किसानों के लिए मध्यप्रदेश सरकार अच्छे दिनों की सौगात लेकर आई है. दरअसल राज्य की शिवराज सिंह सरकार ने विकासखंड स्तर पर किसानों को छोटे कोल्ड स्टोरेज प्रदान करने का फैसला किया है. प्राप्त जानकारी के मुताबिक उद्यानिकी फसलों के रख-रखाव के लिए कोल्ड स्टोरेज के लिए मदद दी जाएगी, जिसकी सहायता से किसान अब खुद ही उसमें उपज को सुरक्षित रख सकेंगें. इसके लिए शासकीय योजना के तहत उन्हें सहायता प्रदान की जाएगी.
राज्य में अभी तक 5000 मीट्रिक टन के कोल्ड स्टोरेज
गौरतलब है कि अभी तक सरकार बड़ी मंडियों के पास और जिला स्तर पर 5000 मीट्रिक टन क्षमता के कोल्ड स्टोरेज लगाने के लिए सहायता प्रदान करती है. लेकिन अब छोटे किसानों को भी इसका फायदा मिल सकेगा.
छोटे मंडियों पर किया जाएगा फोकस
इस बारे में उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग ने कहा कि नई नीतियों के तहत छोटी मंडियों पर फोकस किया जाएगा और विकासखंड स्तर पर 1000 मीट्रिक टन के कोल्ड स्टोरेज बनवाएं जाएंगें.
इसी तरह उद्यानिकी फसलों के उत्पादन को सुरक्षित रखने के लिए विकासखंड स्तर पर 5 मीट्रिक टन क्षमता तक के कोल्ड स्टोरेज बनाने के लिए सहायता दी जाएगी.
किसानों में खुशी की लहर
सरकार के इस फैसले से किसानों में खुशी की लहर है. उनका कहना है कि अगर अपना कोल्ड स्टोरेज होगा तो उद्यानिकी फसलों की सुरक्षा आसान और सस्ती हो सकेगी. इस निर्णय से उद्यानिकी फसलों को राज्य में बढ़ावा मिलेगा.
भारत सिंह कुशवाहा ने किया स्वागत
वहीं सरकार के इस फैसले का स्वगात करते हुए राज्य मंत्री भारत सिंह कुशवाहा ने कहा कि इससे किसानों का कल्याण होगा और उत्पादन बढ़ेगा. फिलहाल मंत्रालय में आयोजित बैठक में कुशवाहा ने अधिकारियों को अंतिम प्रारूप बनाने के आदेश दिये हैं.
ऑनलाइन होगा आवेदन
राज्य मंत्री भारत कुशवाहा ने कहा कि किसानों को कोल्ड स्टोरेज बनाने में सरकारी मदद मिल सके, इसके लिए इस योजना में ऐसे प्रावधान किए जाएंगे, जिससे कोई धांधली न हो सके. इस योजना को विज्ञापनों के जरिए सरकार जन-जन तक पहुंचाएगी. ध्यान रहे कि इस योजना के लिए आवदेन ऑनलाइन लिए जाएंगे.
क्या होगा लाभ
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश फलों और सब्जियों के उत्पादन में देश में अपना प्रमुख योगदान देता है. राज्य में आम, पपीता, अमरूद और केले आदि की खेती होती है, पैदावार का बड़ा हिस्सा उचित रख-रखाव के अभाव में खराब हो जाता है. अगर किसानों को कोल्ड स्टोरेज के लिए सरकारी सहायता मिलती है, तो इससे ऑफ-सीज़न में भी फल-सब्जियों की किल्लत नहीं रहेगी और उत्पादकों को पारिश्रमिक मूल्य मिलता रहेगा.