इस बार चैत्र नवरात्रि की धूम शानिवार यानि 6 अप्रैल से शुरु हो जाएगी. चैत्र नवरात्रि को लेकर मंदिरों और घरों में तैयारियां काफी तेज हो गई है. गर्मियों की शुरूआत में आने वाले इन चैत्र नवरात्रों का अपना अलग ही महत्व होता है क्योंकि इसी दिन से हिंदू नववर्ष का प्रारंभ और पंचांग की गणना शुरू हो जाती है. नवरात्रि का यह पर्व 14 अप्रैल तक जोर-शोर से चलेगा. पहले दिन घटस्थापना के साथ ही व्रत और पूजा अर्चना शुरू हो जाएगी. सभी मंदिरों में नवरात्रि को लेकर अब तैयारियां अंतिम दौर में है. नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना का कार्य किया जाता है. इसके बाद नवरात्रि के नौ दिनों तक मां के लिए उपवास रखा जाता है. बाद में कन्या पूजन के बाद उपवास को खोला जाता है. पूरे साल में चार बार नवरात्रि आती है, जिनमें से 2 नवरात्रि गुप्त होती है.
देवी के इन रूपों की होती है पूजा
हर साल नवरात्रि में देवी के नौ रूपों - शैलपुत्री, ब्रह्माचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्माण्डा, स्कंदमाता, कत्यायानी, कालरात्रि, महागौरी और मां सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना पूरे विधि विधान के अनुसार की जाती है. नवरात्रि के दौरान हर कोई अपने हिसाब से देवी की पूजा अर्चना करके आशीर्वाद मांगता है.
पुराणों का महत्व
अगर हम धर्म, ग्रंथों और पुराणों की बात करें तो चैत्र नवरात्रों का समय बहुत ही भाग्यशाली बताया गया है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि प्रकृति में इस समय नये जीवन का बीज अंकुरित होने लगता है. जनमानस में भी नई ऊर्जा का संचार होने लगाता है. ऐसे ही समय में मां भगवाती के सभी नौ रूपों की अराधना करना सबसे शुभ माना गया है. इस दौरान सूर्य उत्तरायण गति में होते है. इस दौरान बंसत ऋतु भी अपने चरम पर होती है इसीलिए इसे बंसत नवरात्र भी कहा जाता है. इस दौरान लोग अपनी-अपनी कुल देवियों की भी पूजा करते है.
लाल रंग के फूल
चैत्र नवरात्रि में देवी दुर्गा का आशीर्वाद पाने के लिए पूजा में लाल रंग के फूलों का विशेष महत्व होता है. लेकिन यदि आप नवरात्रि में देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो नवरात्रि के नौ दिनों में किसी भी दिन कमल का फूल जरूर देवी को अर्पित कर दें. धन की देवी मां लक्ष्मी को कमल का फूल अत्यंत प्रिय होता है और इस फूल से पूजा करने पर धन-संपदा आदि की प्राप्ति होती है.
पूजा की साम्रगी
मिट्टी का पात्र, लाल रंग का आसन, जौं, कलश के नीचे रखने के लिए मिट्टी, कलश, मौली, सिंदूर, लौंग, कपूर, साबुत रोली, चावल, सुपारी, अशोका या आम के पत्ते, फल, चुनरी, फूल माला, माता का श्रृंगार का सामान आदि.
ऐसे करें कलश की स्थापना
नवरात्रि के पहले दिन ,स्नान करके मंदिर की सफाई करें और माता की चौकी को जमीन पर लगाएं.
सबसे पहले गणपति का नाम लें.
मां दुर्गा के नाम की अखंड ज्योत जलाएं और मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालें.
कलश पर मौली बांधे और स्वास्तिक चिन्ह बनाएं.
लोटे पर गंगा जल की बूंदे डालकर उसमें दूब, अक्षत, सवा रूपये डालें.
अब लोटे के ऊपर आम या फिर अशोक के पत्ते लगाएं और नारियल को पूरी तरह से लाल चुनरी में लपेट लें.
इस कलश को जौं वाले मिट्टी के कलश के पात्र के बीच रखें.
माता के सामने हाथ जोड़कर ध्यान लगाएं और संकल्प लें.