मधुमक्खी मानव जाति की सबसे बड़ी मित्र होने के साथ प्रकृति के विकास में बड़ा योगदान दिया है. मधुमक्खी पौष्टिक खाद्य पदार्थ अर्थात शहद का उत्पादन करती है. लीची नीबू प्रजातीय फलों, अमरूद, बेर, आड़ू, सेब इत्यादि एवं अन्य दलहनी एवं तिलहनी फसलों में मधुमक्खियों द्वारा परागण अत्यन्त महत्वपूर्ण है.
परीक्षणों से यह भी जानकारी मिली है कि पर-परागण के बाद जो फसल पैदा होती है, उन दानों का वजन एवं पौष्टिकता अच्छी होती है.ऐसे में हम यह कह सकते है कि मधुमक्खियां न केवल शहद पैदा करती है. इसके साथ ही फसलों की पैदावार बढ़ाकर खुशहाल बनाकर प्रदेश एवं देश को आर्थिक पौष्टिक खाद्यान्न उपलब्ध कराने में मद्द करती हैं. मधु अतिपौष्टिक खाद्य पदार्थ होने के साथ ही दवा भी है. प्रत्येक मधुमक्खी परिवार में तीन प्रकार की मक्खी पायी जाती हैं, जिनमें रानी, नर मक्खियां एवं कमेरी मक्खियां होती हैं.
मधु (Honey)
मधु में 17 से 18 प्रतिशत फलों की चीनी (फ्रक्टोज) 42.2 प्रतिशत अंगूरी चीनी (ग्लूकोज) 34.71 प्रतिशत एल्यूमिनाइड 1.18 प्रतिशत और खनिज पदार्थ (मिनरल्स) 1.06 प्रतिशत. इसके अतिरिक्त मधु में विटामिन सी, विटामिन बी, सी, फॉलिक एसिड, साइट्रिक एसिड इत्यादि महत्वपूर्ण पदार्थ भी पाये जाते हैं.
मधु भोजन के रूप में, मधु दवा के रूप में, एवं सौन्दर्य प्रसाधन के रूप में प्रयोग किया जाता है.
मधुमक्खी पालन (Bee Keeping)
मैदानी भाग में इस कार्य को शुरू करने का उपयुक्त समय अक्टूबर और फरवरी में होता है. इस समय एक स्थापित मौन वंशों से प्रथम वर्ष में 20 से 25 किलोग्राम दूसरे वर्ष से 35-40 किलोग्राम मधु का उत्पादन हो जाता है. स्थापना का प्रथम वर्ष ही कुछ महंगा पड़ता है. इसके बाद केवल प्रतिवर्ष 8 या 10 किलोग्राम चीनी एवं 0.500 किलोग्राम मोमी छत्ताधर का रिकरिंग खर्च रहता है. प्रति मौन वंश स्थापित करने में लगभग 2450 रूपये व्यय करना पड़ता है. उद्यान विभाग द्वारा तकनीकी सलाह मुफ्त दी जाती है. मधुमक्खी पालकों की मधुमक्खियों का प्रत्येक 10वें दिन निरीक्षण जो अत्यन्त आवश्यक है, विभाग में उपलब्ध मौन पालन में तकनीकी कर्मचारी से कराया जाता है.
मधु बाहर निकालाना (Honey Extrusion)
आधुनिक तरीके से मधु बाहर निकाला जाता है, जिसमें अंडे बच्चे का चैम्बर अलग होता है. शहद चैम्बर में मधु भर जाता है. मधु भर जाने पर मधु फ्रेम सील कर दिया जाता है. शील्ड भाग को चाकू से परत उतारकर मधु फ्रेम से निष्कासक यंत्र में रखने से तथा उसे चलाने से सेन्ट्रीफ्यूगल बल से शहद निकल आता है तथा मधुमक्खियों का पुनः मधु इकट्ठा करने के लिए दे दिया जाता है. इस प्रकार मधुमक्खी वंश का भी नुकसान नहीं होता है तथा मौसम होने पर लगभग पुनः शहद का उत्पादन हो जाता है.
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मधुमक्खी पालन से आर्थिक आय-व्यय (Financial income and expenditure from beekeeping)
मधुमक्खी पालन से फलों, सब्ज़ियों, दलहनी और तिलहनी फसलों पर परागण के द्वारा उपज की बढ़ोत्तरी तो होती ही है, इसके साथ-साथ इसके द्वारा उत्पादित मधु, मोम का लाभ भी मिलता है. स्थापना के प्रथम वर्ष में तीन मौन वंश ( मधुमक्खी) से 20-25 किलोग्राम मधु का उत्पादन करके लगभग 2000 से 2500 रूपये की आय प्रति वर्ष होती है. दूसरे वर्ष में केवल 300 से 350 रूपये व्यय करके मधु का उत्पादन करके लगभग 3500 रूपये से 4000 रूपये तक की प्रतिवर्ष आय की जा सकती है.