आज देश का किसान नई-नई तकनीकों को अपनाकर खेती करने में सक्षम होता जा रहा है. कई बार छोटे किसान रासायनिक उर्वरकों का खर्चा नहीं उठा पाते है. ऐसे किसानों के लिए अच्छी खबर है. किसान कम रकबे में भी जैविक खेती करके अपनी आमदनी को बढ़ा सकते है. दरअसल रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में पहली बार गोमूत्र और गोबर युक्त पानी से प्याज की जैविक फसल को तैयार कर लिया गया है. अगर कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो यह प्रयोग काफी सफल रहा है. इस पद्धति के सहारे उत्पादन काफी अधिक होने की उम्मीद है. वहीं दूसरी ओर फसल की गुणवत्ता भी काफी ज्यादा होगी. अगर इसे बाजार में बेचें तो इसकी कीमत भी सामान्य फसल से अधिक ही होगी. इस तकनीक के सहारे पशुपालन को भी काफी बढ़ावा मिलेगा.
हाईब्रिड सब्जियों का बाजार पटा
अगर हम बाजार की बात करें तो इन दिनों हाइब्रिड सब्जियों और फलों का बाजार पूरी तरह से पट चुका है. इसीलिए सभी उपभोक्ताओं के सामने यह चुनौती और मजबूरी दोनों ही है कि उनको यह फसल उपयोग करनी ही पड़ेगी. इसके लिए कृषि विवि एक नए तरह का रास्ता लेकर आए हैं. जिसके तहत जैविक फसलों और सब्जियों को तैयार करने की शुरूआत यहां से की गई है. प्याज की फसल को कुल 33 डिसिमिल में तैयार किया गया है जिसमें बिल्कुल भी उर्वरक का उपयोग नहीं किया जा रहा है.
ऐसे तैयार हुई जैविक प्याज
प्याज की जैविक खेती को तैयार करने के लिए विभाग ने तैयार कम्पोस्ट खाद और गोमूत्र को बोरवेल में मिलाकर समय-समय पर सिंचाई की है. ऐसा कर लेने के बाद प्याज की फसल में किसी भी तरह की खाद और अन्य रासायनिक उर्वरक को मिलाने की कोई जरूरत नहीं पड़ी. इसकी फसल भी काफी शानदार है. उनके मुताबिक प्याज की खेती के लिए उचित जल निकासी और जीवांश युक्त उपजाऊ दोमट मिट्टी का होना अनिवार्य है. अगर इसका पीएच मान 6.5-7.5 के बीच हो तो यह सर्वोत्तम होगा. प्याज को क्षारीय या दलदली मृदा में नहीं उगाना चाहिए.
पत्तियां सूखने पर यह न करें
प्याज की फसल लगभग पांच महीने में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है. जैसे ही प्याज की गांठ पूरी तरह से आकार ले लेती है और इसकी पत्तियां सूखने लग जाती हैं तब तुंरत इसकी सिंचाई को बंद कर देना चाहिए. प्याज की फसल के कंद पूरी तरह से ठोस हो जाते है. बाद में उनकी बढ़ोतरी भी रूक जाती है. बाद में इन कंदों को तोड़कर जमीन से निकाल लें और बाद में कतार के सूखने के बाद इनको छोड़ देना चाहिए.