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Updated on: 26 August, 2023 12:57 PM IST
Participation of women to increase agricultural production

सन 2011 की एक रिपोर्ट को देखे तो यह बात जानने में आई थी कि हिमाचल क्षेत्र में प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष एक पुरुष औसतन 1211 घंटा और एक महिला औसतन 3485 घंटे कार्य करती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि महिलाओं को कृषि संबंधित तकनीकी ज्ञान, वैज्ञानिक ज्ञान, बाजार की समझ और समान अधिकार दिए जाएं तो कृषि में मुनाफे को काफी हद तक बढ़ाया जा सकता है। इनकी उपयोगिता को सही दिशा और दशा दोनों की आवश्यकता है।

हमें शामली जैसी महिलाओं की भी जरूरत है जो अपने अधिकारों के लिए बोलना और उन्हें लेना भी जानती हो। अगस्त 2017 की तारीख 29 - 30 देश भर की महिला किसानों के लिए एक जरूरी दिन था। राष्ट्रीय महिला आयोग और यूएन वीमेन ने महिला अधिकार मंच के साथ मिलकर महिला किसानों की समस्याओं को सरकार तक पहुंचाने के लिए कई राज्य और केंद्र स्तरीय कृषि अधिकारियों को बुलाया था। इस सभा में केंद्रीय कृषि मंत्री भी महिलाओं से उनकी समस्याएं सुनने के लिए आमंत्रित थे। कांस्टीट्यूशन क्लब दिल्ली, महिला किसानों से खचाखच भरा था। इन्हीं में से एक महिला किसान की बुलंद आवाज और अपने अधिकारों की लड़ाई की कहानी मंच से गूंज रही थी। यह महिला किसान थी मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल इलाके के मंडला की शामली। शामली ने विवाह के बाद अपने पिता से अपने हिस्से की जमीन खेती के लिए मांगी। भारतीय समाज में जहां बेटियों को सिर्फ दहेज दिया जाता है, दहेज के बाद उन्हें मायके के जमीन-जायदाद में हिस्सेदारी नहीं दी जाती। वही शामली को यह हक पाने के लिए कड़ी लड़ाई करनी पड़ी लेकिन वे जीत गई। शामली कहती है, मैं बचपन से खेती करते हुए बड़ी हुई हूं। मैं एक किसान हूं। लेकिन अपनी इच्छा से अपने हिसाब से खेती करने का हक मुझे तभी मिल सकता था जब मेरे पास अपनी जमीन हो, जिसका मेरे पास मालिकाना हक हो। मुझे अपने दो भाइयों के सामने खेती हेतु जमीन पाने के लिए पिताजी को समझाने में मुश्किलें तो आई लेकिन मैं कामयाब हुई। मैंने अपने अधिकारों का इस्तेमाल किया और अब मैं अपनी जमीन पर अपने हिसाब से खेती कर रही हूं।

नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के आंकड़े के मुताबिक देश के 23 राज्यों में कृषि, वानिकी और मछली पालन में कुल श्रम शक्ति का 50 फ़ीसदी भाग महिलाओं का है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के डीआरडब्ल्यूए की ओर से नौ राज्यों में किए गए एक शोध से पता चला है कि प्रमुख फसलों के उत्पादन में महिलाओं की 75 फ़ीसदी भागीदारी, बागवानी में 79 फ़ीसदी और कटाई के बाद कार्यों में 51 फीसदी महिलाओं की हिस्सेदारी होती है।

महिलाओं को दिनभर की मजदूरी ₹100 भी मिल जाए तो वे संतुष्ट रहती हैं। जबकि पुरुषों के साथ ऐसा नहीं है। यह भी कृषि में महिलाओं के योगदान को उचित स्थान न मिल पाने का एक कारण है। वे मेहनत उतनी ही करती हैं या शायद उससे ज्यादा भी लेकिन उन्हें मेहनताना बराबर नहीं मिलता क्योंकि शायद महिलाओं को पुरुष के बराबर मंजूरी देने का प्रावधान नहीं है। या उन्हें उस लायक नहीं समझा जाता। या हमारे देश में मेहनत को ताकत से तोला जाता है।

पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं पर कृषि का भार बढ़ा है क्योंकि पुरुष खुद बाहर निकलकर ज्यादा पैसा कमाने के बारे में सोचता है। आजकल हर चीज पैसे से खरीदी जाती है ऐसे में पैसे की कीमत तो समझनी होगी। पर इस सब में महिलाओं की संख्या भी कृषि श्रमिकों के रूप में बढ़ी है न कि कृषकों  (इनमें भी अधिकतर महिला किसानों के पास जमीन के मालिकाना हक नहीं है) के रूप में। भारत की पिछले दो जनगणना को आधार बनाएं तो सन 2001 में खेती से जुड़ी कुल महिलाओं का 54.2 प्रतिशत हिस्सा कृषि श्रमिक थी जबकि बाकी 45.8 फीसदी महिलाएं कृषक के तौर पर इससे जुड़ी थीं। वही सन 2011 की जनगणना में कृषकों की संख्या घटी है। इसमें महिला कृषि श्रमिकों का आंकड़ा तो बढ़कर 63.1 फीसदी हो गया और कृषक का आंकड़ा घटकर 36,9 फीसदी रह गया।

हालांकि सन 2015 व 16 के आंकड़े में हमने देखा कि महिलाओं के नाम जोत के मालिकाना हक का मामला कुल प्रतिशत में 1 प्रतिशत से बढ़ा है। पर यह अब भी बहुत छोटा है। ऐसे में हम उम्मीद ही कर सकते हैं कि यह महिलाएं जो अपने आपको खेतों में खर्च कर रही हैं और बराबरी से मेहनत कर रही हैं, जो कुछ नया करने या सीखने के प्रति जागरूक हैं, लालायित हैं।

उन्हें यदि पुरुष किसान के बराबर खड़ा किया जाए, न सिर्फ मालिकाना हक के मामले में बल्कि किसान की छवि को भी हल जोतते एक पुरुष से हटाकर एक संयुक्त छवि के रूप में देखा जाए तो कृषि क्षेत्र में भी उज्जवल भविष्य और बेहतर संभावनाओं को प्राप्त किया जा सकेगा। रबीन्द्रनाथ चौबे ब्यूरो चीफ कृषि जागरण बलिया उत्तरप्रदेश।

English Summary: Participation of women to increase agricultural production
Published on: 26 August 2023, 12:59 PM IST

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