हिन्दू धर्म की सुहागिन महिलाओं के लिए करवा चौथ का व्रत बेहद खास माना जाता है. इस व्रत का महिलाएं सालभर इंतजार करती है. यह एक पवित्र व्रत है जिसमें महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती है. छादोग्य उपनिषद में इस बात का जिक्र किया गया है कि यदि महिलाएं चंद्रमा में पुरूष रूपी ब्रम्हा की पूजा करें तो वे अपने सारे पापों से मुक्त हो जाती है. इस व्रत को सुहागिन महिलाओं के लिए अखंड सौभाग्य का व्रत माना गया है. हिन्दी पंचाग के मुताबिक प्रत्येक वर्ष कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि करवा चौथ का व्रत रखा जाता है. आमतौर पर करवाचौथ का व्रत दीपावली से 10 या 11 दिन पहले पड़ता है. 2020 में करवाचौथ व्रत 04 नवंबर को बुधवार के दिन है. इस दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर अपने पति की लंबी उम्र और सुखद जीवन की कामना करती है. दिनभर के व्रत के बाद रात को महिलाएं या युवतियां चंद्रमा को देखकर अपने पति के हाथों जल ग्रहण करके व्रत को संपूर्ण करती है. तो आइए जानते हैं करवाचौथ व्रत का महत्व, शुभ मुहूर्त और चांद को देखने का महत्व-
पूजा का शुभ मुहूर्त
हिन्दी पंचाग के अनुसार, इस साल 04 नवंबर को तड़के 03 बजकर 24 मिनट पर कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का प्रारंभ होगा. वहीं इसका समापन गुरूवार 05 नवंबर को प्रातःकाल 05 बजकर 14 मिनट पर होगा. इसलिए इस वर्ष करवाचैथ का व्रत बुधवार यानि 4 नवंबर को रखा जाएगा. पूजा का शुभ मुहूर्त इस दिन शाम में 1 घंटा 18 मिनट के लिए होगा. यह समय है शाम 5:34 से 6:52 तक. इसके बीच महिलाओं को पूजा कर लेना चाहिए.
व्रत का सही समय
बुधवार 4 नवंबर को महिलाएं सुबह 6:35 बजे से रात 8:12 बजे तक करवाचैथ का व्रत रखेगी. यानी व्रत के लिए 13 घंटे 37 मिनट का समय है.
चंद्रमा की पूजा कब करें
बता दें करवाचौथ के व्रत को पूरा करने के लिए चंद्रमा को देखना जरुरी माना जाता है. इस साल यानि 04 नवंबर को चंद्रमा का उदय शाम 8 बजकर 12 मिनट पर होगा.
चंद्रमा की पूजा क्यों की जाती है?
करवाचौथ का व्रत करने वाली महिलाओं और युवतियों के लिए चंद्रमा की पूजा करने का विशेष महत्व होता है. दरअसल, ऐसा माना जाता है कि करवाचौथ के व्रत से पति और पत्नी के आपसी रिश्तों में मजबूती मिलती है और चंद्रमा की पूजा करने से पति को लंबी उम्र प्राप्त होने के साथ घर में सुख-शांति की प्राप्त होती है. वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए ही चंद्रमा की पूजा की जाती है.
करवाचौथ से जुड़ी कथा क्या है?
करवाचौथ को पौराणिक महत्व है. कहा जाता है कि पुराने समय में किसी नगर में एक साहूकार निवास करता था. उसके 7 बेटे और एक बेटी थी. करवाचौथ के दिन साहूकार की पत्नी, बेटी और सातों बहुओं ने यह व्रत रखा था. जब शाम को साहूकार और उसके बेटे भोजन करने आए तो उनसे उनकी बहन का भूखा रहना देखा नहीं जा रहा था. इसलिए उन्होंने अपनी बहन को उनके साथ खाना खाने के लिए कहा. लेकिन अपने भाइयों को बहन ने भोजन करने से मना कर करते हुए कहा कि वह चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन ग्रहण करेगी. इसके बाद साहूकार और उसके भोजन करके नगर से निकल गए और दूर कहीं जंगल में आग लेकर बैठ गए. जिसे देखकर साहूकार की बेटी ने समझा कि चांद निकल आया और उसने अपना व्रत तोड़ दिया. जिसके उसका पति बीमार रहने लगा वहीं घर में भी अशांति और दरिद्रता ने प्रवेश कर लिया. जब साहूकार की बेटी को उसकी भूल का पता चला तो उसने भगवान गणेश की विधि विधान से पूजा की. गणेशजी की कृपा से साहूकार का पति ठीक हो गया वहीं घर में संपन्नता आ गई. तब से ही इस खास व्रत को महिलाए रखने लगी.
क्या है करवा चौथ के व्रत का नियम?
