दुनिया में अमेरिका के पास सबसे ज्यादा खेती करने लायक जमीन है. वहीं इस मामले में भारत का अमेरिका के बाद दूसरा नंबर है. लेकिन पैदावार के मामले में भारत अमेरिका ही नहीं चीन से भी काफी पीछे है. इसके पीछे परंपरागत खेती के साथ मिट्टी में घटती पोषक तत्वों की कमी मानी जाती है. अमेरिकी- भारत कृषि वैज्ञानिक डॉ. रतन लाल इसकी कई बड़ी वजह बता रहे हैं. तो आइए जानते हैं इसके प्रमुख कारण और उनका समाधान.
पोषक और जीवांश रहित मिट्टी
मशहूर कृषि वैज्ञानिक डॉ. रतन लाल का कहना है कि भारत में अमेरिका के बाद सबसे बड़े क्षेत्र में खेती की जाती है. इसके बावजूद हम फसल उत्पादन अमेरिका ही नहीं चीन से भी बहुत पीछे है. इसकी सबसे बड़ी वजह है हम जमीन से लगातार उपज ले रहे हैं लेकिन मिट्टी को उस मात्रा में पोषक तत्व और जीवांश नहीं दे पाते हैं. जैसे गेहूं की फसल लेने के बाद हम उसके भूसे का उपयोग पशुओं को खिलाने के लिए कर लेते हैं. वहीं पशुओं के गोबर के कंडे बनाकर उसका उपयोग जलाने के लिए कर लेते हैं. ऐसे में खेतों में पर्याप्त मात्रा में गोबर खाद नहीं दे पाते हैं. जिससे हमारी जमीन लगातार जीवांश रहित हो रही है.
ऑर्गेनिक मैटर कंटेंट बढ़ाना होगा
उन्होंने आगे बताया कि हमारी जमीन का ऑर्गनिक मैटर कंटेंट (organic matter content in indian soil) लगातार कम हो रहा है. जहां अच्छे उत्पादन के लिए जमीन का आर्गेनिक मैटर कंटेंट 3-4 प्रतिशत तक होना चाहिए. जबकि आज हमारे देश के प्रमुख राज्य जैसे यूपी, पंजाब, हरियाणा की जमीन का ऑर्गनिक मैटर कंटेंट 0.2 है. जो कि गेहूं और चावल की अच्छी पैदावार के लिए बेहद कम है. वहीं चीन की जमीन की उपजाऊ क्षमता भारत से दोगुना है. आज हमें अपनी पैदावार को दोगुना तक बढ़ाने की आवश्यकता है. ऐसे यदि हम मिट्टी के स्वास्थ्य का सही से ध्यान रखें तो पैदावार क्षमता दोगुना कर सकते हैं हमारे लिए मिट्टी का बिगड़ता स्वास्थ्य सबसे बड़ी समस्या है.
ऑर्गनिक मैटर कंटेंट को कैसे बढ़ाएं?
ऑर्गनिक मैटर कंटेंट की कमी की वजह से हमारे उत्पादन में सूक्ष्म पोषक तत्व (Micronutrient) और प्रोटीन (Protein) की बहुत कमी होती है. डॉ रतन लाल ने बताया कि उपजाऊ क्षमता घटने के कारण मिट्टी पर पपड़ी जम जाती है और लगातार रासायनिक उर्वरक देने से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता नहीं बढ़ेगी. इसके लिए हमें इजराइल की तरह ड्रिप इरिगेशन सिस्टम को अपनाना होगा.
अन्य उपाय
उन्होंने बताया कि आज यूपी, हरियाणा, पंजाब राज्यों की जमीन चावल की खेती के लिए उपयुक्त नहीं है. यहां फल और सब्जियां उगाना चाहिए. जबकि चावल को पूर्वी भारत जहां ज्यादा बारिश होती है वहां उगाना चाहिए. अमेरिका में जैसे कॉर्न बेल्ट है और कॉटन बेल्ट है. यही तरीका हम भारत में भी आजमा सकते हैं. 1980 में चाइना में इसी तरह के बदलाव हुए थे. वहां फसलों के बचे अवशेषों और पशुओं के गोबर को खाद के रूप में उपयोग किया गया. इस वजह से वहां पिछले 40 सालों में वहां का ऑर्गनिक मैटर कंटेंट काफी बढ़ चुका है. भारत में भी यह बदलाव लाना होगा. शायद हम भविष्य में हमारी जमीन को फिर से उपजाऊ बना सकें. भारत में खेती करने लायक जमीन चीन से बहुत ज्यादा है लेकिन उपजाऊ जमीन अब बहुत कम बची है. आज अमेरिका में खेती पर 2 प्रतिशत लोग ही निर्भर है लेकिन भारत में कृषि क्षेत्र पर 60 से 65 प्रतिशत आबादी निर्भर है.
साभार- बीबीसी न्यूज़