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Updated on: 14 August, 2024 12:56 PM IST
भारत के गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी किसान (Image Source: Freepik)

Indian Independence Day: 15 अगस्त, भारत का स्वतंत्रता दिवस! एक ऐसा दिन जो हर व्यक्ति के मन में देशभक्ति की भावना जगाता है. हमारे देश के लिए यह एक ऐसा दिन है, जो हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान के बिना कभी नहीं आता. लेकिन क्या आप जानते हैं, कृषि के क्षेत्र में ऐसे कई स्वतंत्रता सेनानी/Freedom Fighter हैं, जिन्होंने आजादी के समय जिन्होंने न केवल देश को औपनिवेशिक शासन से मुक्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई बल्कि भारत के कृषि परिवर्तन की नींव भी रखी.

बता दें कि आज हम आपके लिए ऐसे ही कुछ गुमनाम नायक किसानों के बारे में बताएंगे, जिन्होंने देश में कृषि परिवर्तन की नींव रखीं और भारत को ब्रिटिश शासन/British Rule से मुक्त कराने में अपना योगदान दिया है.

रैया भाई माधा भाई कनानी

18 अक्टूबर, 1925 को भावनगर, गुजरात के समधियाला गांव में जन्मे रैया भाई माधा भाई कनानी सिर्फ़ एक किसान नहीं थे. उन्होंने 1942 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया, सौराष्ट्र में विभिन्न स्थानों पर कारावास का सामना किया. उनकी यात्रा स्वतंत्रता पर ही नहीं रुकी. रैया भाई ने स्वतंत्रता, अस्पृश्यता उन्मूलन, सामुदायिक शिक्षा और कृषि जैसे महान सामाजिक उद्देश्यों के लिए काम करना जारी रखा. 1965 से 1968 तक सौराष्ट्र में कृषि पद्धतियों को आधुनिक बनाने के लिए उनका समर्पण उनके दूरदर्शी दृष्टिकोण का प्रमाण है. आवासीय माध्यमिक विद्यालय के साथ-साथ आदर्श केलवानी मंडल की स्थापना, शिक्षा और सामुदायिक विकास के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है.

नारायणस्वामी सुभाष चंद्र बोस

नारायणस्वामी सुभाष चंद्र बोस 1924 में उनका जन्म हुआ. उनके पिता, जो एक किसान थे और साथ ही उन्होंने INA सेना में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया, एक ऐसा निर्णय जिसने नारायणस्वामी को इस कार्य में शामिल होने के लिए प्रेरित किया. बता दें कि बर्मा से भारत तक की उनकी यात्रा, कारावास और बाद में तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में एक सामुदायिक सेवक के रूप में उनका जीवन उनकी स्थायी भावना को उजागर करता है. स्थानीय विकास में नारायणस्वामी का योगदान और एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उनकी पहचान भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है.

एनजी रंगा

आचार्य गोगिनेनी रंगा नायकुलु, जिन्हें प्यार से एनजी रंगा के नाम से जाना जाता है. यह भारत में किसान आंदोलन के एक बड़े दिग्गज थे. आंध्र प्रदेश में जन्मे रंगा की ऑक्सफोर्ड में शिक्षा और उसके बाद के शिक्षण करियर ने उनकी सक्रियता के लिए एक मजबूत नींव रखी. उन्होंने 1933 में जमींदारी उत्पीड़न के खिलाफ किसानों के अधिकारों के लिए आंदोलन का नेतृत्व किया. उनके प्रयासों की परिणति अखिल भारतीय किसान सभा के गठन में हुई, जिसमें जमींदारी उन्मूलन और ग्रामीण ऋणों को रद्द करने की मांग की गई. छह दशकों से अधिक समय तक फैले रंगा के राजनीतिक करियर में स्वतंत्र पार्टी की स्थापना और किसान कल्याण में महत्वपूर्ण योगदान शामिल है.

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बचन कौर

बचन कौर की कहानी साहस और दृढ़ता की कहानी है. भंगली लाहौर, जोकि वर्तमान समय में अब पाकिस्तान में है. उनके पिता की आजीवन कारावास ने उन्हें बहुत प्रभावित किया, जिससे उन्हें मात्र 13 वर्ष की आयु में किसान मोर्चा में शामिल होने की प्रेरणा मिली. अपनी छोटी उम्र के बावजूद, उन्होंने सात महीने से अधिक कारावास सहा और आंदोलन में सबसे कम उम्र की स्वतंत्रता सेनानियों में से एक बन गईं. 1972 में भारत सरकार द्वारा बचन कौर को तामार पत्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया. किसान स्वतंत्रता सेनानियों की विरासत, उनका साहस और समर्पण हमें कृषि में आत्मनिर्भरता के लिए प्रेरित करता है. किसानों का समर्थन और सशक्तिकरण करके, हम उनके बलिदानों का सम्मान करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि उनके योगदान को कभी भुलाया न जाए. जैसे-जैसे भारत आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है. सरकार के प्रयासों और निवेशों का उद्देश्य कृषि क्षेत्र की स्थिति को बदलना है.

English Summary: Independence Day 2024 Freedom fighters story from the agricultural sector
Published on: 14 August 2024, 01:00 PM IST

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