देशभर के कृषि वैज्ञानिक आए दिन किसानों के डब्बल फायदे के लिए कुछ ना कुछ शोध करते रहते हैं. इसी कड़ी में हरियाणा के हिसार में स्थित चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (Chaudhary Charan Singh Haryana Agricultural University) द्वारा गेहूं (wheat), सरसों (Mustard) व जई (Oat) की उन्नत किस्मों को तैयार किया गया है. इससे भी अच्छी बात ये है कि गेहूं, सरसों व जई की इन उन्नत किस्मों का फायदा ना सिर्फ अब हरियाणा के किसान बल्कि पूरे भारत के किसान ले सकते हैं.
दरअसल, इसके लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत तकनीकी व्यवसायीकरण को बढ़ावा देते हुए चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने निजी क्षेत्र की प्रमुख बीज कंपनी से अब समझौता किया है. ऐसे में ये कंपनी अब पूरे देशभर के किसानों तक विश्वविद्यालय के द्वारा विकसित गेहूं की डब्लयूएच 1270, सरसों की आरएच 725 व जई की ओएस 405 किस्मों का बीज तैयार कर किसानों तक पहुंचाएगी.
एक साल में प्राइवेट कंपनियों के साथ दस एमओयू
इसको लेकर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कांबोज ने बताया कि पिछले एक साल में विभिन्न प्राइवेट कंपनियों के साथ इस प्रकार के दस एमओयू किए जा चुके हैं. उन्होंने आगे कहा कि इस तरह के समझौतों पर हस्ताक्षर कर विश्वविद्यालय का प्रयास है कि यहां विकसित फसलों की उन्नत किस्मों के बीज व तकनीकों को देश के अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाया जा सके.
इस समझौते का मकसद क्या है?
इस समझौते का मकसद किसानों तक उन्नत किस्म, विश्वसनीय और उच्च गुणवता वाले बीजों को पहुंचाना है ताकि किसानों की फसलों का उत्पादन और ज्यादा हो सकें, जिससे उनकी आय में बढ़ोतरी हो (Farmers Income) और वो आर्थिक रूप से और ज्यादा मजबूत हो सके.
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इन किस्मों की खासियत क्या है?
Wheat WH 1270- देश के उत्तर दक्षिण जोन में बीते साल गेंहू की डब्ल्यूएच 1270 किस्म को खेती के लिए अप्रूव्ड किया गया था. कहा जा रहा है कि गेहूं की इस किस्म से औसत उत्पादन प्रति हेक्टेयर करीब 76 क्विंटल तक होती है. जबकि उत्पादन क्षमता प्रति हैक्टेयर 91.5 क्विंटल है.
Oats OS 405- देश के सेंट्रल जोन के लिए जई की ओएस 405 किस्म एकदम उपयुक्त मानी जाती है. इसके दानों का उत्पादन प्रति हैक्टेयर 16.7 क्विंटल है जबकि इसके हरे चारे का उत्पादन प्रति हैक्टेयर 51.3 क्विंटल है.
Mustard RH 725- सरसों की आरएच 725 किस्म की फलियां अन्य सरसों की किस्मों के मुकाबले कुछ लंबी होती हैं, जिससे तेल की मात्रा ज्यादा निकलती है.