बढ़ती जनसंख्या और उन जनसंख्याओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए जंगलों और कृषि योग्य भूमि को हटाकर लोगों के रहने का ठिकाना बनाया जा रहा है. जहाँ लोग आसानी से रहकर अपना जीवनयापन कर सकें.
जीवनयापन की तलाश में उन्होंने जंगलों को काट कर घर तो बना लिया, लेकिन जीवनयापन के लिए सबसे जरुरी चीज़ को पीछे छोड़ दिया. जीवन जीने के लिए खाना जरुरी होता है, और उसके लिए फसल का उपजना और फसल उपजाने के लिए जरुरी होती है जमीनों की, जिस पर हम बड़ी आसानी से आलिशान बंगला और अपार्टमेंट का निर्माण करते आ रहे हैं.
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले दिनों में खेतों में भी हम घरों का निर्माण कर बैठेंगे, लेकिन समस्या यह है कि इसका समाधान क्या हो सकता है. इस समस्या का समाधान खोजने के लिए कृषि जागरण के हिंदी कंटेंट से सह-संपादक विवेक कुमार राय एक बार फिर हरियाणा के रेवाड़ी गांव पहुंचे. वहां उनकी मुलाकात सेजल फार्म के मुखिया काशीनाथ यादव से हुई जो की पेशे से एक अध्यापक और किसान हैं.
विवेक कुमार ने जमीनों की समस्या पर सभी का ध्यान खींचते हुए बताया कि कैसे आप भी कम ज़मीन में अधिक उपज कर सकते हैं. वहीं, काशीनाथ यादव ने बताया कि मौजूदा वक्त में हरियाणा के एक सफल किसान में गिने जाते हैं. उन्होंने इंटीग्रेटेड फार्मिंग का तरीका अपना कर अन्य किसानों के लिए एक मिसाल बनाया है. आपको बता दें काशीनाथ यादव सिर्फ 1 एकड़ ज़मीन में डक फार्मिंग, फिश फार्मिंग, गोआट फार्मिंग, मशरुम फ़ार्मिंग कर रहे हैं. वहीं, इंटीग्रेटेड फार्मिंग जैसी नई चीज़ों को अपना कर अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं.
क्या है इंटीग्रेटेड फार्मिंग?
एकीकृत कृषि प्रणाली (integrated farming), खेती की एक ऐसी पद्धति है, जिसकी मदद से किसान अपने खेत से सम्बंधित उपलब्ध सभी संसाधनों का इस्तेमाल करके कृषि से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं. कृषि के इस विधि से छोटे व मझोले किसानों की अपनी घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ कृषि से अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है. वहीं दूसरी ओर फसल उत्पादन और अवशेषों की रीसाइकलिंग के द्वारा टिकाऊ फसल उत्पादन में मदद मिलती है.
इस विधि के तहत मुख्य फसलों के साथ दूसरी खेती आधारित छोटे उद्योग, पशुपालन, मछली पालन एवं बागवानी जैसे कार्यों को किया जाता है. काशीनाथ यादव ने बताया कि आज के समय में लोगों की ये शिकायतें रहती हैं कि उनके पास खेती करने के लिए पर्याप्त जमीन नहीं है. मैं उन सभी किसानों को बताना चाहता हूँ की आप कम जगह में इंटीग्रेटेड फार्मिंग कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
बकरी की बरबरी नस्ल क्यों है इतनी मुनाफेदार
काशीनाथ यादव ने अपने सेजल फार्म में बकरी की बरबरी नस्ल का पालन कर रहे हैं. विवेक कुमार से बात-चीत के दौरान उन्होंने बरबरी नस्ल की विशेषताओं को कृषि जागरण के सभी किसान भाइयों से साझा करते हुए बताया कि ये नस्ल सभी बकरी पालको के लिए फायदेमंद साबित हुई है. उन्होंने बताया कि ये नस्ल साल में दो बार ब्याँति है और 2 या 3 बच्चे पैदा करती है. जो बच्चे 1 साल के होते-होते प्रजनन के योग्य या प्रजनन के लिए तैयार हो जाते हैं. किसानों को इनके खुराक के लिए भी ज्यादा सोचना नहीं पड़ता है. ये कुछ भी खा लेते हैं. ऐसे में बकरी पालको को ज्यादा चिंता नहीं होती और लागत भी कम लगती है.
इन नस्लों में बीमारियां भी कम लगती है. काशीनाथ यादव ने बताया कि बकरियों में आम तौर पर बीमारी गीलेपन की वजह से लगता है. इस समस्या का समाधान निकालते हुए उन्होंने बकरियों के जगह को जमीन से 5 फुट ऊपर कर के बनाया है. जिस वजह से बकरियों का मालवा जमीनों पर गिरता है, जिससे गीलापन नहीं होता और बकरियों में बीमारी फैलने का खतरा कम होता है. वही वो इस मलवे का इस्तेमाल खाद बनाने में करते हैं.
उन्होंने बताया कि बकरियों की वजह से वो अपने बगीचों में किसी तरह का केमिकल इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि इसकी को खाद के तौर पर खेतों में इस्तेमाल करते हैं. इस नस्ल के दूध के सेवन से कई बीमारियों से बचाव होता है. ख़ासकर अगर डेंगू बीमारी की बात करें तो उसमें बकरी का दूध औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
वजह और आकारों पर चर्चा करते हुए उन्होंने बताया की नर बकरी का वजन तकरीबन 50 किलो तक का होता है, तो वहीं मादा बकरी का वजन तकरीबन 35 किलो तक होता है.