दिल्ली के 30 वर्षीय इंजीनियर अर्पित धूपर ने अपने कठिन प्रयास से पराली को जलाने से बचाने के लिए इसे एक नई बायोडिग्रेडेबल सामग्री के रुप में बदल दिया. उन्होंने अपने वेंचर धारक्षा इकोसिस्टम्स के माध्यम से इस इनोवेशन को नया आयाम दिया है.
अर्पित वर्ष 2009 में पंजाब और हरियाणा राज्य के किसानों से बात कर वहां से पराली इकट्ठा करना शुरु किया और इससे बायोडिग्रेडेबल सामान जैसे की कप, प्लेट और थालिया बनाने का काम शुरु किया. इनके इस कदम से पर्यावरण में फैलने वाल प्रदूषण तो काफी कम हुआ इसके साथ ही लोगों को सस्ते दामों पर कटलेरी भी मुहैया करवाने लगा.
अर्पित बताते हैं कि उन्होंने साल 2009 में पंजाब और हरियाणा के गांवों में जाकर वहां के किसानों से पराली जलाने का वास्तविक कारण पता किया और वहां पता चला कि किसान अपने खेतों से जल्द से जल्द पराली को हटाने के लिए उसे जला देते हैं. ऐसे में उन्होंने फिर किसानों से पराली जलाने की बजाय इसे इकट्ठा कर उन्हें बेचने के लिए प्ररित किया. इससे किसानों को एक अतिरिक्त आय का साधन तो मिला ही और साथ ही उनके स्टार्ट अप को सस्ते दाम पर पराली भी मिलने लगी.
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उन्होंने यहा से इकट्ठा की गई पराली अपने फैक्टरी में मशरुम के माध्यम से सड़ा कर कटलरी बनाने का काम शुरु किया. मशरुम के माध्यम से बनने वाला यह उत्पाद थर्माकोल की ही तरह होता है लेकिन पूरी तरह से बायोडीग्रेडबल होता है. उन्होंने बताया कि पराली को फैक्टरी में लाने के बाद इसे पूरी तरह से रोगाणु मुक्त किया जाता है और उसके बाद मशरुम कल्चर कर थर्माकोल तैयार किया जाता है.
यह कटलेरी लौ प्रूफ होती हैं और उच्च नमी को भी सहन कर सकती हैं. मशरुम कल्चर से पराली में एक प्रकार की इंटरलॉक संरचना बनती है जो कटलेरी को मजबूत आकार देती है और फिर मिश्रण से बने इस ढांचे को ओवन में डाल दिया जाता है, जहां मशरूम बेअसर हो जाते हैं और कटलेरी तैयार हो जाती है.
इस स्टार्टअप ने पंजाब और हरियाणा के गांवों से 100 एकड़ खेत से 250 टन से अधिक धान की पराली खरीदी है, और पिछले वर्ष लगभग 25 लाख रुपये का कारोबार किया है.