वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष घोषित किया गया है. किसान पारम्परिक मोटे अनाज की खेती को अपना कर अधिक आय अर्जित कर सकते हैं, इस दिशा में केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं. मोटा अनाज जिसे पौष्टिक या पोषक अनाज भी कहा जाता है. मोटे अनाज की खेती करने के लिए पानी की आवश्यकता भी कम होती है लेकिन आवश्यक है तो इस खेती को अपनाने की दिशा में सकारात्मक कदम आगे बढ़ाने की.
हिमाचल प्रदेश एक पहाड़ी राज्य है और यहां की भगौलिक परिस्थितियों में खेती-बाड़ी करना कोई आसान कार्य नहीं है. यहां ढ़लाननुमा खेत हैं, जिनमें पानी नाम मात्र के लिए ही ठहरता है. खेती-बाड़ी के लिए सिंचाई की सुविधा कम होने के कारण प्रदेश का अधिकतर किसान फसल सिंचाई के लिए वर्षा पर ही निर्भर रहता है, ऐसी परिस्थितियों वाले हिमाचल प्रदेश के एक किसान ने अपने खेतों में मोटे अनाज की खेती कर राष्ट्रीय स्तर पर पदमश्री पुरस्कार के लिए अपनी जगह बना प्रदेश को गौरवान्वित किया है.
प्रदेश के मंडी जिला के करसोग क्षेत्र के नाज गांव के एक 10वीं पास किसान नेकराम शर्मा ने प्रदेश के लिए गौरव के यह पल प्रदान किए हैं. विशेषकर कृषि क्षेत्र में राज्य के किसान को पदमश्री मिलना सचमूच काबिले तारिफ है. पारंपरिक मोटे अनाज की खेती को अपना कर देशभर में पदमश्री पुरस्कार के लिए अपनी जगह बनाकर, नेक राम शर्मा ने ना केवल, प्रदेश व क्षेत्र का नाम रोशन किया है बल्कि प्रदेश के अन्य किसानों के लिए एक मिसाल भी बने हैं. मोटे अनाज की खेती के बारे में न सोच कर रसायनिक पदार्थो का प्रयोग कर आधुनिक खेती को अपनाने वालों का ध्यान भी पारंपरिक मोटे अनाज की खेती की ओर इन्होंने आकर्षित किया है.
पारम्परिक मोटे अनाज में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक फाइवर पर्याप्त मात्रा में होने के कारण जहां मोटा अनाज स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक है वहीं मोटे अनाज के सेवन से अनेक बीमारियों से भी छुटकारा पाया जा सकता है. यह अनाज शरीर में रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है. इसके सेवन से ब्लड़ प्रैशर को नियंत्रित किया जा सकता है. मधुमेह, एनीमिया, कब्ज की समस्या, दस्त रोग, गुर्दे आदि की बीमारियों से भी इसके सेवन से बचा जा सकता है.
नेकराम शर्मा का पूरा परिवार वर्षो से खेती-बाड़ी से जुड़ा हुआ है. गांव के ही एक स्वतंत्रता सेनानी कमला राम शर्मा की प्रेरणा से जैविक खेती, जिसे वर्तमान में प्राकृतिक खेती कहा जाता है को अपनाने वाले नेक राम शर्मा करसोग क्षेत्र में मोटे अनाज की खेती से 8 से 10 हजार लोगों को जोड़ चुके हैं. उनकी मोटे अनाज को अपनाने और अन्य लोगों को इस खेती से जोड़ने तथा राष्ट्रीय स्तर पर पदमश्री पुरस्कार के लिए जगह बनाने तक की मुहिम बेहद रोचक है.
अपनाई जैविक खेती
नेक राम शर्मा के अनुसार वह गांव में वर्ष 1982 से ही नगदी फसलें उगा रहे हैं. प्रारम्भ में उन्होंने भी कीटनाशक दवाईयों व रसायनिक खादों के बलबूते नगदी फसलों को उगाने का कार्य किया लेकिन 4-5 सालों के बाद खेतों की उर्वरता कम होने लग गई. तब उन्हें अहसास हुआ कि यह सब कीटनाशक दवाईयों व रसायनिक खादों के खेतों में प्रयोग करने से हो रहा है. जिसके पश्चात उन्होंने अपनी नगदी फसलों में कीटनाशक दवाईयों व रसायनिक खादों आदि का प्रयोग बंद कर खेती-बाड़ी के लिए खेतों में गाय के गोबर का प्रयोग करना आरम्भ किया. वर्ष 1996 में वह नौणी विश्वविद्यालय सोलन के एक परिचित डॉ जेपी उपाध्याय के संपर्क में आए और उन्होंने बैगलौर के धारवाड़ स्थित कृषि विश्वविद्यालय में कुछ समय के लिए जैविक खेती की बारीकियां सीखी और वापस आ कर उन्हें अपने खेतों में अप्लाई करना शुरू किया, जिसके बेहद सार्थक परिणाम सामने आ रहे है.