सुहागिन महिलाएं करवा चौथ का व्रत का आरंभ सूर्य उदय होने से पहले करती है, वहीं चंद्रमा निकलने के बाद समाप्त करती है. दरअसल, महिलाएं चंद्रमा की पूजा के बाद अपना उपवास समाप्त कर देती है. बता दें कि चंद्रमा को अर्घ्य देने के एक घंटे पहले महिलाएं भगवान शिव के परिवार यानी शिव, पार्वती, नंदी और कार्तिकेय की पूजा करती है. इस दौरान इस बात का विशेष ध्यान देना चाहिए कि पूजा के समय व्रती को पूर्व दिशा की तरफ मुख रखकर बैठना चाहिए. करवा चौथ के दिन महिलाएं निर्जला व्रत के बाद शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए अपने पति को छलनी में दीपक रखकर देखती है. वहीं पति अपनी पत्नी को जल पिलाकर उसका व्रत तुड़वाता है.
पहली बार व्रत रखने वाली सुहागिन क्या ध्यान रखें -
हर साल की तरह इस बार भी कुछ युवतियां ऐसी होगी जो पहली बार अपने पति के लिए करवा चौथ का व्रत रखेगी. तो आइए जानते हैं नव सुहागिनों को पहले व्रत पर क्या विशेष ध्यान रखना चाहिए-
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व्रत रखने वाली युवतियां और महिलाओं को पूजा के दौरान 16 श्रृंगार करके बैठना चाहिए. वहीं पहली बार व्रत करने वाली युवतियों को पूजा में शादी का जोड़ा पहनकर बैठना चाहिए. यदि यह संभव नहीं है तो उन्हें लाल साड़ी या फिर लाल लहंगा पहनना चाहिए. वहीं पहले व्रत पर उन्हें दुल्हन की तरह सज-धज कर बैठने का विशेष महत्व है.
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करवा चौथ का पहला व्रत रखने वाली महिला और युवतियों को सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद अपने बड़ों को आशीर्वाद लेना चाहिए. इससे घर-परिवार में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है. वहीं नव-विवाहिता को सास द्वारा पहले करवा चौथ के व्रत के दौरान सरगी के रूप में मिठाईयां, कपड़े और श्रृंगार का सामान प्रदान किया जाता है
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पहला करवा चौथ कर रही महिलाओं को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि जिस प्रकार व्रत रखने का अपना महत्व है उसी तरह से करवा चौथ व्रत की कथा सुनने का भी महत्व है. कथा सुनना शुभ और फलदायी माना जाता है.
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करवा चौथ का व्रत महिलाएं बड़ी संख्या में इकट्ठा होकर भी करती है. इस दौरान सभी व्रती महिलाएं कथा सुनने के बाद पूजा करती है. ऐसे में एक साथ गीत-भजन गाने का विशेष महत्व होता है.
ये हैं पूजन विधि
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महिलाएं व्रत के दिन सूर्य उदय से पहले उठ जाए और स्नान करके व्रत का संकल्प लें. इसके बाद दिन निर्जला व्रत रखें.
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सुबह इस मंत्र के जाप से अपने व्रत का प्रारंभ करें -‘‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुथीज् व्रतमहं करिष्ये.’’
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व्रत करने वाली महिलाओं को शाम को पूजा करने वाले स्थान की दीवार पर गेरू से फलक बना लेना चाहिए. इसके बाद चावल को पीसें. अब इस घोल से करवा को चित्रित करना चाहिए. इसे करवा धरना विधि कहा जाता है.
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पूजा के लिए 8 पूरियों की अठावरी, हलवा और पकवान बनाना चाहिए.
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मां गौरी की पीली मिट्टी से मूर्ति बनाने के बाद उनकी गोद में भगवान गणेश को विराजमान करना चाहिए.
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लकड़ी के सिंहासन पर पीली मिट्टी से बनी मां गौरी की मूर्ति का विराजित करके लाल चुनरी ओढ़ाए और अन्य श्रृंगार अर्पित करके उनके सामने जल से भरा कलश रख दें.
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अब भेंट देने के लिए मिट्टी को टोंटादार करवाकर गेहूं और ढक्कन में शकर का बूरा भर लेना चाहिए. जिसके बाद दक्षिणा रखकर रोली से करवे पर स्वास्तिक बना लें.
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विधि विधान से अब मां गौरी और भगवान गणेश की पूजा करके करवा चैथ की कथा का पाठ करना चाहिए.
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करवा चौथ की पूजा के पश्चात घर के सभी बड़ों को चरण छुकर आशीर्वाद लेना चाहिए.
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अब चंद्रमा के निकलने के बाद छलनी की ओट में दीपक रखकर चंद्रमा को अर्घ्य प्रदान करें.
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अर्घ्य देने के बाद अपने पति का आशीर्वाद लेकर और पानी व्रत को समाप्त करें. इसके बाद पति को भोजन कराएं और खुद भी भोजन कर लें.