राष्ट्रीय कामधेनु आयोग सरकार से जल्द ही सिफारिश करेगा कि कृभको और इफको जैसी कंपनियों को अपने वार्षिक उत्पादन में से 10 प्रतिशत तक गोबर और गौमूत्र से जैविक खाद का निर्माण करें। दरअसल आयोग के इस कदम से गायों को सबसे ज्यादा संरक्षण मिलेगा और विदेशों से आयति उर्वरक पर निर्भरता कम होगी। साथ ही देश में जो विदेशी मुद्रा भंडार है उसमें भी काफी बचत दिखाई देगी। आयोग ने इस तरह जैविक खाद के निर्माण के पीछे विशेष वजह बताई है।
देश में 92 प्रतिशत रासायनिक खाद का प्रयोग
राष्ट्रीय कामधेनु आयोग का तर्क है कि ज्यादातर कंपनियां देश में लगभग 92 प्रतिशत रासायनिक उर्वरकों को आयात कर रही है। जैसे ही जैविक खाद बनेगी तो बाहर से आयात होने वाले रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम हो जाएगी। साथ ही गोबर और गोमूत्र का उचित उपयोग भी हो सकेगा। राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के अध्यक्ष के मुताबिक जैविक उर्वरक का अनिवार्य उत्पादन लोगों की मानसिकता को बदल तो देगा ही साथ ही लोगों को डेयरी फार्मिग और अन्य संबंधित गतिविधियां करने में काफी सुविधा होगी। उनके मुताबिक इस तरह से अर्थव्यवस्था पर एक अच्छा और सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
गोबर की समस्या नहीं
जैव खाद के निर्माण के लिए गोबर के कई तरह के स्त्रोत मौजूद है जो कि इसमें काफी मददगार साबित होंगे। देश में एक हजार कांजी हाउस और गोशाला मौजूद है। इसके अलावा भी गांवों तक दूध कलेक्शन जैसे ही दूध कलेक्शन सेंटर बनने से यह समस्या पूरी तरह से हल हो जाएगी। जिस तरह से गांवों और सहरों से दूध को एकत्र करने का कार्य किया जाता है वैसे ही वाहनों का उपयोग करके गाय गोबर औरक गोमूत्र को एकत्र करने का कार्य किया जाएगा। बाद में वह मैन्युफैक्चरिंग संयंत्रों में जाएगा।
नई सरकार के आने के बाद होगा अमल
नई सरकार के सत्ता में आने के बाद और बजटीय कार्य शुरू होने के बाद इस प्रस्ताव को रसायन और उर्वरक मंत्रालय के जरिए स्थानातंरित किया जाएगा। आयोग के अध्यक्ष का मानना है कि इस कदम से देश के कृषि क्षेत्र में संकट ठीक होगा। साथ ही जैविक खेती को भी बल मिल सकता है। इस तरह के प्रयास से एक स्वस्थ भारत का निर्माण होगा। बता दें कि केंद्र की मोदी सरकार ने बजट में गायों के संरक्षण, संवर्धन और विकास के लिए राष्ट्रीय कामधेनु आयोग की स्थापना को मंजूरी दे दी थी।