देश में भोजन का अहम हिस्सा गेहूं अब पहले की तरह सामान्य नहीं रह गया है बल्कि वैज्ञानिकों ने अपने अनुसंधान से इसे 11.5 प्रतिशत से अधिक प्रोटीन और भरपूर मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्वों से लैस कर दिया है जिससे यह कुपोषण की समस्या के समाधान में मददगार क्रांतिकारी भूमिका निभा सकता है.
खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के बाद किस्मों के सुधार में लगे देश के कृषि वैज्ञानिकों ने भोजन में बड़े पैमाने पर उपयोग होने वाले गेहूं की तीन नयी किस्में तैयार की है जो कुपोष णकी समस्या के समाधान में सक्षम हैं. इनमें न केवल प्रोटीन की अधिकता है बल्कि सूक्ष्म पोषक तत्व पहले की किस्मों की तुलना में 15 प्रतिशत तक अधिक हैं.
देश में विशेषकर बच्चों और महिलाओं में रक्त तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के उद्देश्य से भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने गेहूं की एच डब्ल्यू 5207 , एचआई 1612 और एचआई 8777 किस्मों का विकास किया है. इन किस्मों में प्रोटीन , लौह तत्व , ङ्क्षजक , तांबा , और मैग्नीज भरपूर मात्रा में है. गेहूं की इन किस्मों से चपाती तो स्वादिष्ट बनती ही है, ये पास्ता और बिस्कुट बनाने के लिए भी उपयुक्त है.
पहली किस्म : एचडब्ल्यू 5207
गेहूं की एचडब्ल्यू 5207 किस्म को पहाड़ी या इससे सटे स्थानों में लगाया जा सकता है. औसतन 40.76 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देने वाली इस किस्म को समय पर लगाना लाभदायक होता है और इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि कम ङ्क्षसचाई में भी इसकी भरपूर पैदावार होती है. यह लीफ रस्ट और स्टीम रस्ट प्रतिरोधी किस्म है. पौष्टिक तत्वों का खजाना मानी जाने वाली इस किस्म में ग्यारह प्रतिशत से अधिक प्रोटीन, उच्च लौह तत्व (53.1 पीपीएम) ङ्क्षजक (46.3 पीपीएम) मैग्नीज (47.5 पीपीएम) पाया जाता है. इसमें ऐसी आनुवांशिक क्षमता है कि इसका उत्पादन 59.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकता है.
दूसरी किस्म : एचआई 8777
गेहूं की एचआई 8777 किस्म को वर्षा आधारित क्षेत्रों में समय से लगाया जा सकता है. लौह तत्वों और ङ्क्षजक से भरपूर इस किस्म का औसत उत्पादन 18.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. चपाती और पास्ता के लिए उपयुक्त यह किस्म लीफ रस्ट , करनाल बंट और फूट रुट प्रतिरोधी है. देश में पिछले वर्ष नौ करोड़ 80 लाख टन गेहूं का उत्पादन हुआ था और इस बार भी इतनी मात्रा में गेहूं के उत्पादन का अनुमान व्यक्त किया गया है. वर्ष 1950..51 के दौरान केवल 60 लाख टन गेहूं का उत्पादन था. इसकी उत्पादकता सात क्विंटल प्रति हेक्टेयर से बढकर 31 क्विंटल से अधिक हो गयी है.
भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान करनाल के विजन 2050 दस्तावेज के अनुसार 2050 तक देश में 14 करोड़ टन गेहूं की आवश्यकता होगी. पंजाब , हरियाणा , मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान तथा कई अन्य राज्यों में तीन करोंड़ हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में इसकी खेती की जाती है और इसका भरपूर उत्पादन भी किया जाता है.