Maize Farming: रबी सीजन में इन विधियों के साथ करें मक्का की खेती, मिलेगी 46 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार! पौधों की बीमारियों को प्राकृतिक रूप से प्रबंधित करने के लिए अपनाएं ये विधि, पढ़ें पूरी डिटेल अगले 48 घंटों के दौरान दिल्ली-एनसीआर में घने कोहरे का अलर्ट, इन राज्यों में जमकर बरसेंगे बादल! केले में उर्वरकों का प्रयोग करते समय बस इन 6 बातों का रखें ध्यान, मिलेगी ज्यादा उपज! भारत का सबसे कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर, 5 साल की वारंटी के साथ Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Mahindra Bolero: कृषि, पोल्ट्री और डेयरी के लिए बेहतरीन पिकअप, जानें फीचर्स और कीमत! Multilayer Farming: मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक से आकाश चौरसिया कमा रहे कई गुना मुनाफा, सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपये तक घर पर प्याज उगाने के लिए अपनाएं ये आसान तरीके, कुछ ही दिन में मिलेगी उपज!
Updated on: 12 February, 2019 3:11 PM IST

जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है वैसे-वैसे इसका असर हिमाचल प्रदेश के पारंपरिक सेब उत्पादन पर लगातार पड़ रहा है. तापमान में हो रही बढ़ोतरी के कारण ये सेब हिमालय के अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों तक सिमट कर रह गया है. इसके अलावा सेब की नई किस्मों की बदौलत निचले पर्वतीय इलाकों में भी सेब की खेती करना बेहद ही आसान हो गया है. इन किस्मों की खास बात यह है कि इनके उत्पादन के लिए अधिक ठँडे मौसम की जरूरत नहीं होती है.

फलों की बढ़ोतरी हो रही है प्रभावित

दरअसल बरसात के चक्र और लगातार तापमान में हो रही बढ़ोतरी से शीतोष्ण फल उत्पादन पट्टी ऊपर की ओर खिसकती जा रही है. इससे फलों के उत्पादन में उल्लेखनीय उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहे है. साथ ही सर्दियों में भी गर्म तापमान जैसे प्रतिकूल जयवायु परिवर्तनों के कारण फूलों और फलों की बढ़ोतरी सीधे तौर पर प्रभावित हुई है. साथ ही हिमाचल प्रदेश में सेब उत्पादकता में काफी गिरावट देखने को मिली है.

नई तकनीक से हो रहा प्रयोग

उत्तराखंड के जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति के मुताबिक - हिमालय की अधिक ऊंचाई पर खिसक रही सेब उत्पादन पट्टी के बारे में लगातार सुनते हुए आए है, साथ ही ये अब कम ऊंचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों में भी उगाए जाने लगे है, जहां पहले सेब की खेती नहीं हुई थी. ऐसा नई तकनीकों के माध्यम से संभव हुआ है.

किसानों को सेब उत्पादन से फायदा

कुलपति डॉ तेज प्रताप का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के अलावा, प्रौद्योगिकी और भूमंडलीकरण पहाड़ों में परिवर्तन के नये कारक उभर कर आए है. पिछले कई वर्षों में इंटरनेट के अलावा अन्य माध्यमों से दुनिया के किसानों से हिमालय के किसानों का संपर्क तेजी से बढ़ा है जिससे किसानों को तेजी से फायदा भी हो रहा है. कई किसान नये तरीके की संरक्षित कृषि को अपनाकर ऐसी पर्वतीय खेती करने का कार्य कर रहे है, जिनकी मार्केटिंग विश्व बाजार में हो रही है.

ये है सेब उत्पादन के लिए अनुकूल वातावरण

सेब के उत्पादन के लिए सबसे अनुकूल वातावरण 22 से 24 डिग्री तक का तापमान होता है. अगर देश में सेब के उत्पादन की बात करें तो सेब की उच्च व सही पैदावार के लिए उपयुक्त उत्पादन क्षेत्र अब केवल शिमला, कुल्लू, चंबा की पहाड़ियों, किन्नौर व स्पीति क्षेत्रों के शुष्क समशीतोष्ण भागों तक ही सीमित रह गए है. सेब के उत्पादन के लिए मध्यम उपयुक्त क्षेत्र भी हिमाचल में काफी कम बचे हुए है. कई बार बढ़ती बारिश और बैमौसम औलावृष्टि के चलते सेब उत्पादन काफी प्रभावित हुआ है. महाराष्ट्र के बाद हिमाचल प्रदेश ओलावृष्टि के कारण सबसे अधिक प्रभावित होने वाला देश का दूसरा राज्य बन गया है. कुछ किसान कम ठंड में उगने वाले सेब की भी सक्षम खेती करने में लगे हुए है. लेकिन इनकी गुणवत्ता ठीक नहीं होती है.

English Summary: Fate of farmers changing from Himalaya to apple production
Published on: 12 February 2019, 03:22 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now