आज के युग में बदलते परिवेश के साथ ही खेती करने का तरीका भी बदल रहा है. वैज्ञानिक विधि के साथ अब किसान भी बेहतर उपज वाले फसलों को चुनने लगे है. बिहार के कटिहार में लगभग 8 हजार हेक्टेयर में आलू की खेती होती है. वहां की मौसम और जलवायु इस क्षेत्र को आलू के खेती के लिए उपयुक्त बनाती है. बरहाल मुख्य रूप से मनसाही, कोढ़ा, हसनगंज, बरारी, फलका, डंडखोरा सहित अन्य प्रखंडों में बड़े पैमाने पर आलू की खेती की जाती है.
जिले में अगेती और पछेती दोनों किस्म की खेती की जाती है, लेकिन शुरूआती प्रबंधन और समय पर सिंचाई न होने के कारण बेहतर उपज नहीं मिल पाती है. मुख्य रूप से आलू की फसल अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से दिसंबर के अंतिम सप्ताह तक होती है, लेकिन तापमान गिरने के कारण पीछे बोई जाने वाली आलू की प्रजातियों में झुलसा रोग की संभावना अधिक होती है और इससे उत्पादन प्रभावित होता है, लेकिन फसल लगाने के लिए किसान समय के अनुरूप प्रभेदों का चयन और शुरूआती प्रबंधन कर बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं.
नाशक फसल की संज्ञा
अन्य फसलों की तुलना में आलू का उत्त्पादन अधिक होता है. आलू को आकाल नाशक फसल की संज्ञा भी दी जाती है. लेकिन मुख्य रूप से आलू की पछेती किस्म के लिए खेतों की तैयारी और प्रबंधन का मुख्य रूप से ध्यान रखना जरूरी है.
आलू की फसल लगाने वाले किसानों को पहले तैयारी और प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने की जरुरत होती है.
सही प्रजाति का चुनाव
आलू की अधिक उपज पाने के लिए किसान उवर्रको बेतहाशा प्रयोग करते है. जिस वजह से उनको इससे नुकसान का सामना करना पड़ता है. अच्छी उपज पाने के लिए सही मात्रा में उर्वरक प्रयोग आवश्यक है.
1 हेक्टेयर के लिए किसान दो सौ कुंतल गोबर की खाद और 5 कुंटल खली प्रयोग में ला सकते है. इसके साथ ही 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, तीन सौ किलोग्राम यूरिया, 90 किलोग्राम सल्फर और 1 कुंटल पोटाश प्रति हेक्टेयर के लिए उपयुक्त होती है. आलू की उन्नत प्रजाति में किसान अगेती फसल के लिए राजेंद्र आलू - 3, कुफ्री ज्योति, कुफ्रि सतलज, कुफ्री आनंद और बहार लगा सकते हैं. जबकि पछात फसलों में राजेंद्र आलू -1, कुफ्री ¨सदूरी, कुफ्रि लालिमा आदि बेहतर प्रभेद माने जाते हैं.
उर्वरको का उचित प्रयोग
अच्छी उपज पाने के लिए सही मात्रा में उर्वरक प्रयोग आवश्यक है. एक हेक्टेयर के लिए किसान दो सौ कुंतल गोबर की खाद और 5 कुंतल खली प्रयोग में ला सकते है. इसके साथ ही 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, तीन सौ किलोग्राम यूरिया, 90 किलोग्राम सल्फर और 1 कुंतल पोटाश प्रति हेक्टेयर के लिए उपयुक्त होती है. आलू की उन्नत प्रभेदों में किसान अगेती फसल के लिए राजेंद्र आलू - 3, कुफ्री ज्योति, कुफ्रि सतलज, कुफ्री आनंद और बहार लगा सकते हैं. जबकि पछेती फसलों में राजेंद्र आलू - 1, कुफ्री ¨सदूरी, कुफ्रि लालिमा आदि बेहतर प्रभेद माने जाते हैं.
समय पर हो सिंचाई
आलू की बेहतर उपज पाने के लिए सिंचाई का समुचित प्रबंध होना चाहिए. उर्वरक की मात्रा ज्यादा होने के कारण पहली सिंचाई बुआई के 10 से 20 दिनों के अंदर कर देनी चाहिए. इसके बाद दूसरी सिंचाई के बीच 20 दिनों से ज्यादा का दिन नहीं लगाना चाहिए. समय पर सिंचाई होने से फसलों के बेहतर उत्पादन के साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है. जबकि समय के सिंचाई करने से झुलसा रोग की संभावना कुछ हद तक कम होती है और बेहतर उत्पादन प्राप्त होता है.