आज देशभर में महाशिवरात्रि का पर्व पूरे हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है. इस माह में आने वाली शिवरात्रि पूरे साल में आने वाली 12 शिवरात्रियों में सबसे खास होती है। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी के दिन आने वाली महाशिवरात्रि सबसे बड़ी महाशिवरात्रि होती है. इसीलिए आज के दिन शिव मंदिरों में काफी ज्यादा भीड़ उमड़ती है देर रात से ही शिवालयों में भक्तों की लंबी कतारें लगना शुरू हो जाती है। इस दिन लोग उपवास रखते है और शिवलिंग पर बेलपत्र को चढ़ाते है। इसके साथ ही लोग पूरे विधि-विधान के साथ भगवान शिव की पूजा अर्चना करते है। महाशिवरात्रि का दिन भगवान शिव और शाक्ति के संगम का दिन यानी की अर्धनारीश्वर का होता है. इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से सारे कष्ट दूर हो जाते है और भक्तों पर भोलेनाथ की कृपा हमेशा बनी रहती है.
महाशिवरात्रि व्रत रखने से फायदा
महाशिवरात्रि के पर्व पर व्रत रखने से तन और मन का पूरी तरह से शुद्धिकरण होता है। इस दिन व्रत रखने से रक्त शुद्ध होने के साथ पेट की आंतों की सफाई होती है. व्रत करने से उत्सर्जन तंत्रों और अमाशय दोनों को अशुद्धियों से पूरी तरह से राहत मिलने लगती है. श्वास संबंधी परेशानी से छुटकारा मिलने लगता है। अगर आप उपवास रखते है तो इससे कलोस्ट्रोल नियंत्रित रहता है और आपकी स्मरण
क्यों मनाया जाता है महाशिवरात्रि का पर्व
महाशिवरात्रि का पर्व पूरे उल्लास के साथ मनाया जाता है. इसको मनाने के पीछे अलग-अलग धार्मिक और पौराणिक मान्याताएं प्रचालित है-
पहली पौराणिक मान्यता के अनुसार, आज के दिन भगवान शिव, शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे और इसी दिन पहली बार शिवलिंग की भगवान विष्णु और सृष्टि के रचियता ब्रह्मा जी ने पूजा की थी। माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही ब्रह्मा जी ने शिवजी के रौद्र रूप को प्रकट किया था.
महाशिवरात्रि को मनाने के पीछे दूसरी मान्यता यह है कि 'आज ही के दिन भगवान शंकर और पार्वती का विवाह हुआ था। इसी वजह से नेपाल में सभी शिव मंदिरों को शिवरात्रि के तीन से चार दिन पहले ही सजाना शुरू कर दिया जाता है। इसके साथ ही शिव और पार्वती को दूल्हा-दुल्हन बनाकर पूरे शहर में घुमाया जाता है। फिर उनका विवाह करवाया जाता है.
तीसरी मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान शिव ने विष पीकर पूरे संसार को विष के प्रकोप से बचाया था. इसीलिए इस दिन महाशिवरात्रि के पर्व को मनाया जाता है। दरअसल सागर मंथन के दौरान जब अमृत के लिए देवताओं और दानवों के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था. उसी समय अमृत कलश से पहले कालकूट नामक एक विष का कलश निकला था. यह इतना भयानक था कि इस विष से पूरा ब्राह्मांड नष्ट हो सकता था लेकिन भगवान शिव ने इस विष का पान कर अपने कंठ में धारण कर लिया था. तभी से वह नीलकंठ कहलाने लगें.