एक मुठ्ठी, दो मुठ्ठी और तीन मुठ्ठी की अदभुत शर्त
करसोग क्षेत्र में ही मोटे अनाज की खेती से 8 से 10 हजार लोगों को जोड़ने वाले नेक राम शर्मा की रोचक बात यह है कि वह अन्य किसानों को इस खेती से जोड़ने के लिए एक मुठ्ठी, दो मुठ्ठी और तीन मुठ्ठी की शर्त का सहारा लेकर अपने मोटे अनाज की खेती के मिशन विस्तार को आगे बढ़ा रहे है. एक मुठ्ठी, दो मुठ्ठी और तीन मुठ्ठी की यह अदभुत शर्त यह है कि नेक राम शर्मा जब भी किसी अन्य किसान को मोटे अनाज की खेती से जोड़ने के लिए निःशुल्क बीज देते हैं तो उस किसान को इस शर्त में बांध देते हैं.
मिशन विस्तार के तहत कई लोग जुड़े
मिशन विस्तार के तहत जब भी नेक राम शर्मा एक मुठ्ठी मोटा अनाज बीज के तौर पर किसी अन्य किसान को निःशुल्क देते हैं तो उस समय वह उस किसान को शर्त लगा देते है कि मोटे अनाज की फसल तैयार होने के बाद वह दो मुठ्ठी वापस करेगा और तीन मुठ्ठी आगे तीन अन्य किसानों को निःशुल्क प्रदान करेगा ताकि अधिक से अधिक लोगों के घरों तक मोटे अनाज के बीज को पहुंचाकर उन्हें भी मोटे अनाज की खेती से जोड़ा जा सके. इस प्रकार अपने मोटे अनाज के मिशन विस्तार को आगे बढ़ा नेक राम शर्मा क्षेत्र के लोगों को निःशुल्क बीज उपलब्ध करवा इस खेती से जोड़ रहे हैं.
कोदरे की चाय
मोटे अनाज को अदभुत अनाज का नाम देने वाले नेक राम शर्मा कोदरे की चाय भी बनाते हैं, जिसे इन्होंने अदभुत चाय का नाम दिया है. इस चाय को बनाने के लिए इन्होंने अपने परिवार के सदस्यों को भी प्रशिक्षित किया है ताकि घर पर आने वाले मेहमानों को भी स्वास्थ्य बर्धक कोदरे की चाय यानि अदभुत चाय पीलाई जा सके.
9 अनाज एक की खेत में
नेक राम शर्मा 9 प्रकार के अनाजों की खेती एक ही खेत में, एक साथ करते है. जिनमें कोदरा, कांगनी, चैलाई, साँवा, ज्वार, बिथू, भरेस आदि शामिल हैं इनके अलाव उसी खेत में आम व अनार का बगीचा भी फसल दे रहा है. इनके अनुसार मोटा अनाज ही मूल अनाज है. रसायनिक खेती को छोड़ कर हमें उत्तम स्वास्थ्य के लिए इसे अपनाना होगा, तभी हम स्वस्थ्य रह सकते हैं.
पदमश्री पुरस्कार के बाद मोटे अनाज की खेती की दिशा में और अधिक कार्य करने की नैतिक जिम्मेवारी को समझने वाले नेक राम शर्मा का दायित्व और बढ़ गया है इस बात को वह भली-भांति समझते हैं. मोटे अनाज को उगाने या प्राकृतिक खेती को अपनाने के लिए राज्य सरकार की ओर से भी बड़े पैमाने पर प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन इस दिशा में अभी और कार्य करने की आवश्कता है.
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मोटा अनाज आय का बेहतर जरिया भी बन सकता है जिसकी संभावना अत्यधिक है जो स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक है. मोटे अनाज जैसे कोदरा, कांगनी, चैलाई, सांवा, ज्वार, बिथू, भरेस आदि की खेती से अच्छी आय भी अर्जित की जा सकती है.
स्वस्थ शरीर मोटे अनाज के रूप में सबसे बड़ी आय हमें मिलती है. इसके सेवन से हम अपने शरीर को अनेक बीमारियों से बचा कर दवाईयों पर होने वाले खर्च को भी कम कर सकते हैं. मोटे अनाज की बाजार में अत्यधिक मांग रहती है और मोटे अनाज के बाजार में दाम भी अच्छे मिलते हैं. मोटे अनाज से रागी के लड्डू, रागी प्याज चपाती, सांवा की खीर, कंगनी खीर, कोदो पुलाव इत्यादि पकवान भी तैयार किए जा सकते हैं. इसके अलावा कोदो की चाय भी बनाई जा सकती है.
प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार द्वारा कृषि विभाग के माध्यम से बीज सहित अन्य सामग्री पर उपदान भी प्रदान किया जा रहा है. जिसके अब सार्थक परिणाम सामने आने लगे हैं. नेक राम शर्मा के अनुसार प्रदेश के किसान भाईयों को रसायनिक खेती को छोड़ कर प्राकृतिक खेती को अपनाने के लिए अपने कदम आगे बढ़ाने होंगे तभी हम जहर मुक्त खेती के सपने को साकार कर सकते हैं.
लेखक-
संजय सैनी, मंडी, हिमाचल प्रदेश