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Updated on: 24 January, 2022 11:50 AM IST
One Health Challenges

1800 के दशक के मध्य से एक जर्मन विद्वान, रूडोल्फ विरचो, जो एक किसान परिवार से आते थे, वन हेल्थ के शुरुआती प्रस्तावक थे. उन्होंने कहा, ‘‘पशु और मानव चिकित्सा के बीच कोई विभाजन रेखा नहीं है और ना ही होनी चाहिए. उद्देश्य अलग है लेकिन प्राप्त अनुभव ही सभी औषधियों का आधार है.

मनुष्यों, जानवरों और रोगजनकों सहित जीवित प्राणियों के बीच एक ही वातावरण को साझा करने वाली बातचीत को एक अद्वितीय गतिशील प्रणाली के रूप में माना जाना चाहिए, जिसमें प्रत्येक घटक का स्वास्थ्य अटूट रूप से जुड़ा हुआ है और दूसरों के साथ निर्भर है. वन हेल्थ इस विचार को स्वीकार करता है कि मानव-पशु-पर्यावरण इंटरफेस में जटिल समस्याओं को बहु-विषयक संचार और सहयोग के माध्यम से सबसे अच्छा हल किया जा सकता है. राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों द्वारा वन हेल्थ को पशु-मानव-पर्यावरण इंटरफेस में जटिल मुद्दों को संबोधित करने के लिए, सबसे रचनात्मक दृष्टिकोण के रूप में तेजी से स्वीकार किया जा रहा है.

वन हेल्थ की आवश्यकता

मानव जनसंख्या में वृद्धि, औद्योगीकरण, और भू-राजनीतिक समस्याएं वैश्विक परिवर्तनों में तेजी लाती हैं, जिससे जैव विविधता को महत्वपूर्ण नुकसान होता है, पारिस्थितिक तंत्र की व्यापक गिरावट होती है और सामान्य रूप से मानव जाति और प्रजातियों दोनों का काफी प्रवासी आंदोलन होता है. तेजी से होने वाले ये पर्यावरणीय परिवर्तन, संक्रामक और गैर-संक्रामक रोगों के उभरने से सम्बंधित हैं.

खाद्य उत्पादन करने वाले जानवरों के कई मौजूदा संक्रामक रोग बड़े सामाजिक-आर्थिक प्रभाव का कारण बनते हैं. इनमें से कुछ रोग कई विकासशील देशों में स्थानिक हैं, जहां उनकी उपेक्षा की गई है. उदाहरण के लिए, पैर और मुंह की बीमारी (एफएमडी), लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के बड़े हिस्से में स्थानिक है, जिससे महत्वपूर्ण उत्पादन नुकसान होता है और गरीब किसान समुदायों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. एफ.एम.डी. विकसित और उभरती अर्थव्यवस्थाओं की व्यापार संभावनाओं को भी गंभीर रूप से खतरे में डालता है.

खाद्य पदार्थो व जल से उत्पन्न संक्रामक जूनोटिक रोग जैसे गाय में बोवाइन स्पॉन्जिफॉर्म एनसिफलॉपैथी (बी.एस.ई), मनुष्य में क्रुत्जफेल्ट-जैकोब रोग, हैजा, साल्मोनेला रोग, हिपैटाइटिस ए, नोरोवायरस, फीताकृमि संक्रमण, ट्राइकाइनेला, इकाइनोकोकोसिस आदि पशु प्रबंधन व पशुओ द्वारा प्राप्त खाद्य पदार्थो से सम्बंधित है.

कई वेक्टर-जनित रोग पशु-मानव इंटरफेस में उन देशों और क्षेत्रों में उभर रहे हैं जो पहले प्रभावित नहीं थे जहां वे बड़ी महामारी का कारण बन सकते  हैं. हाल ही में, रिफ्ट वैली फीवर (आर.वी.एफ), वेस्ट नाइल डिजीज (डब्ल्यू.एन.डी), ब्लूटंग, क्यू फीवर और डेंगू नए क्षेत्रों  में उभरे हैं, जो कम संसाधन वाली पशु चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को चुनौती दे रहे हैं. 

कृषि और खेती के औद्यौगिकीकरण के कारण अनेक कीटनाशकों, उर्वरकों तथा एन्टीबायटिक दवाओं का प्रयोग कर मच्छर जनित रोगो जैसे- आरबोवाइरस, फाइलेरिआ संक्रमण आदि से अवश्य बचाव हुआ है किन्तु साथ ही साथ एंटीबायोटिक दवाओं के लिए प्रतिरोध की समस्या भी पैदा हो गयी है. एंटीबायोटिक प्रतिरोध हमारे समय की सबसे बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक है.

