आज सुबह-सुबह ही एक दुःखद भरी ख़बर सामने आई है. दरअसल, आज वैज्ञानिक और जैव प्रौद्योगिकी विभाग के पूर्व सचिव चितरंजन भाटिया (Chittaranjan Bhatia, former secretary of the Department of Scientific and Biotechnology) का 86 साल की उम्र में निधन हो गया है. आपको बता दें कि यह वो व्यक्ति थे, जिन्होनें वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए देश में आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) कपास के बीज (Cotton Seeds) के पहले आयात को मंजूरी दी थी. इन्होंने कृषि क्षेत्र पर काफी जोर दिया था और यह लक्ष्य रखा था कि किसानों को आय में अधिक से अधिक बढ़ोतरी हो सके.
ध्यान देने वाली बात यह है कि, जब ये 1993 और 1995 के बीच दुनिया के डीबीटी सचिव हुआ करते थे, तब लोग संशोधित फसलों को समझने की कोशिश किया करते थे, जो अपने आप में ही बहुत बड़ी उपलब्धि थी. गर्व की बात है कि भाटिया ने आनुवंशिक रूप से संशोधित कपास के पहले बैच को भारत लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
उनके पूर्व सहयोगियों के मुताबिक, भाटिया को न केवल पहले आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों को भारत में आयात करने की अनुमति देने का श्रेय दिया जाता है, बल्कि बीजों की सुरक्षा प्रोफ़ाइल का आकलन करने के लिए नीतियों को समर्थन और विकसित करने का भी श्रेय दिया जाता है.
भारत में व्यावसायिक रूप से उपलब्ध एकमात्र जीएम फसल बीटी कॉटन है, जो फसल की एक कीट-प्रतिरोधी किस्म है, जिसे बैसिलस थुरिंगिनेसिस, एक सामान्य मिट्टी के जीवाणु से एक या एक से अधिक जीन डालकर आनुवंशिक रूप से संशोधित किया गया है.
पी.के. कई वर्षों तक उनके साथ काम करने वाले डीबीटी बायोकेमिकल इंजीनियर ने बताया कि भाटिया ने उन्हें 1994 में बीटी कॉटन आयात करने की अनुमति दी थी.
इनका कहना है कि "1994 में, मैं देश में बीटी कपास के बीज आयात करने के लिए उनसे अनुमति प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति थे. यहां तक कि कृषि मंत्रालय ने भी उस समय अमेरिकी कृषि रसायन और कृषि जैव प्रौद्योगिकी कंपनी मोनसेंटो के अनुरोध को मानने से इनकार कर दिया था".
जीएम फसलें अपनी स्थापना के समय से ही भारत में विवाद में रही हैं, जबकि इसके लाभ कई हैं, जिनमें कम कीटनाशक, कम पानी की आवश्यकता, उच्च उत्पादकता शामिल हैं. मगर विरोधियों ने इसे बिना किसी ज्ञात लाभ के असफल प्रयोग के साथ-साथ संभावित विषाक्तता के रूप में खारिज कर दिया था.
भारत सरकार से अनुमति प्राप्त करने के बाद, मोनसेंटो ने 2002 में भारत में अपनी पहली पीढ़ी के बीटी कपास के बीज पेश किए.
वहीं, 2018 से 2021 तक डीबीटी सचिव के रूप में कार्य करने वाली रेणु स्वरूप ने कहा कि, "भाटिया 1995 में सेवानिवृत्त होने के बाद भी विभाग को सलाह देते रहे. यह एक बहुत ही दुखद नुकसान है, उन्होंने प्लांट जेनेटिक्स के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान दिया है और मैंने उनके साथ एक युवा वैज्ञानिक के रूप में काम किया और वह बहुत मददगार थे."