बुंदेलखंड का "पंजाब" कहे जाने वाले जालौन जिले में मटर की खेती (Pea Farming) और इसका कारोबार गतं की ओर जा रहा है. सालाना 12 लाख क्विंटल के उत्पादन वाले इस जिले में मटर के कारोबार ने एक साल में सौ करोड़ से अधिक की क्षति उठायी है. मटर को बेहतर समर्थन मूल्य (Matar MSP) मिले, इसके लिए किसानों से बड़ी-बड़ी बातें की गई हैं. मटर महोत्सव जैसे बड़े आयोजन के साथ लाखों रुपये पानी की तरह बहाए गए, लेकिन किसानों पर पड़ने वाली मार को कोई मिटा नहीं सका, लेकिन इसके पीछे वजह क्या है आइए जानते हैं.
हरी और सफ़ेद मटर का गढ़
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जालौन जिले (Jalaun District) में तीन लाख 60 हजार हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है. यहां के किसान डेढ़ लाख हेक्टेयर भूमि पर सफेद (White Pea) और हरी मटर (Green Pea) का उत्पादन करते हैं. जालौन जिले में हरी मटर का स्कोप काफी रहा है. ऐसे में 50 हजार हेक्टेयर भूमि में केवल हरी मटर तैयार की जाती है.
मटर का निर्यात
यहां की भूमि पर मटर की उपज इतनी अच्छी है कि एक एकड़ ज़मीन पर किसान 15 क्विंटल तक मटर पैदावार (Pea Production) कर लेते हैं. ख़ास बात यह है कि ये हरी मटर देश के कोने-कोने में भेजी (Pea Export) जाती है. वहीं विदेश में अमेरिका, जापान कुवैत समेत 11 देशों में जालौन के हरी मटर की डिमांड सर्वाधिक रहती है.
आमतौर पर कानपुर के बड़े कारोबारी जालौन के किसानों से सीधे हरी मटर खरीदते हैं. इसके बाद देश के छत्तीसगढ़, राजस्थान, ओडिशा, केरल सहित अन्य राज्यों में स्टोरेज करके भेजा जाता है.
किसानों की मानें तो उनका कहना है कि हरी मटर की फसल में लगभग 12 लाख रुपये की लागत आई थी. लेकिन मटर का समर्थन मूल्य न मिलने के कारण उन्हें पांच लाख रुपये से अधिक का घाटा हुआ है. जिसके बाद अब यहां के किसान अब माथा पीट रहे हैं. वहीं, बंगरागांव के रहने वाले किसान का मानना है कि खेत में हरी मटर की फसल तैयार की थी. दतेवाड़ा प्रजाति की हरी मटर तैयार करने में उन्हें 12 हजार रुपये प्रति क्विंटल बीज लेना पड़ा था. लेकिन अब मटर बीज की कीमत महज 3300 रुपये प्रति क्विंटल है. इससे उन्हें कई साल लाख रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है.
कोल्ड स्टोरेज की है भारी समस्या
जिले में सालाना करीब 12 लाख क्विंटल मटर का उत्पादन होता है, लेकिन मटर का पर्याप्त रूप से स्टोरेज नहीं हो पाता है. जिले में मटर के स्टोरज के लिए कुल सात कोल्डस्टोरेज (Cold Storage) हैं जिनकी क्षमता पांच लाख क्विंटल ही है.
ऐसे में सात लाख क्विटल मटर को रखने के लिए किसान को इधर-उधर भटकना पड़ता है. इसमें करीब तीन लाख क्विंटल मटर खराब होने के कगार तक पहुंच जाती है. मटर की बदहाली का एक प्रमुख कारण यहां खाद्य प्रसंस्करण (Food Processing) की बेहतर व्यवस्था का ना होना है.
मटर कारोबारियों की मानें, तो इस साल मटर का कारोबार (Pea Business) विदेशों तक नहीं हो पाया है. बाहर न जाने के कारण औने-पौने दामों में बेचना पड़ रहा है.
उगाई जाती है मटर की कई किस्में
जालौन में मटर का बेहतर उत्पादन होने के पीछे की वजह यहां की प्रमुख किस्में (Pea Variety) हैं, जो जिले की जालौन मिट्टी के लिए बेहतर हैं. यहां पर मटर की 12 किस्में प्रमुख मानी जाती हैं, जिसमें जीएस-10 इटालियन, बीएल 5, दंतेवाड़ा, एपी-3, आईपीएफटी 14-2, आईपीएफटी 13-2 और आईपीएफटी 12-2 सहित मटर की सर्वोच्च क्वालिटी तैयार की जाती है. इस जिले में अधिकतर किसान आईपीएफटी की मटर का उत्पादन बड़े पैमाने पर करते है.
जालौन की मिट्टी में बेहतर हैं रासायनिक तत्व
जालौन में मटर का बेहतर उत्पादन होने के पीछे यहां की मिट्टी के रासायनिक तत्वों (Soil Chemical Elements) का बेहतर होना है. ऐसा माना जाता है कि यहां की मिट्टी सर्वोच्च क्वालिटी की है. जिस कारण यहां पर मटर का उत्पादन ज्यादा होता है.
यहां जो भी मटर का उत्पादन करता है, उसकी फली और दाना बड़ा होता है. कृषि विज्ञान संस्थान के अध्यक्ष डॉ राजीव कुमार सिंह का कहना है कि मिट्टी की क्वालिटी उच्च प्रजाति की है, अन्य जनपदों की भांति यहां की मिट्टी में रासायनिक तत्व ज्यादा है.
जिले में मटर की खेती का आंकड़ा
जिले में मटर की खेती कुल कृषि योग्य भूमि- 3 लाख 60 हजार हेक्टेअर
मटर की उत्पादन भूमि- 50 हजार हेक्टेयर भूमि
मटर का उत्पादन- 12 लाख क्विंटल प्रति वर्ष
जिले में कुल मटर के स्टोरेज- 7 कोल्ड स्टोरेज
मटर की कुल वैराटियां- 12 प्रकार
प्रति एकड़ मटर की पैदावार- 15 क्विंटल
मटर को मिलेगा बेहतर बाजार
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जालौन की डीएम चांदनी सिंह ने कहा कि किसानों की समस्याओं का निराकरण कराया जाएगा, कारोबारियों और अधिकारियों के साथ बैठक की जाएगी, साथ ही कारण जाना जाएगा कि आखिर किसानों को बेहतर मूल्य मिलने में क्या परेशानी आ रही है. मटर से ही जिले (Popular Place of Pea Production) की पहचान है. ऐसे में मटर को बेहतर बाजार दिलाने की जिम्मेदारी प्रशासन की है.