दीयों का व्यापार आज के समय में घाटे का सौदा ही माना जाता है. आम धारणा यही है कि आज-कल दीयों को खरीदता कौन है. लेकिन क्या वास्तव में यही सच्चाई है. मार्केटिंग का मूल सिद्धांत कहता है कि हर चीज़ को कलात्मक्ता के साथ बेचा जा सकता है. बाजार में हर वो चीज खरीदी जाती है, जिसमें कुछ नयापन हो. अब रायपुर का ही एक उदाहरण ले लीजिए. यहां की स्वच्छता समूह की महिलाओं ने गोबर से दीयों का निर्माण कर कमाई के नए रास्ते खोल दिए हैं.
कोरोना काल की मुश्किल परिस्थितियों में डटकर मुकाबला करते हुए प्रदेश के सुदूर आदिवासी जिले की नारायणपुर में महिलाओं ने गोबर से इतने बेहतर और सुंदर दीयों का निर्माण किया है, जिसे देखने वाला बस देखता ही रह जाता है. इन दीयों को बनाने के लिए उन्होंने बहुत अधिक सामग्री का भी उपयोग नहीं किया.
इन महिलाओं के मुताबिक चीन में बनने वाले दीयों के मुकाबले ये दीये अधिक मजबूत हैं और इन्हें बनाने के लिए किसी तरह के खतरनाक रसायनों का उपयोग नहीं किया गया है. इन्हें पूरी तरह से इकोफ्रेंडली कहा जा सकता है क्योंकि इनको बनाने में गोबर का उपयोग हुआ है. इतना ही नहीं इन दीयों को जलने के बाद आप इन्हें गमलों में या गार्डन में डालकर खाद भी तैयार कर सकते हैं.
लोगों को आ रहा है पसंद
इन दीयों को स्थानीय लोग बहुत पसंद कर रहे हैं. कलेक्टोरेट में स्टॉल लगते ही बड़ी संख्या में इनकी खरीददारी हो रही है. प्राप्त जानकारी के मुताबिक, अभी तक 20 हजार तक दीये बिक चुके हैं
राज्य सरकार दे रही है मदद
इन दीयों को बनाने के लिए राज्य सरकार ने सुराजी गांव योजना और गोधन न्याय योजना के तहत महिलाओं की मदद की है. जिस कारण गांव ग्रामीणों एवं महिलाओं को रोजगार के साथ-साथ अच्छी आय मिलने लगी है.
गोबर की भी बढ़ी मांग
दीयों में किया गया ये नया प्रयोग लोगों को पसंद आ रहा है, जिस कारण इनकी खूब खरीददारी हो रही है. वहीं दूसरी तरफ अधिक गोबर की खपत के चलते गौपालकों को फायदा हो रहा है.
आत्मनिर्भर भारत को मजबूती
महिलाओं की कोशिश है कि इस काम को करने के लिए उन्हें आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत सहायता मिले. बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना संकट को देखते हुए देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के राहत पैकेज की घोषणा की है. ये घोषणा 20 लाख करोड़ रुपये की है, जिसके तहत भारत में लोगों को कामकाज करने की सुविधा, अवसर और संसाधन उपलब्ध कराए जाने हैं. इतना ही नहीं इस योजना के तहत ग्रामीणों को अधिकतर चीजों के निर्माण के लिए मदद देने की बात कही गई है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, मार्च और अप्रैल के बीच ₹86,600 करोड़ रुपये के 63 लाख लोन कृषि क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को दिए गए हैं, जबकि सहकारी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को रिफाइनेंसिंग के लिए नाबार्ड ने ₹29,500 करोड़ दिए हैं.