केसर (Saffron) का नाम सुनते ही ज़्यादातर लोगों के दिमाग में कश्मीर का ख्याल आ जाता है, लेकिन अब ऐसा नहीं है. हमारे देश के किसान एडवांस होने के साथ ही तरह –तरह की खेती का प्रयोग भी कर रहे हैं. और ऐसी ही एक ख़बर उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के बुंदेलखंड (Bundelkhand) से भी आ रही है.
जी हां, यहां के किसानों ने बंजर ज़मीन पर ही केसर की खेती (Saffron Farming) कर मुनाफा कमाया है, लेकिन ऐसे में सवाल यह उठता है कि बंजर ज़मीन पर कोई फसल कैसे ऊगा सकता है वो भी केसर जैसा तो आइये जानते हैं-
जहां चाह है वहां राह है (Where there is a will there is a way)
जहां पहले यूपी के बुंदेलखंड ने स्ट्रॉबेरी की खेती कर सबको चौंकाया था वहीं अब इन्होंने अमेरिकन केसर की खेती कर सबको हैरान कर दिया है. बेशक यह सुनने में बड़ा अजीब लगता है, लेकिन आज के किसानों में कुछ अलग करने की चाह है और उसमें वो सफल भी हो रहे हैं.
बुंदेलखंड के किसान हैं मिसाल (Bundelkhand's farmer is an example)
बुंदेलखंड के किसानों को हमेशा ही एक अलग खेती के लिए जाना जाता है. यहां के किसान कुछ न कुछ नया करने की चाह रखते हैं. कभी औषधिय पौधे (Medicinal Plants) का उत्पादन करते हैं तो कभी जैविक खेती (Organic Kheti) का और अब केसर का भी कर रहे हैं.
इन किसानों का जूनून देख यहां के आस-पास के किसानों ने भी अलग तरह की खेती को अपना रहें है. किसान अपनी पारंपरिक खेती से हटकर कुछ अलग करना चाहते हैं और वो कर भी रहे हैं.
कैसे बुंदेलखंड में लहलहाया केसर? (How saffron flourished in Bundelkhand?)
बुंदेलखंड के हमीरपुर के निवादा गांव के किसानों का यह कहना था हमे उम्मीद नहीं थी कि ऐसी जमीन पर केसर उगा सकते हैं, लेकिन फिर भी यहां के किसानों ने हार नहीं मानी और उसका नतीजा यह हुआ की केसर वहां पर लहलहाने लगा.
वहां के एक किसान बताते हैं की केसर सिर्फ वादियों में ही नहीं उग सकता बल्कि इसको ठंडे इलाके की बजाय थोड़े गर्म इलाके में भी उगाया जा सकता है लेकिन बस शर्त यह है की एक दिन में आपको इसकी फसल में 4 से 5 बार पानी डालना होगा.
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केसर कमाई का है बेहतर स्त्रोत (Saffron is a better source of earning)
केसर की खेती अक्टूबर में शुरू होती है और इसमें नवंबर से फूल आना शुरू हो जातें है. इसकी खेती थोड़ी मुश्किल जरूर होती है, लेकिन जब मुनाफ़ा देती है तो सारी कमी पूरी हो जाती है.
बता दें कि कश्मीरी केसर की कीमत भारतीय बाज़ार से लेकर अंतराष्ट्रीय बाज़ारों में 2 से 3 लाख रुपये प्रति किलो है. तो ऐसे में अगर इसकी गुणवत्ता अच्छी हो तो किसानों को बेहतर मुनाफा हो सकता है.