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Updated on: 5 June, 2022 11:06 PM IST
World Food Safety Day

भोजन हमारी मूलभूत आवश्यकता है, इससे जुड़े सभी पहलू का हम सभी को ध्यान रखना होगा. जब कि दूसरी तरफ, यूरोप की ‘रोटी की टोकरी‘ कहे जाने वाले यूक्रेन पर रूस के हमले से खाद्यान आापूर्ति को लेकर हालात भयानक होते जा रहे हैं. इस महासंकट के काल में, संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि दुनिया के पास मात्र 10 सप्ताह यानि 70 दिन का ही गेहूं शेष बचा है.

अतः विश्वव्यापी खाद्य सुरक्षा के हित का नही बल्कि सर्वप्रथम भारतवर्ष के सुरक्षा के हित का हमें रखना होगा ध्यान. सही मायने में कहा जाएं तो संतुलित एवं प्रदुषणमुक्त भोजन केवल शरीर के लिए ही जरुरी नही हैं बल्कि मानसिक एवं सामाजिक स्वास्थ एवं उसके शुद्धि के लिए भी जरूरी है. इस मन्तव्य को ध्यान मे रखते हुए, विश्वभर में 7 जून को हर वर्ष ‘विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस’ मनाया जाता है. क्यों कि खाद्य सुरक्षा यह सुनिश्चित करती है कि खाद्य सामग्री के उपभोग से पहले फसल का उत्पादन, भंडारण और वितरण तक, खाद्य श्रृंखला का हर कदम पर पूरी तरह से बेहतर प्रबंधित एवं सुरक्षित हो.

विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस का नूतन इतिहास

उपरोक्त दिवस, प्रत्येक वर्ष हम सभी खाद्य सुरक्षा उत्सव के रुप मे मनाते है, जिससे खाद्य सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरुक किया जा सकें. इस दिन को मनाये जाने की घोषणा 2018 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा खाद्य और कृषि संगठन के सहमति एवं सहयोग से की गयी थी तथा घोषणा की कि हर साल 7 जून को ‘विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा. यह खाद्य जनित रोगों के संबंध में दुनिया पर पड़ने वाले प्रभाव को पहचानने मे मदद की भूमिका के लिए है. संयुक्त रुप सें, विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं ’खाद्य और कृषि संगठन’ तथा इसके अलावा इस क्षेत्र से संबंधित अन्य संगठनों के सहयोग से ‘विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस’ मनाने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य सभा ने दुनिया में खाद्य जनित बीमारियों के विभीषिका को कम करने के लिए, खाद्य सुरक्षा की दिशा में प्रयासों को मजबूत करने का निर्णय लिया है.

विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस का सिंहावलोकन

खाद्य सुरक्षा यह सुनिश्चित करती है कि खाद्य सामग्री के उपभोग से पहले; फसल का बेहतर उत्पादन टिकाऊ प्रबंधन द्वारा हो, वैज्ञानिक एवं सुरक्षित विधि से भंडारण हो और वितरण प्रणाली मजबूत हो, इसका मूल तात्पर्य यह है कि खाद्य श्रृंखला की हर प्रक्रिया पूरी तरह से सुरक्षित एवं व्यवस्थित हो, इसी वजह से खाद्य सुरक्षा दिवस का महत्व बढ़ जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दूषित या रोग पैदा करने वाले रोगाणु युक्त खाद्य से हर साल 10 में से एक व्यक्ति बीमार होता है, विश्वभर में आबादी के अनुसार अगर देखा जाए तो यह आंकड़ा 60 करोड़ पार कर जाता है, दुनियाभर में विकसित और विकासशील देशों में हर वर्ष दूषित भोजन और जलजनित बीमारी से लगभग तीस लाख लोगों की मौत हो जाती है.

