मध्यप्रदेश के बड़वानी ग्राम के बोरलाय उन्नत महिला किसान ललिता मुकाती का चयन हलधर जैविक किसान अवॉर्ड के लिए हुआ है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के स्थापना दिवस 16 जुलाई को दिल्ली में यह अवॉर्ड प्रदान किया जाएगा. इस कृषि पुरस्कार में उनको एक लाख रूपए, प्रमाण-पत्र और शील्ड भी प्रदान की जाएगी. उन्नत महिला किसान कृषक कैटेगरी में यह अवॉर्ड हासिल करने वाली पहली महिला किसान है.
जैविक खेती से भारी मुनाफा
ललिताबाई के मुताबिक, उन्होंने जैविक खेती की शुरूआत सीताफल से की थी. फल और अनाज के बाद अब वह मसाला पद्धति से भी फसले ले रही है, इसमें केरल की हल्दी, गिरनार की मूंगफली सहित अदरक, मूंग आदि की फसलें भी शामिल है. मध्य प्रदेश राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्था उनको जैविक खेती करने का प्रमाणपत्र भी प्रदान कर चुकी है. वह बीए पास है और खेती-किसानी कार्य में दक्ष है. खेतों में रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों को देखते हुए उन्होंने करीब छह माह पहले ही जैविक खेती को अपनाया है. आज वर्तमान में वह करीब 36 एकड़ जमीन में जैविक खेती से अलग-अलग उपज प्राप्त कर रही है.
फल-फूल और पत्तों से खाद
ललिताबाई ने बताया कि फसलों में रासायनिक खाद का बिल्कुल उपयोग हम नहीं करते है. फूलों और पशुओं के द्वारा छोड़े पत्तों, अनाज, दलहन, तिलहन, गुड़ और गोमूत्र आदि से जैविक खाद बनाते है, नीम तेल का भी उपयोग किया जाता है. ललिता जैविक खाद को बनाने का कार्य स्वंय ही करती है. आज तो ललिताबाई स्कूट, ट्रेक्टर, के अलावा खेती के सारे उपकरण आसानी से चला लेती है.
लागत आधी और कीमत दोगुनी
ललिताबाई के पति बताते है कि उन्होंने पांच एकड़ में गेहूं को लगाने का कार्य किया था. सामान्य खेती में प्रति एकड़ में 15 से 17 क्विंटल उत्पादन होता है, लेकिन जैविक पद्धति से आधी लागत में प्रति एकड़ 20 से 22 क्विंटल गेहूं का उत्पादन हुआ है.
यह भी करती है
महिला किसान ललिताबाई खेती के साथ-साथ मतस्यपालन और पशुपालन का कार्य भी करती है. जल संरक्षण के लिए ड्रिप सिंचाई, मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए वर्मी कंपोस्ट खाद, सभी अपशिष्ट पदार्थों का उपयोग, बिजली बचाने हेतु सोलर पंप, बॉयोगैस इकाई लागत और स्वयं के ब्रांड नेम से सीताफल की पैकिंग और विक्रय करने का कार्य किया जाता है. इससे उनको काफी लाभ हो रहा है.