अतः जानवरों और उनके उत्पादों के साथ हमारी बढ़ती निर्भरता ने मानव चिकित्सा और पशु चिकित्सा व्यवसायों को इस तरह के दृष्टिकोण को पढ़ने के लिए प्रेरित किया है. इसने स्वास्थ्य जोखिमों के बढ़ते वैश्वीकरण और रोगजनकों के विकास और उद्भव में मानव-पशु-पारिस्थितिकी तंत्र इंटरफेस के महत्व पर प्रकाश डाला है. पशु, मानव और पर्यावरणीय स्वास्थ्य में विशेषज्ञों के बीच भागीदारी और संचार वन हेल्थ दृष्टिकोण का एक अनिवार्य हिस्सा है. एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण में साझा स्वास्थ्य खतरों पर काम करने वाले अन्य साझेदार और संगठन भी शामिल हो सकते हैं.

पहल -

  • सी.डी.सी और ए.फए.ओ. द्वारा फील्ड महामारी विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रम, सी.डी.सी द्वारा जोहू कॉल।

  • यू.एस.ए.आई.डी द्वारा वित्त पोषित प्रेडिक्ट कार्यक्रम

  • एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम

  • 1950 के दशक के उत्तरार्ध में ‘क्यासुनूर फारेस्ट डिसीज‘ से निपटने में एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण का प्रयोग किया था

  • 2018 में ‘निपाह वाइरस‘ से लड़ने में ‘केरल मॉडल‘ का प्रयोग

  • नागपुर में ‘वन हेल्थ केंद्र‘ स्थापित करने के लिए धनराशि स्वीकृत की गयी है

  • नेशनल मिशन ऑन बायोडाइवर्सिटी एंड ह्यूमन वैल बींग‘ की शुरुआत ‘वन हेल्थ‘ दृष्टिकोण के अंतर्गत ही की गयी है

लाभ -

  • विश्व स्तर पर पशु और मानव स्वास्थ्य में सुधार

  • सहयोग के माध्यम से नई वैश्विक चुनौतियों का सामना करना

  • शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए उत्कृष्टता केंद्र विकसित करना

  • रोग प्रबंधन में देरी से होने वाली लागत में कमी

  • स्वास्थय सुधार के लिए बनने वाले कार्यक्रमों में वैज्ञानिक ज्ञान का प्रयोग

  • पशु चिकित्सकों के लिए व्यावसायिक अवसरों में वृद्धि

चुनौतियाँ -

  • भारत में 482 मेडिकल कॉलेज और 47 पशुचिकित्सा कॉलेज हैं लेकिन अधिकांश बहुत कम या कोई शोध नहीं करते हैं.

  • भारतीय उपमहाद्वीप जूनोटिक, दवा प्रतिरोधी और वेक्टर जनित रोगजनकों के लिए एक ‘हॉटस्पॉट‘ है। लेकिन हम प्रमुख खतरों के बारे में बहुत कम जानते हैं.

  • सरकारी संरचना और अंतर क्षेत्रीय समन्वय भी विभिन्न मंत्रालयों द्वारा नियंत्रित मानव, पशु पर्यावरण स्वास्थ्य के साथ बहुत कम बातचीत के साथ समस्याग्रस्त है.

  • हाल ही में स्वीकृत राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति भी एक चूक का अवसर है। यह ‘ जूनोसिस ‘ और ‘उभरते संक्रामक रोगों‘ का जिक्र तक करने में विफल रहता है.

निष्कर्ष -

  • वैश्विक स्तर पर रोगो की स्थिति अत्यंत जटिल है.

  • उभरते हुए जूनोटिक रोग अप्रत्याशित और अभूतपूर्व है.

  • तो एक स्वास्थ्य में निवेश करें.

  • एक स्वास्थ्य एक छतरी की तरह है जिसके नीचे सभी स्वास्थ्य विशेषज्ञ काम करते हैं.

लेखक

डा० अफरोज, डा० श्रिया रावत, डा० आदित्य कुमार, डा० अरबिंद सिंह, डा० अमित कुमार वर्माएवं डॉ0 राजपाल दिवाकर

पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय, मोदीपुरम, मेरठ

पशुचिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय, आ0 नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या

English Summary: The need and challenges of One Health
Published on: 24 January 2022, 12:00 PM IST

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