सर्वप्रथम भारतवर्ष की खाद्य सुरक्षा

घरेलू कीमतों को नीचे रखने के लिए, भारत ने खाद्य पदार्थ पर मई 2022 से प्रतिबंधात्मक सीमाएं लगाए हैं. गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बाद, भारत अब चीनी निर्यात को एक करोड़ टन पर सीमित कर रहा है. हालांकि, मई में इन कदमों से, अन्य अनाजों के लिए भी भय और कीमतों में वृद्धि कर रहा है, विशेष रूप से, चावल. गेहूं और चीनी के निर्यात पर भारत के प्रतिबंध ने पश्चिम एशिया में बासमती प्रेमियों को भयाक्रांत कर दिया है, चावल के निर्यात पर प्रतिबंध की अटकलों से, बासमती की मांग में उछाल आया है जो कि भारतीय किसान को उच्च मूल्य प्रदान कर रहा है. निश्चित तौर पर हमें भारत की खाद्य सुरक्षा का सर्वप्रथम ध्यान रखना होगा और जब वह पूर्ण होगी तभी हम विश्व की खाद्य सुरक्षा का ध्यान दे पाएंगे.

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वार खाद्य सुरक्षा का सुदृढ़ीकरण

‘भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण’ ने खाद्य सुरक्षा के विभिन्न मापदंडों पर, राज्यों के प्रदर्शन को मापने के लिए ‘राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक’ विकसित किया है. यह सूचकांक पांच महत्वपूर्ण मानकों पर आधारित है, जो राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के प्रदर्शन को बतलाता है. यह सूचकांक बलभार पर अधारित है जो इस प्रकार हैं (चित्रांक 1):

मानव संसाधन और संस्थागत डेटा (20% वेटेज)

अनुपालन (30% वेटेज)

खाद्य परीक्षण- अवसंरचना और निगरानी (20% वेटेज)

प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण (10% वेटेज)

उपभोक्ता अधिकारिता (20% वेटेज)

चित्रांक 1: एफएसएसएआई (FSSAI) के अनुसार खाद्य सुरक्षा के पांच महत्वपूर्ण मानदंड

सूचकांक एक गतिशील, मात्रात्मक और गुणात्मक बेंचमार्किंग मॉडल है जो सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में खाद्य सुरक्षा के मूल्यांकन के लिए एक उद्देशीय ढांचा प्रदान करता है. हाल में प्रकाशित 20 सितंबर 2021 के अनुसार गुजरात 72 अंकों के साथ सबसे ऊपर है और बिहार 35 अंकों के साथ सबसे नीचे.   

खाद्य सुरक्षा में महिलाओं का योगदान

भारत में कृषि के अगले चरण की शुरुआत करने के लिए, महिलाओं की भूमिका को मजबूत करने पर जोर देने के साथ, क्षेत्रों और सामाजिक-आर्थिक संदर्भों में विकास प्रक्रिया की गहरी समझ की आवश्यकता है. खाद्य सुरक्षा के बदलते परिदृश्य में महिलाओं के श्रम योगदान की अधिक विस्तृत समझ पर पहुंचने के लिए विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता की पहचान महत्वपूर्ण है.

घरेलू खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने के लिए खेतों से लेकर भोजन कि ‘न्यूट्रि-थाली’ तक महिलाओं को उचित समझ और निर्णय लेने में उनकी भागीदारी महत्वपूर्ण निर्णायक कारक हैं. जिस प्रकार, कृषि के अगले चरण के लिए खेत में महिलाओं की भूमिका को मजबूत करने की आवश्यकता है, उसी प्रकार स्वास्थ्य के अगले चरण को सुदृण करने के लिए महिलाओं को पोषक तत्वों कि मात्रा, संतुलित आहार, आहार से जुड़े समय अंतराल का पालन, शरीर के लिए पानी कि जरूरत, और शरीर के सक्रियता का उचित ज्ञान होना और उस पथ पर चलने कि जरूरत हैं,  क्यों कि यह सच है कि, “प्रबंधन हर वक्त वृद्धि को जन्म देने के तत्पर रहती है“. फिर महिलाएं अपने ऊर्जा, कार्यविधि और समय का सही प्रबंधन करके अपने वृद्धि दर को दोगुना कर सकती हैं.

