जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है वैसे-वैसे इसका असर हिमाचल प्रदेश के पारंपरिक सेब उत्पादन पर लगातार पड़ रहा है. तापमान में हो रही बढ़ोतरी के कारण ये सेब हिमालय के अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों तक सिमट कर रह गया है. इसके अलावा सेब की नई किस्मों की बदौलत निचले पर्वतीय इलाकों में भी सेब की खेती करना बेहद ही आसान हो गया है. इन किस्मों की खास बात यह है कि इनके उत्पादन के लिए अधिक ठँडे मौसम की जरूरत नहीं होती है.
फलों की बढ़ोतरी हो रही है प्रभावित
दरअसल बरसात के चक्र और लगातार तापमान में हो रही बढ़ोतरी से शीतोष्ण फल उत्पादन पट्टी ऊपर की ओर खिसकती जा रही है. इससे फलों के उत्पादन में उल्लेखनीय उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहे है. साथ ही सर्दियों में भी गर्म तापमान जैसे प्रतिकूल जयवायु परिवर्तनों के कारण फूलों और फलों की बढ़ोतरी सीधे तौर पर प्रभावित हुई है. साथ ही हिमाचल प्रदेश में सेब उत्पादकता में काफी गिरावट देखने को मिली है.
नई तकनीक से हो रहा प्रयोग
उत्तराखंड के जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति के मुताबिक - हिमालय की अधिक ऊंचाई पर खिसक रही सेब उत्पादन पट्टी के बारे में लगातार सुनते हुए आए है, साथ ही ये अब कम ऊंचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों में भी उगाए जाने लगे है, जहां पहले सेब की खेती नहीं हुई थी. ऐसा नई तकनीकों के माध्यम से संभव हुआ है.
किसानों को सेब उत्पादन से फायदा
कुलपति डॉ तेज प्रताप का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के अलावा, प्रौद्योगिकी और भूमंडलीकरण पहाड़ों में परिवर्तन के नये कारक उभर कर आए है. पिछले कई वर्षों में इंटरनेट के अलावा अन्य माध्यमों से दुनिया के किसानों से हिमालय के किसानों का संपर्क तेजी से बढ़ा है जिससे किसानों को तेजी से फायदा भी हो रहा है. कई किसान नये तरीके की संरक्षित कृषि को अपनाकर ऐसी पर्वतीय खेती करने का कार्य कर रहे है, जिनकी मार्केटिंग विश्व बाजार में हो रही है.
ये है सेब उत्पादन के लिए अनुकूल वातावरण
सेब के उत्पादन के लिए सबसे अनुकूल वातावरण 22 से 24 डिग्री तक का तापमान होता है. अगर देश में सेब के उत्पादन की बात करें तो सेब की उच्च व सही पैदावार के लिए उपयुक्त उत्पादन क्षेत्र अब केवल शिमला, कुल्लू, चंबा की पहाड़ियों, किन्नौर व स्पीति क्षेत्रों के शुष्क समशीतोष्ण भागों तक ही सीमित रह गए है. सेब के उत्पादन के लिए मध्यम उपयुक्त क्षेत्र भी हिमाचल में काफी कम बचे हुए है. कई बार बढ़ती बारिश और बैमौसम औलावृष्टि के चलते सेब उत्पादन काफी प्रभावित हुआ है. महाराष्ट्र के बाद हिमाचल प्रदेश ओलावृष्टि के कारण सबसे अधिक प्रभावित होने वाला देश का दूसरा राज्य बन गया है. कुछ किसान कम ठंड में उगने वाले सेब की भी सक्षम खेती करने में लगे हुए है. लेकिन इनकी गुणवत्ता ठीक नहीं होती है.