लोकसभा के मानसून सत्र में किसानों के हितों में तीन बिल (विधेयक) पारित किए गए हैं. कृषि से जुड़े इन तीन अहम विधेयकों पर राजनीति (Politics) शुरू हो गई है. इसलिए आइये जानते हैं कृषि सुधार बिल की क्या जरूरत है और जानते है कृषि सुधार बिल से पहले और बिल के बाद होने वाले लाभ को.
कृषि बिलो में संसोधन की आवश्यकता क्यों पड़ी (Why there was a need for amendment in Agricultural Bills)
देश में 90 के दशक में आर्थिक उदारीकरण (Economic liberalization) के बावजूद कृषि और संबन्धित अन्य क्षेत्रों में विकास की गति उस रफ्तार से नहीं बढ़ी, जिस रफ्तार से बढ़नी चाहिए थी और इससे कृषि क्षेत्र में असमानता देखने को मिली. एपीएमसी (मंडियों) में अधिक बाजार शुल्क और अपर्याप्त बाजार व्यवस्था से किसानों को मजबूरन मंडियों का रुख करना पड़ रहा है. ढ़ाचागत बाजार (Infrastructure market) और खाद्य भंडारण (Food storage) की कमी से देश जूझ रहा है. व्यापारियों को व्यापार करने के लिए लाइसेन्स की जरूरत होती है अतः इन क़ानूनों में लाइसेंस देने में प्रतिबंध (License restriction) को समाप्त किया है. किसानों को प्राप्त होने वाली जानकारी में अंतर और लोन लेने की कमी को इस बिल से दूर किया जा सकता है.
कृषि सुधार बिल से होने वाले लाभ (Benefits from Agricultural Reform Bill)
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इससे एकल एकीकृत बाजार (Single Integrated Market) विकसित होगा.
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किसान जिसे वे चाहते हैं और जहां वे चाहते हैं वहाँ अपनी उपज (Produce) बेचने की आजादी यह बिल देते है.
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कृषि उपज मंडी समिति (Agricultural Produce Market Committee) या उत्पादक संघो के एकाधिकार (Monopoly) को समाप्त करता है.
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न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर कोई प्रभाव नहीं क्योंकि यह किसानों के लिए सुरक्षा जाल के रूप में कार्य करता है.
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किसान अधिकारों की रक्षा करने वाले कानूनी ढांचे (Legal framework) का निर्माण करता है.
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यह बिल बाजार शुल्क, करों (Taxes) आदि में कमी और बेहतर कीमत निर्धारण करने को बढ़ावा देता है.
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इस कानून से खेतों के करीब बुनियादी ढांचे का विकास किया जा सकता है.
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अनुबंध खेती (Contract farming) से किसानों को उपज के उचित मूल्य का आश्वासन और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र (Food Processing Sector) को बढ़ावा देना इस बिल का उद्देश्य है.
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इससे छोटे और सीमांत किसानों (Small and marginal farmers) के लिए भी खेती लाभदायक हो सकती है.
कृषि सुधार बिल से पहले और बिल के बाद होने वाले तुलनात्मक फायदे (Comparative advantages before and after the Agricultural Reform Bill)
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पहले केवल कृषि उपज मंडी समिति (APMC) में अधिसूचित कृषि उपज (Notified agricultural produce) बेच सकते हैं मगर अब कृषि उपज मंडी समिति मंडी में बेचने या किसी अन्य विक्रेता (seller) को चुनने की स्वतंत्रता होगी.
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पहले व्यापारियों और बिचैलियों (Middlemen) की मोनोपोली थी मगर अब इस कानून से उपज बेचने के लिए कई विकल्प (Option) खुले हैं.
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पहले उपज को एक बार मंडी में लाने पर किसान को जो भी कीमत मिलती है उसे ही स्वीकार करना पड़ता है लेकिन अब किसान अपने खेत पर भी कीमत के लिए मोलभाव कर सकते हैं.
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कृषि सुधार बिल से पहले मंडी शुल्क, किसानों और उपभोक्ताओं द्वारा वहन किया जाने वाला कमीशन और अन्य शुल्क का भुगतान करना होता था लेकिन अब कोई फीस नहीं, कोई कमीशन नहीं, उत्पादकों (producers) और उपभोक्ताओं (Consumers) को लाभ पहुंचाने के लिए बड़ी बचत होगी.
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कृषि सुधार बिल से पहले कीमत में भिन्नता, असंगठित बाजार (Unorganized market), बिचैलियों की लंबी कतार हुआ करती थी मगर अब कोई दलाल नही होने से उपभोक्ता के भुगतान में उत्पादक का बड़ा हिस्सा मिलेगा.
