कृषि और कृषकों की उन्नति हेतु निरन्तर चल रहे अनुसंधानों के चलते जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता हाथ लगी है. वैज्ञानिकों ने सोयाबीन की दो नई उन्नत किस्में विकसित कर ली हैं.
इनको जे.एस. 20-116 और जे.एस. 20-94 नाम दिया गया है. कुलपति डॉ. प्रदीप कुमार बिसेन ने बताया कि कीट एवं रोग प्रतिरोधी ये किस्में पुल उत्पादन हेतु मील का पत्थर सबित होंगी. विश्व में मप्र को ‘‘सोयाराज्य’’ का दर्जा दिलाने का श्रेय जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित सोयाबीन किस्मों को जाता है. अब यह दर्जा बरकरार रहेगा और सोयाबीन के क्षेत्र में प्रदेश नई ऊंचाईयों को छुएगा.
जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय की सोयाबीन अनुसंधान परियोजना द्वारा विकसित सोयाबीन की 2 प्रजातियां जे.एस. 20-116 (3 क्षेत्रों उत्तर पूर्व पहाड़ी क्षेत्र, पूर्वी क्षेत्र एवं मध्य क्षेत्र) तथा दूसरी प्रजाति जे.एस. 20-94 (मध्य क्षेत्र) में खेती हेतु केन्द्रीय स्तर पर पहचानी गई हैं.
सोयाबीन अनुसंधान परियोजना की 48 वीं वार्षिक समूह बैठक की केन्द्रीय प्रजाति पहचान समिति ने इस पर अपनी मुहर लगा दी है. ये विश्वविद्यालय के सोयाबीन अनुसंधान के क्षेत्र में एक एतिहासिक उपलब्धि है, जब एक ही समय में एकसाथ दो किस्मों की पहचान, चार क्षेत्रों के लिये की गई है. इन प्रजातियों के प्रस्ताव सोयाबीन अनुसंधान परियोजना प्रभारी डॉ एम.के. श्रीवास्तव द्वारा प्रस्तुत किये गये.
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इन किस्मों के प्रजनक सेवानिवृत्त डॉ. ए.एन. श्रीवास्तव, डॉ. स्तुति मिश्रा और पादप रोग विज्ञानी डॉ. दिनेश कुमार पंचेश्वर हैं. इन किस्मों के विकास में संचालक प्रक्षेत्र डॉ. शरद तिवारी खासे सहयोगी रहे है. इस बड़ी उपलब्धि पर कुलपति डॉ. प्रदीप कुमार बिसेन एवं संचालक अनुसंधान सेवाएं डॉ. धीरेन्द्र खरे ने पूरी टीम को बधाई दी साथ ही आव्हान किया कि भविष्य में भी इसी प्रकार नवीन प्रजातियों के विकास का कार्य राष्ट्रीय स्तर पर सम्पादित करते रहे.