महिंद्रा ट्रैक्टर्स ने किया Tractor Ke Khiladi प्रतियोगिता का आयोजन, तीन किसानों ने जीता 51 हजार रुपये तक का इनाम Mandi Bhav: गेहूं की कीमतों में गिरावट, लेकिन दाम MSP से ऊपर, इस मंडी में 6 हजार पहुंचा भाव IFFCO नैनो जिंक और नैनो कॉपर को भी केंद्र की मंजूरी, तीन साल के लिए किया अधिसूचित Small Business Ideas: कम लागत में शुरू करें ये 2 छोटे बिजनेस, सरकार से मिलेगा लोन और सब्सिडी की सुविधा एक घंटे में 5 एकड़ खेत की सिंचाई करेगी यह मशीन, समय और लागत दोनों की होगी बचत Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Goat Farming: बकरी की टॉप 5 उन्नत नस्लें, जिनके पालन से होगा बंपर मुनाफा! Mushroom Farming: मशरूम की खेती में इन बातों का रखें ध्यान, 20 गुना तक बढ़ जाएगा प्रॉफिट! सबसे अधिक दूध देने वाली गाय की नस्ल, जानें पहचान और खासियत
Updated on: 20 March, 2018 12:00 AM IST

वो देश की ठीक आजादी का समय था जब देश में चारों ओर विकास की दरकार थी. उस समय कच्चे रास्ते थे. गांवों से शहरों की ओर पलायन करने के लिए लोग पैदल, बैलगाड़ी और घोड़ागाड़ी के जरिए अपनी मंजिल तय किया करते थे. घोड़ागाड़ी भी बड़े घरानों के पास हुआ करती थी लेकिन देश की आजादी के बाद देशवासियों की आवागमन की परेशानी को स्वर्गीय जयदेव कपूर ने समझा. वर्ष 1951 में उन्होंने एटलस साइकिल की नींव रखी. अपने पहले प्रयास में देशभर को एटलस ने 12,000 साइकिलें प्रदान कीं. वर्ष 1965 में एटलस देश की सबसे बड़ी साइकिल निर्माता कंपनी बनी. तब से लेकर अब तक कंपनी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. एटलस साइकिल्स की इसी प्रगति के विषय में कृषि जागरण ने कंपनी के सीनियर वाईस प्रेसिडेंट राहुल कपूर से बात की. इस कंपनी की कहानी उन्हीं की जुबानी...

जैसा मैंने आपको बताया कि एटलस की शुरुआत आज से 67 साल पहले हुई थी. जब देश को आवागमन के लिए किसी वाहन की बहुत ज्यादा जरुरत थी. इसकी शुरुआत में हमारे ग्रेट ग्रैंडफादर का बहुत बड़ा योगदान रहा. हमने शुरुआत में एटलस गोल्डलाइन देश को मुहैया कराई. वह 50 से 80 का दौर था. इस साइकिल की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई लेकिन जैसे-जैसे समय बदलता गया तो लोगों की जरूरतें भी बदलती गईं. एटलस भी अपने ग्राहकों की जरूरतों के हिसाब से उनको उत्पाद मुहैया कराने के लिए प्रतिबद्ध हो गई. धीरे-धीरे मोटरसाइकिल का प्रचलन भी इस दौरान बढ़ा. गोल्डलाइन के कुछ समय बाद ब्लैक साइकिल का दौर आया तो हमने उसकी भी मांग पूरी की और अपने ग्राहकों को ब्लैक साइकिल उपलब्ध करवाईं. मोटरसाइकिल का दौर बढ़ने के बाद साइकिल की मांग में थोड़ी कमी आई जबकि गाँवों में साइकिल का एक बड़ा बाजार है.

