Papaya Farming: पपीते की खेती से होगी प्रति एकड़ 12 लाख रुपये तक कमाई! जानिए पूरी विधि सोलर पंप संयंत्र पर राज्य सरकार दे रही 60% अनुदान, जानिए योजना के लाभ और आवेदन प्रक्रिया केवल 80 से 85 दिनों में तैयार होने वाला Yodha Plus बाजरा हाइब्रिड: किसानों के लिए अधिक उत्पादन का भरोसेमंद विकल्प किसानों को बड़ी राहत! अब ड्रिप और मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम पर मिलेगी 80% सब्सिडी, ऐसे उठाएं योजना का लाभ GFBN Story: मधुमक्खी पालन से ‘शहदवाले’ कर रहे हैं सालाना 2.5 करोड़ रुपये का कारोबार, जानिए उनकी सफलता की कहानी फसलों की नींव मजबूत करती है ग्रीष्मकालीन जुताई , जानिए कैसे? Student Credit Card Yojana 2025: इन छात्रों को मिलेगा 4 लाख रुपये तक का एजुकेशन लोन, ऐसे करें आवेदन Pusa Corn Varieties: कम समय में तैयार हो जाती हैं मक्का की ये पांच किस्में, मिलती है प्रति हेक्टेयर 126.6 क्विंटल तक पैदावार! Watermelon: तरबूज खरीदते समय अपनाएं ये देसी ट्रिक, तुरंत जान जाएंगे फल अंदर से मीठा और लाल है या नहीं Paddy Variety: धान की इस उन्नत किस्म ने जीता किसानों का भरोसा, सिर्फ 110 दिन में हो जाती है तैयार, उपज क्षमता प्रति एकड़ 32 क्विंटल तक
Updated on: 20 September, 2019 3:06 PM IST

आज जब पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिग और पर्यावरण प्रदूषण जैसी समस्या से जूझ रही है, ऐसे वक्त में हमारे और आपके बीच ही कुछ लोग ऐसे है जो आगे आकर इसको बचाने के लिए कार्य कर रहे है. उन्हीं में से एक है मणिपुर राज्य की राजधानी इंफाल के रहने वाले 45 वर्षीय मोइरंग लोइया. बता दें कि मणिपुर में लोइया ने अपने परिश्रम के बल पर पिछले 18 सालों में देखते-देखते एक अच्छा जंगल तैयार कर लिया है. बचपन में लोइया मारू लंगोल हिल रेंज में बने कोबरू पीक जाया करते थे, यह स्थान अपनी हरियाली के लिए काफी प्रख्यात था. लेकिन जब वह वर्ष 2000 में वहां पर गए तो वह अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर पाए है, यहां पर मौजूद जंगल पूरी तरह से वीरान हो चुका था और लोग वहां पर चावल की खेती करने गए थे.

छोड़ दी थी नौकरी

तब फिर लोइया ने वर्ष 2002 में मेडिकल रिप्रेजेंटिटिव की अपनी नौकरी छोड़ी और मारू लंगोल हिल रेंज के पास ही एक गांव में झोपड़ी डालकर रहने लगे. वह यहां पर छह साल से रह रहे है और उन्होंने कई तरह की प्रजाति के पौधे लगाए है. शुरूआत में लोइया सिर्फ वृक्ष प्रजाति के बीज ही खरीदते थे. इस कार्य में उनके दोस्तों ने काफी मदद की है.  बाद में यहां पर बीज रोपण के बाद काफी हरियाली दिखाई देने लगी है.

कई तरह के पेड़-पौधों और जंगली जानवरों का घर है जंगल

बता दें कि साल 2003 में लोइया और उनके सारे दोस्तों ने मिलकर वाइल्डलाइफ एंड हैबिटेट प्रोटेक्शन नाम की एक सोसाइटी को बनाने का कार्य किया. आज पंशिलाक फॉरेस्ट एरिया करीब 300 एकड़ में फैला हुआ है. यहां कई प्रकार के पेड़, जड़ी-बूटी और औषधीय पौधे है. यहां पर करीब 250 प्रजातियों के पेड़ और 25 प्रजाति के बांसों को लगाया गया है. इस साल यहां पर कई तरह के जंगली जानवरों का डेरा हो गया है.

खुद को पेंटर मानते है लोइया

लोइया कहते है कि इस जगह लोगों ने अपना ध्यान सबकी ओर खींचा है. वह कहते है कि मैं अपने आप को एक पेंटर मानता हूं. बाकी के पेंटर कैनवास, ब्रश और रंग का इस्तेमाल करते है.  मगर उन्होंने पहाड़ के कैनवास को चुना है. और उस पर पेड़ पौधों को लगाकर कलाकृति को तैयार किया है. वह कहते है कि इसको बनाने में उनकी पूरी उम्र निकल गई है.

सम्बन्धित खबर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें !

मिश्रीलाल ने एक ही जंगली पौधे पर उगा दिए मिर्च, टमाटर जैसी सब्जियां

 

English Summary: This man of Manipur prepared the entire forest on the strength of hard work
Published on: 20 September 2019, 03:09 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now