मध्यप्रदेश के आदिवासी क्षेत्र में झाबुआ की मुर्गे की खास किस्म कड़कनाथ को अब राज्य के खास किस्म कड़कनाथ को अब राज्य के अन्य हिस्सों तक पहुंचाने की कवायद चल रही है. यहां राजधानी में जहां खुले तौर कड़कनाथ मिलने लगा तो राज्य के दतिया जिले में भी लोग तेजी से कारोबार बनाने का प्रयास करने में लगे हुए है. यहां पर कृत्रिम विधि से कड़कनाथ चूजों का भी उत्पादन किया जा रहा है. कड़कनाथ मुर्गा 900 से 1200 रूपए प्रति किलो में बेचा जाता है, जबकि मुर्गी की कीमत तीन से चार हजार रूपए होती है. इसका एक अंडा करीब 50 रूपए में मिलता है.
कड़कनाथ में ज्यादा प्रोटीन
आदिवासी झाबुआ की मुर्गे की खास किस्म कड़कनाथ को अधिक प्रोटीन वाला माना गया है.कड़कनाथ मुर्गे में 25 प्रतिशत प्रोटीन होता है, जबकि अन्य मुर्गे और मुर्गियों में यह स्तर केवल 18 से 20 प्रतिशत के बीच होता है, इतना ही नहीं कड़कनाथ में कोलेस्ट्रॉल अन्य सफेद चिकन की तुलना में बुहत कम यानी 0.72 से 1.05 प्रतिशत के बीच ही होता है.कड़कनाथ का मांस मानव के लिए उपयुक्त 8 से 18 एमिनो एसिड के उच्चस्तर से काफी परिपूर्ण होता है, साथ ही इसके मांस में विटामिन बी 1- विटामिन-बी 2, बी 12, विटामिन सी, विटामिन ई एवं प्रोटीन वसा, कौल्शियम, फास्फोरस, लोहा और निकोटेबीक भी मौजूद होता है.
कालामासी मुर्गे के नाम से मशहूर है कड़कनाथ
झाबुआ के पशु वैज्ञानिक के मुताबिक दतिया जिले में कड़कनाथ उद्योग के विकास के लिए सबसे ज्यादा जोर कृत्रिम विधि से कड़कनाथ चूजों का उत्पादन के बुनियादी विकास पर दिया जा रहा है. सके अंतर्गत कृत्रिम विधि से अधिक से अधिक चूजों का उत्पादन कर उन्हें किसानों को मुहैया करवाने पर जोर दिया जा रहा है. अभी तक जिलों के छह किसानों को कड़कनाथ के चूजे उपलब्ध करवाए जा रहे है. कड़कनाथ भारत में मिलने वाली एकमात्र कालामासी मुर्गे की नस्ल है, यह भील और भिलाला जनजातीय़ समुदायों के द्वारा पाला हुआ मध्यप्रदेश का एक देशी पक्षी भी है. केरल, कर्नाटक, राज्सथान के गंगानगर तक इस मुर्गे की बढ़ी मांग बनी रहती है.