ग्रामीण महिलाओं पर निवेश द्वारा खाद्य सुरक्षा का सुदृढ़ीकरण

कृषि में महिलाएं, खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण आर्थिक विकास के प्रतिनिधि के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, लेकिन महिलाएं अक्सर खराब कामकाजी परिस्थितियों को सहन करती हैं, और उनके योगदान के लिए सीमित मान्यता प्राप्त हैं. ग्रामीण महिलाओं का अंतर्राष्ट्रीय दिवस हर साल 15 अक्टूबर को दुनिया भर में मनाया जाता है, यह दिवस ग्रामीण महिलाओं द्वारा निभाई जाने वाली कई विशिष्ट भूमिकाओं का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है.

इसी तरह देखा जाएं तो कृषि विज्ञान केंद्र एवं अन्य संस्थान भी बढ़-चढ़ के ग्रामीण महिलाओं के विकास के लिए कार्य एवं काय्रक्रमों का संचालन कर रहें हैं, जैसे मुख्यतः खाद्य विविधता एवं किचन गार्डेन को कृषि व्यवसाय का रूप देना, प्रभावशाली रसोई प्रबंधन, संतुलित भोजन की थाली के प्रकार,  और लघु किसान को आत्मनिर्भर किसान बनाने के लिए छोटें-बड़ें व्यवसायों से जोड़कर प्रेरित करना आदि शामिल हैं. शिक्षा, कौशल विकास और तकनीकी प्रशिक्षण भी ग्रामीण रोजगार के केंद्र हैं. वे महिलाओं के नेतृत्व वाले व्यवसायों को अपने नेटवर्क का विस्तार करने, रोजगार की संभावना वाले अधिक आकर्षक बाजारों की पहचान करने और उन्हें बेहतर विकास के अवसरों से जोड़ने में मदद कर सकते हैं. महिला वेतन कर्मी जिन्हें शिक्षा और प्रशिक्षण में समान अवसर दिए जाते हैं, उनमें भी गुणवत्तापूर्ण नौकरियों के लिए पुरुषों के साथ अनुकूल प्रतिस्पर्धा करने की संभावना अधिक होती है.

अतः, दुनिया में भूख से लड़ने के लिए हमें पुरुषों और महिलाओं दोनों की ऊर्जा की आवश्यकता होगी. दुनिया भर में, ग्रामीण महिलाएं खाद्य सुरक्षा की कुंजी हैं. वे कृषि उत्पादकों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और अपने परिवारों और अपने राष्ट्र को भोजन उपलब्धतता सुनिश्चित करनें में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, वह यह पुष्टि भी करती हैं. महिलाओं के योगदान को पहचानना और सभी स्तरों पर उनकी जरूरतों को ध्यान में रखना- देशों में, संस्थानों में और नीति में - इसलिए उनकी उत्पादक क्षमता बढ़ाने और उनके द्वारा प्रदान किए जा सकने वाले अधिक योगदान को उजागर करने के लिए आवश्यक है.

लेखक:

डॉ सुधानंद प्रसाद लाल1, सलोनी कुमारी2 एवं डॉ राजीव कुमार श्रीवास्तव3

1सहायक प्राध्यापक सह वैज्ञानिक, प्रसार शिक्षा विभाग, स्नातकोत्तर कृषि महाविद्यालय, डा0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर (बिहार)-848125. 2शोध छात्रा, डिपार्टमेंट ऑफ एक्सटेंशन एजुकेशन एंड कम्युनिकेशन मैनेजमेंट, सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय, डा0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर (बिहार)-848125. 3सहायक प्राध्यापक (सस्य), निदेशालय बीज एवं प्रक्षेत्र (डा0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, बिहार), तिरहुत कृषि महाविद्यालय परिसर, ढोली, मुजफ्फरपुर-843122

English Summary: World Food Safety Day Rural women representing food security
Published on: 05 June 2022, 11:16 PM IST

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