आजादी के आंदोलन में बलिया की बगावत की अहम भूमिका है, अपनी बगावती तेवर के वजह से बलिया न केवल बागी हो गया, बल्कि 19 अगस्त 1942 में ही 24 घंटे के लिए आजाद हो गया, उस समय क्रांतिकारी चित्तू पांडे ने कलेक्टर जगदीश्वर निगम को कुर्सी से उतार दिया, साथ ही बलिया कलेक्टर से ब्रिटिश झंडे को उतारकर तिरंगा लहरा दिए थे. अपना देश आजादी के अमृत काल के दौर में है चहुंओर आजादी का जश्न (Independence Day) मन रहा है, इस मौके पर अगस्त क्रांति की चर्चा न हो तो यह जश्न ही बेमानी है, जब अगस्त क्रांति की बात होगी तो बलिया और उसकी बगावत की चर्चा भी होगी, जी हां बलिया ने अगस्त क्रांति में ऐसी बगावत की ऐसा इतिहास रचा कि आजादी के आंदोलन में उसे बलिया क्रांति (Ballia Revolution) का नाम दिया गया, जिस पर आज भी पूरे देश को नाज है.
आज इस मौके पर हम अगस्त क्रांति और बलिया क्रांति (August Revolution and Ballia Revolution) में बलिया और उसकी बगावत की चर्चा करेंगे, इसमें बताएंगे कि आखिर बलिया बागी कैसे हुआ दरअसल वह साल 1942 था. आजादी का आंदोलन चरम पर था और अंग्रेज सरकार (British Government) उसे कुचलने का प्रयास कर रही थी महात्मा गांधी पंडित नेहरू और सरदार पटेल आदि मुंबई में थे और वहां करो या मरो का नारा दे रहे थे, उस समय अंग्रेज सरकार ने इन सभी को अरेस्ट कर लिया तब गांधी ने देशवासियों से अपील की अहिंसा का मार्ग किसी हाल में नहीं छोड़ना है. लेकिन यहीं दिक्कत हो गई बलिया वालों को यह समझ में ही नहीं आया कि करो या मरो नारे के साथ अहिंसा कैसे संभव है, इसे आप बलिया वासियों की नासमझी कह सकते हैं. लेकिन इसी नासमझी ने बलिया को बागी बना दिया गांधी और नेहरू की गिरफ्तारी की खबर बलिया तक पहुंची ही थी कि जन आक्रोश फैल गया बाबू जगन्नाथ सिंह ने ब्रिटेन के प्रिंस का ताज मंगवाया और उसे अपने जूते के फीते में बांधकर बगावत की मशाल बुलंद कर दी थी, जिस दिन यह हुआ वह तारीख 9 अगस्त, 1942 था जिसे इतिहास ने अपने सुनहरे पन्नों में दर्ज किया है यहीं वह तारीख है जब बलिया खुद भागी बन गया लेकिन समूचे देश को लोगों को भी जुल्म और अन्याय के खिलाफ बगावत करना सिखा दिया. इसके बाद चाहे असहयोग आंदोलन हो या झंडा सत्याग्रह, या फिर सविनय अवज्ञा आंदोलन या नमक सत्याग्रह, हर जगह बलिया के लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि बलिया का इतिहास केवल आजादी तक नहीं बल्कि पौराणिक काल से है. बलिया 19 अगस्त को आजाद हो गया.
गंगा एवं घागरा के बीच बसा बलिया हजारों साल पुरानी सभ्यता एवं संस्कृति यों को समेटे हुए हैं कौशल राज से शुरू हुआ बलिया का इतिहास के विवरण कई पौराणिक ऐतिहासिक ग्रंथों में मिलते हैं. तीखे तेवर फौलादी इरादे एवं मातृभूमि पर मर मिटने का जज्बा बलिया वासियों को विरासत में मिली है. अट्ठारह सौ सत्तावन की मेरठ क्रांति तो आप सभी को याद ही होगी बलिया के नगवा गांव के रहने वाले वीर सपूत मंगल पांडे ने इस क्रांति का आगाज कर अंग्रेज़ों की चूलें हिला दी थी. वही 19 अगस्त 1942 को चितू पांडे ने कलेक्टर जगदीश्वर निगम को कुर्सी से उतार कर बलिया की आजादी का ऐलान कर दिया था.
जानिए कब क्या हुआ
9 अगस्त 1942 बलिया के लोग गांधी जी का गंतव्य का अर्थ ढूंढने के लिए बेचैन थे. इसी बीच मुंबई में गांधी नेहरू एवं पटेल समेत लगभग 50 से अधिक लोगों की गिरफ्तारी हो गई. यह खबर जंगल की आग की तरह बलिया पहुंच गई. ऐसे में लोग आर-पार की लड़ाई की तैयारी में लग गए.
