भगवान भोलेनाथ के सबसे प्रिय सावन के महीने की शुरूआत कल यानी कि 17 जुलाई से होने जा रही है. यह एक ऐसा मौका होता है जब हर भक्त भगवान भोले नाथ की भक्ति में डूबा हुआ होता है. सभी भक्तों की यह कोशिश होती है कि वह भोलेनाथ को पूरी तरह से प्रसन्न करें और उनका आशीर्वाद हासिल कर सके. सावन का महीना इसके लिए काफी उत्तम होता है. ऐसी मान्यता है कि इस महीने से भगवान शंकर की पूजा करने से उनको जीवन भर साधक मिलता रहता है. जिन लोगों के पास पूरे महीने शिवजी की पूजा का समय नहीं होता है वह केवल सावन के सोमवार को की गई विशेष पूजा से कृपा पा सकते है.
इस बार है सावन के चार सोमवार
इस बार सावन के कुल 4 सोमवार आएंगे. इसमें पहला सोमवार 22 जुलाई 2019 को आएगा. दूसरा सोमवार 29 जुलाई को, तीसरा 3 अगस्त को आएगा. इसी बीच 31 जुलाई 2019 को हरियाली अमावस्या भी है. चौथा और सावन का आखिरी सोमवार 12 अगस्त को आएगा. इस बार 15 अगस्त को सावन का आखिरी दिन है. सावन महीने की खास बात यह है कि इस महीने में मंगलवार का व्रत भगवान शिव की पत्नी पार्वती के लिए किया जाता है. श्रावण मास के महीने में किए जाने वाले व्रत को मंगला गौरी व्रत कहा जाता है.
शिवपुराण का पाठ कर ले
सावन के महीने में शिव महापुराण का पाठ करना और श्रवण करना बेहद ही शुभ माना गया है. यह सारे व्रत सभी तरह की कामनाओं को पूरा करने वाला होता है. सोमवार को वस्त्रों का दान करना चाहिए. इस दिन अन्न को भी दान करने की परंपरा है.
शिव को यह अर्पित न करें
भगवान शिव की पूजा करते वक्त कई तरह की सावधानियां भी बरती जानी चाहिए. कई चीजें ऐसी है जो कि पूजा के दौरान उनको अर्पण नहीं करना चाहिए. मान्यता यह है कि ऐसा करने से शिव रूठ जाते है.
हल्दी न चढ़ाएं
भगवान शिव को पूजन में बेल पत्र, धतुरा, गाय का कच्चा दूध, घी, चंदन आदि काफी प्रिय है, लेकिन उनको हल्दी नहीं चढ़ाया जाता है. यह बात दिलचस्प है कि हल्दी को हिंदू धर्म में शुद्ध और काफी पवित्र माना गया है.
सिंदूर न चढ़ाएं
भगवान शिव को सिंदूर भी नहीं चढ़ाना चाहिए. हिंदू धर्म में सिंदूर विवाहित महिलाओं का प्रतीक है. महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए सिंदूर को लगाती है, शिव विनाशक के प्रतीक है.
तुलसी की पूजा न करें
भगवान शिव पर कभी भी आप तुलसी के पत्ते नहीं चढ़ा सकते है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक एक तरह की असरु की पत्नी वृंदा के अंश से ही तुलसी का जन्म हुआ है.
शंख से जल न चढ़ाएं
मान्यता है कि भगवान शिव ने शंखचूड़ नाम के असुर का वध किया था. शंखचूड़ भगवान विष्णु का भक्त था और शंख को उसी असुर का प्रतीक माना जाता है. इसीलिए भगवान विष्णु की पूजा को शंख के सहारे किया जाता लेकिन शिव की पूजा इससे नहीं करते है. इसके साथ ही भगवान शिव को टटे हुए चावल भी नहीं चढ़ाने चाहिए.