एकदम से आया बड़ा बदलाव

ग्रामीण इलाकों में जहां साइकिल की एक बड़ी मार्किट होती है उसी ने अब धीरे-धीरे शहरों की ओर रुख किया. शहरों में औद्योगिकीकरण के कारण बढ़ते हुए प्रदूषण से शहरों में रहने वालों की सेहत पर बुरा असर पड़ने लगा और लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होने लगे. ऐसे में एटलस की इस साधारण साइकिल ने एक स्पोट्र्स और फिटनेस साइकिल का रूप ले लिया. शहरों में स्पोट्र्स साइकिल की बढ़ती मांग को देखते हुए एटलस साइकिल ने अपने ग्राहकों को स्पोट्र्स बाइक उपलब्ध कराना शुरू किया. आज मैं कह सकता हूं कि देश में लगातार इसका क्रेज बढ़ता जा रहा है. खासकर युवाओं से बुजुर्गों तक सभी की पसंद स्पोट्र्स साइकिल बन चुकी है.

आज एटलस हर महीने लगभग 2,00,000 साइकिल का उत्पादन करती है. मैं आपको बताना चाहूंगा कि पिछले 10 सालों में साइकिल इंडस्ट्री की हालत कुछ ठीक नहीं रही है लेकिन फिर भी हमने पिछले कुछ दशकों में तरक्की की है. आज यह कंपनी भारत की अग्रणी साइकिल निर्माता कंपनी बन चुकी है. एटलस लगभग देश के सभी राज्यों में अपनी शाखाएं फैलाए हुए है. कंपनी ने अपने 60 से अधिक आउटलेट देशभर में स्थापित किए हुए हैं.

विचार

मेरा मानना है कि जिस तरह से साइकिल इंडस्ट्री में बदलाव आए हैं इसे मानवजीवन में बड़े परिवर्तन के रूप में देखा जा सकता है. अब साइकिल का क्रेज बढ़ता जा रहा है. ऐसे में मार्केट में 6,000 से लेकर 1 लाख रूपए मूल्य तक की साइकिल मौजूद हैं. साइकिल के बढ़ते प्रचलन से पर्यावरण को फायदा पहुंचेगा. साइक्लिंग को बढ़ावा देने के लिए सरकार को चाहिए कि पर्यटन स्थलों पर अधिक रेंटल साइकिल स्थल बनाए जाएं. यही नहीं शहरों में भी जगह-जगह रेंटल साइकिल स्थल बनाए जाने चाहिए. इससे ईको-सिस्टम भी मजबूत होगा. साथ ही साथ देश को एक नई दिशा मिलेगी.

साइकिल इंडस्ट्री: एक नजर में

भारत में साइकिल इंडस्ट्री का इतिहास बहुत पुराना है. लगभग 6 दशकों पुराने भारत में साइकिल उद्योग के इतिहास में बड़े बदलाव देखने को मिले. साइकिल की उत्पत्ति से लेकर इसको बनाने व इसकी डिजाईन, गुणवत्ता, आधुनिक तकनीकी में काफी बदलाव आए. 80 और 90 के दशक में ब्लैक साइकिल की मांग 90 प्रतिशत तक थी लेकिन उसके बाद जैसे-जैसे लोगों की सोच में बदलाव आए वैसे ही मांग में भी परिवर्तन आने लगा. फिर हमने इस जरुरत को समझकर चीन, जापान, और इंग्लैंड जैसे देशों का दौरा किया. वहां पर साइकिल की नई तकनीकों और गुणवत्ता को समझा. वहां पर वेंडर्स से मिले. इसके बाद फैक्ट्री विजिट कर विदेशों में साइकिल बनाने व इसको चलाने में इस्तेमाल की जाने वाली नई तकनीकों को देश में लेकर आने का फैसला किया. उसी के अनुरूप हमने साइकिल को डिजाईन किया.

भविष्य की साइकिल -कार्बन साइकिल

शुरुआत से लेकर अब तक साइकिल्स में न जाने कितनी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया और समय के साथ इसमें नित्य नए बदलाव आते रहे. साइकिल्स के हजारों मॉडल सामने आए हैं. स्पोट्र्स साइकिल या फिर अलॉय साइकिल आज की जरुरत ही नहीं बल्कि युवा पीढ़ी की पहली पसंद भी बन चुकी हैं. यदि देखा जाए तो कार्बन साइकिल भविष्य में देश की जरुरत है. अब हम कह सकते हैं कि कार्बन साइकिल भारत का भविष्य है. आने वाले समय में भारत में यह भविष्य की जरूरत है.

English Summary: Village-village, city-city: Atlas Cycle
Published on: 20 March 2018, 02:22 AM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now