राजस्थान के हनुमानगढ़ क्षेत्र के परलिका गाँव में रहने वाले 31 वर्षीय अजय स्वामी को खेती के क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं था. उनके परिवार के पास दो बीघे से कुछ ज्यादा की जमीन थी. अजय स्वामी ने बताया कि एक सुबह उन्होंने अखबार में एलोवेरा के बारे में पढ़ा और तब उन्हें इसके उत्पादन के बारे में एक अद्भुत विचार आया. हालांकि उनके पास इसकी खेती आरंभ करने के लिए आवश्यक संसाधन नहीं थे.
अजय ने अपनी पढ़ाई कक्षा 8वीं तक की है. पिता के निधन के बाद उन्हें खुद अपने परिवार का पालन पोषण करना पड़ा और सन् 1999 में उन्होंने अपनी मां की मदद से 10 रुपये प्रति कप के हिसाब से चाय बेचने का काम शुरू किया.
खुद का व्यवसाय
अखबार में एलोवेरा की कहानी पढ़ने के बाद अजय ने सोचा कि क्यों न दो बीघे जमीन का इस्तेमाल किया जाए और पौधे उगाना शुरू किया जाए. अजय ने एलोवेरा के बारे में शोध और अपने समुदाय के किसानों से बात करना शुरू कर दिया. बातचीत से उन्होंने पता लगाया कि एलोवेरा उगाने के लिए बहुत अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है. उनको यह बात बहुत अच्छी लगी क्योंकि राजस्थान में अक्सर सूखा पड़ता रहता है, जिससे ऐसी फसल उगाना मुश्किल हो जाता था जो बड़े पैमाने पर पानी पर निर्भर होती है.
उन्होंने पौधों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले उर्वरक और मिट्टी के उपयोग के बारे में पता किया. इस बारे में उन्होंने ऑनलाइन बहुत शोध किया. हालाँकि उनका यह खेती में पहला प्रयास था, इसलिए उन्हें अधिक उम्मीदें नहीं थीं. इसके साथ ही वह अपनी चाय की दुकान पर काम करते रहते थे. उन्होंने एलोवेरा की आपूर्ति बढ़ाने के लिए अपनी चाय कंपनी से बचाए गए पैसों का इस्तेमाल करते थे. अजय को अंदाजा नहीं था कि उनकी फसल इतनी शानदार मुनाफा देगी.
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कमाई
अजय कहते हैं कि वह खुश हैं कि उन्होंने सही पौधे को चुना क्योंकि वह एलोवेरा का खेत बनाने और बाद में इसके व्यवसाय से उन्हे अच्छा फायदा मिल रहा है. अजय एक बच्चे के रूप में एलोवेरा के लड्डू खाने को याद करते हैं और बताते हैं कि उन्होंने लॉकडाउन के दौरान इसका प्रयोग किया था और आज वह एलोवेरा से बने दो तरह के लड्डूओं को बाजार में बेच कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. इन लड्डू की कीमत 350 से 400 रुपये प्रति किलोग्राम है. अजय के अनुसार उद्योग में हर किसान की सफलता की कुंजी नवाचार है.