खरबूजों के मामले में बागपत की किसी समय में अपनी खास पहचान हुआ करती थी. यहां के खरबूजे देश के हर राज्य में पसंद किए जाते थे. लेकिन समय के साथ हाईब्रिड खरबूजों की मांग बढ़ने लगी, किसान ऐसी नई किस्मों की तरफ आकर्षित होने लगे, जिसमें कम समय में अधिक उपज हो. हाईब्रिड से कितना फायदा हुआ यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन क्षेत्र ने अपनी पहचान जरूर खो दी.
बागपत की पहचान थी देसी बट्टी
यहां के स्थानीय किसानों के मुताबिक बागपत के खरबूजे को अलग-अलग राज्यों में लोग देसी बट्टी के नाम से भी जानते थे. इसकी मिठास का कोई तोड़ नहीं था. खरबूजो के कटते ही उसमें से आने वाली खुशबू लोगों को इसकी तरफ मोह लेती थी. बड़े शहरों में अक्सर इसकी मांग अधिक होती थी, क्योंकि उसमें भरपूर मात्रा में पोषक तत्व होते थे. इतना ही नहीं, पाचन क्रिया को सही रखने के लिए भी बागपत के खरबूजों की मांग थी.
सरकार की उपेक्षाओं की शिकार हो गई देसी बट्टी
बागपत के बुजुर्ग किसानों के मुताबिक अब लोगों में पहले जैसा धैर्य नहीं रहा. बढ़ती हुई महंगाई एवं सिकुड़ते हुए प्राकर्तिक संसाधनों के कारण आज ऐसे किस्मों की मांग बढ़ रही है, जिससे अधिक से अधिक मुनाफा कमाया जा सके. दुर्भाग्य से सरकार की तरफ से भी देसी किस्मों को बचाने के कुछ खास प्रयास नहीं हुए. जिस कारण देसी देसी बट्टी विलुप्त हो गयी और क्षेत्र अपनी धरोहर खो बैठा.
आज मधु राजा की है मांग
आज के समय इस क्षेत्र में मधु राजा नाम की वैरायटी किसानों को पसंद आ रही है, इसमें मेहनत कम एवं मुनाफा अधिक है. कम पानी में भी अपने मिठास को बनाए रखने में सक्षम होने के कारण बाजार में इसकी जबरदस्त मांग है.
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