबूज, खरबूजा, लौकी, तोरई, कुम्हड़ा, करेला, परवल, कद्दू, खीरा समेत धान, गन्ना की खेती करते हैं.
ऐसे बदल रही तकदीर
किसानों का कहना है कि 2 महीने पहले जहां 15 से 20 फीट तक बाढ़ का पानी भरा था, जिसमें हजारों बीघा धान, गन्ना आदि फसल बर्बाद हो गई थी. आज उन्हीं सफेद रेत वाला खेतों को हरा सोने की खदान में बदल दिया गया है. यहां नवंबर से खेती का काम शुरु होकर मई में खत्म हो जाता है. पहले किसान उपजाऊ भूमि में रेत भर जाने की वजह से खेती नहीं करना चाहते थे, लेकिन फिर किसान एक नई तकनीक से खेती करने लगे हैं. इस तरह किसान सफेद रेत में हरी सब्जियों और रेत पर उगने वाली फसल से अच्छी कमाई कर रहे हैं. खास बात है कि कछार की मिट्टी को अधिक खाद की जरूरत नहीं होती है और न ही सिंचाई की ज़रूरत होती है. ऐसे में किसानों ने बाढ़ को ही वरदान बना लिया है.