वाणिज्य और उद्योग मंत्री(Commerce and Industry Minister)पीयूष गोयल ने ट्वीट कर जानकारी देते हुए बताया है कि “मिथिला में पैदा होने वाले मखाने को जीआई टैग से सम्मानित किया गया है”. जीआई टैग मिलने के बाद किसानों को इसका लाभ मिलेगा और उनके लिए मखाने से पैसा कमाना आसान होगा. त्योहारों के मौसम में बाजार में मखाने की मांग ज्यादी रहती है ऐसे में मिथिला मखाना को जीआई टैग के कारण बिहार के बाहर के लोग श्रद्धा के साथ इस शुभ सामग्री का उपयोग करने में सक्षम होंगे.
बिहार के लोगों के लिए यह गौरव की बात है कि मिथिला के मखाने को जीआई टैग से सम्मानित किया गया है. बिहार का यह पांचवां उत्पाद है जिसे जीआई टैग मिला है, इससे पहले भागलपुर के जरदालू आम, कतरनी धान (चावल), नवादा के मघई पान और मुजफ्फरपुर की शाही लीची को जीआई टैग की मान्यता मिल चुकी है.
जीआई टैग क्या है(What is a GI tag)
जीआई टैग उन उत्पादों पर उपयोग किया जाने वाला एक चिन्ह होता है जिनकी एक अपनी अलग पहचान और भौगोलिक उत्पत्ति होती है, यानी कि वे दुनिया में और कहीं नहीं पाए जाते हैं. जैसे कि मिथिला का मखाना है.
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मिथिला के मखाने की ये है विशेष बात
मिथिला मखाना को केवल 'माखन' के नाम से भी जाना जाता है. इसका वानस्पतिक नाम 'Euryale Ferox Salisb' है और यह एक्वेटिक फॉक्स नट की एक विशेष किस्म है. ऐसा माना जाता है कि मैथिली ब्राह्मणों द्वारा कोजागरा पूजा के दौरान भोजन का सेवन किया जाता है, जो इसे नवविवाहित जोड़ों के लिए मनाते हैं.
मखाना को आमतौर पर भारत में नाश्ते और व्रत के दौरान उपयोग किया जाता है. इंडियन जर्नल ऑफ ट्रेडिशनल नॉलेज के अनुसार, इसके बीज को प्रोसेस करने के बाद इसे उपयोग में लाया जाता है. इसे कोलेस्ट्रॉल, फैट और सोडियम की श्रेणी में रखा जाता है और यह एक आदर्श वजन घटाने वाला नाश्ता भी है क्योंकि इसमें कैलोरी कम होती हैं.