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बिल से पहले कृषक युवाओं के लिए कृषि उत्पादों या वस्तुओं (Agricultural products or commodities) का व्यापार करने का कोई अवसर नहीं था लेकिन अब ग्रामीण कृषक युवाओं को व्यापार श्रृंखला (Business chain) चलाने का अवसर मिलेगा।
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बिचैलियों को दरकिनार कर उत्पाद सीधे उपभोक्ताओं को नहीं बेच सकते थे मगर अब बिचैलियों को छोड़कर अधिक मूल्य लेकर के किसी को भी उत्पाद सीधे बेच सकते हैं.
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कृषि उपज मंडी समिति (APMC) के बाहर फल और सब्जियां बेचने की स्वतंत्रता कई राज्यों में मौजूद थी मगर कुछ राज्य इससे बच गए थे लेकिन अब इस कानून से यह स्वतंत्रता सभी कृषि उपज और पूरे देश में लागू होगी.
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छोटे भूमि धारकों (Small land holders) के पास आदानों और निर्यात बाजारों (Inputs and Export Markets) में सौदेबाजी की क्षमता (Bargaining power) नहीं होती, अब किसान उत्पादक संगठन (Farmer Producer Organization), छोटे किसानों को बेहतर सौदेबाजी (Bargaining) के लिए संगठित करने में मदद यह बिल करता है.
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पहले अनुबंध खेती (Contact farming) कुछ बड़े व्यापारियों और नौकरशाही (Bureaucracy) के नियंत्रण में थी अब किसानों के अनुकूल शर्तों पर अनुबंध (Agreement on favourable conditions) किया जा सकेगा और किसानों को खरीदारों के साथ समझौतों (Agreement) के आधार पर पूर्व-निर्धारित कीमतें (Pre-determined prices) मिल सकती हैं.
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बिचैलियों की लंबी श्रृंखला और खराब संचालन के कारण निर्यात (Export) के क्षमता मेन कई हो रही है. मगर इस बिल के लागू होने से निर्यात प्रतिस्पर्धा (Export competition) बढ़ेगी और किसानों को लाभ होगा।
मिथक बनाम वास्तविकता (Myth vs reality)
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यह मिथक (भ्रम) पैदा किया जा रहा है कि कृषि सुधार कानून से किसानों को फायदा नहीं होगा लेकिन किसान अपने खरीदार चुन सकते हैं और अपने उत्पादो की कीमत तय कर सकते हैं.
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भ्रम है कि किसानों के लिए विवाद समाधान की कोई गुंजाइश नहीं है मगर ये अधिनियम स्थानीय उपजिलाधिकारी (Deputy Collector) के स्तर पर कम खर्च में समयबद्ध तरीके से विवाद के समाधान को बढ़ावा देता है.
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कुछ शंकाए ये भी है कि किसानों को समय पर भुगतान नहीं मिलेगा, मगर समझौते पर उसी दिन या तीन दिनों के भीतर किसानों को भुगतान (Payment) करना होगा.
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शंका यह है कि किसान संगठनों को फायदा नहीं होगा लेकिन सभी किसान संगठनों को “किसान” माना जाएगा और उन्हें भी उतना ही लाभ मिलेगा.
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यह मिथक बना हुआ है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price) जारी नहीं रहेगा लेकिन सरकार ने यह कहा है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पहले की तरह जारी रहेगा.
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सबसे बड़ा मुद्दा यह भी है कि अधिनियम से कॉर्पोरेटों द्वारा कृषि भूमि का अधिग्रहण होगा जाएगा लेकिन इस कानून में ऐसा कुछ नही लिखा है.
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किसानों की शंका है कि भारतीय खाद्य निगम (FCI) किसानों से खरीद बंद करेगा लेकिन भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India) अन्य सरकारी एजेंसियां पहले की तरह किसानों से खरीद जारी रखेंगी.
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कृषि उपज मंडी समिति या मंडियों के बाहर कृषि उत्पादों (Agriculture products) को बेचने के लिए किसानों को लाइसेंस की आवश्यकता होती है मगर इस बिल के आ जाने से किसान सबसे अधिक मूल्य देने वाले खरीदार को मंडियों के बाहर उपज बेच सकते हैं, वो भी बिना पंजीकरण (Registration) /लेनदेन शुल्क (Transaction fee) के.
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भविष्य में कृषि उपज मंडी समिति/मंडियों बंद हो जाएंगी लेकिन ऐसा नहीं है. मंडी व्यवस्था पहले की तरह जारी रहेगी.
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भ्रम यह है कि अधिनियम राज्य कृषि उपज मंडी समिति/मंडियों के अधिकारों (Rights) को प्रभावित करता है लेकिन यह अधिनियम (Act) कृषि उपज मंडी समिति/मंडियों के अधिकरों को कम नहीं करता है बल्कि यह मंडियों के बाहर अतिरिक्त व्यापार की अनुमति देता है.
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शंका यह है कि अधिनियम किसानों के भुगतान को सुरक्षित नहीं रखता है मगर सच यह है कि अधिनियम किसानों के हितों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त दिशा-निर्देश (guidelines) प्रदान करता है.