10 अगस्त सुबह होने से पहले ही पूरी बलिया जाग गया सूर्य की पहली किरण के साथ ही भारत माता की जय के नारों से पूरा बलिया गूंज उठा और इसी के साथ बलिया में जन आंदोलन शुरू हो गया.
11 अगस्त के दिन सभी लोग एकत्रित होकर और साथ ही आखों में जनून के साथ जिला मुख्यालय पहुंच गए लोगों का हुजूम एवं उनके आक्रोश को देखते हुए बलिया के तत्कालीन कलेक्टर जगदीश्वर निगम डर गए और उन्होंने बरतानिया हुकूमत को बलिया की आजादी की सिफारिश कर दी. लेकिन इसी बीच पुलिस ने आजादी के कई दीवानों को गिरफ्तार कर लिया.
12 अगस्त पूरे जिले में बगावत चरम पर थी. कोई नेता नहीं था सभी बागी के जुलूस निकल रहा था इसमें कलेक्टर जगदीश्वर निगम के बेटे शैलेश निगम भी शामिल थे. इसी बीच पुलिस ने एक बार फिर जुलूस में से 30 छात्रों को उठा लिया और नंगा कर यातनाएं दी.
13 अगस्त को बलिया वासियों ने रेलवे स्टेशन पर कब्जा कर लिया. वहीं महिलाओं ने कचहरी पर कब्जा करते हुए. कचहरी के मुंडेर पर तिरंगा फहरा दिया. उधर, क्रांति वीरों ने टाउन हॉल पर कब्जा करते हुए अंग्रेजी झंडे को उखाड़ फेंका.
14 अगस्त क्रांति वीरों ने डाकघर पर कब्जा कर सारा खजाना एवं कागजात लूट लिए इसके बाद शहर कोतवाल ने भीड़ पर घोड़े दौड़ाएं लोगों ने इस कदर मुकाबला किया भारी फोर्स के बीच वो खुद अपनी जान की भीख मांगता नजर आया.
15 अगस्त के दिन बलिया आ रहे छात्र जो कि आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए बलिया के लिए रवाना हुए थे. लेकिन इसे पहले ही छात्रों के समूह को पुलिस ने स्टेशन पर ही सभी को गिरफ्तार कर लिया. ऐसे में छात्रों ने पुलिस स्टेशन (police station) पर कब्जा कर उसे आग के हवाले कर दिया.
16 अगस्त छात्रों ने रेलवे स्टेशन में आग लगा दी और एक ट्रेन को अगवा कर उसे आजाद ट्रेन (Azad Train) के नाम से चला दिया.
17 अगस्त जिले भर में चरम पर पहुंचे बगावत ने तहसीलों को अपने कब्जे में ले लिया आज के आंदोलन में बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक एवं मजदूरों से लेकर व्यापारियों तक सभी ने अपनी-अपनी अहम भूमिका निभाई.
18 अगस्त लोगों का जोश उफान पर था प्रशासन एवं पुलिस के लोग खुद अपने बचाव की जगह तलाश रहे थे इसे बेच बैरिया में खून संघर्ष हुआ और 20 क्रांतिवीर पुलिस के गोली से शहीद हो गए. फिर क्या था लाठी-डंडे लेकर थाने पर पहुंचे लोगों ने बैरिया थाने पर कब्जा करते हुए थानेदार समेत सभी को हवालात में बंद कर दिया और थाने पर तिरंगा फहरा दिया.
19 अगस्त बलिया के लोग आखिरी और निर्णायक जंग के लिए तैयार थे. सुबह होने से पहले जिले भर से लोग आजादी की सांस लेने के लिए बेचैन हो उठे. देखते ही देखते चारों ओर से लोग बलिया को आजाद करने के लिए निकल पड़े इसकी भनक कलेक्टर जगदीश्वर निगम को लगी तो लोगों को पहुंचने से पहले वह खुद ही जेल पहुंचकर क्रांति वीरों के लिए दरवाजे खोल दिया उन्होंने चित्तू पांडे से आग्रह किया कि वह बलिया की बगावत के सामने घुटने टेक रहे हैं इसी के साथ उन्होंने अपना पद छोड़ दिया और बलिया 19 अगस्त 1942 को देश में सबसे पहले आजाद हो गया.
रबीन्द्रनाथ चौबे, ब्यूरो चीफ कृषि जागरण मीडिया बलिया उत्तर प्रदेश.