मिड-डे मील योजना स्कूलों में पढ रहे बच्चों के बेहतर पोषण के लिए तैयार की गई है. भारत की सभी ग्राम पंचायतों, ब्लॉक, नगर और राज्य में योजना का संचालन किया जा रहा है. इसके तहत सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों, सर्व शिक्षा अभियान के तहत समर्थित मदरसों, राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना स्कूलों में प्राथमिक और उच्च प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों के लिए रोज मध्याह्न भोजन की व्यवस्था करना है.
मिड-डे मील दुनिया की सबसे बड़ी खाद्य योजना है. यह योजना भारत सरकार द्वारा 15 अगस्त 1995 को शुरु की गई थी. सफलता मिलने पर वर्ष 2000 में इस योजना को पूरे देश में लागू कर दिया गया. मध्याह्न भोजन योजना का संचालन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा किया जाता है, राज्य सरकारें इसमें सहभागिता निभाती हैं.
मिड-डे मील योजना का इतिहास
देश के विद्यालयों में मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने का लंबा इतिहास रहा है. स्कूलों में छात्रों को भोजन कराने की योजना पहली बार वर्ष 1925 में ब्रिटिश सरकार द्वारा तमिलनाडु के प्राथमिक स्कूलों में शुरू की गई थी. बाद में फ्रांसीसी प्रशासन ने भी इस योजना को पुद्दुचेरी में शुरू किया.
आजादी के बाद स्कूलों में अधिक बच्चों को आकर्षित करने के लिए वर्ष 1962-63 में तमिलनाडु के तात्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा एक बार फिर इस योजना का संचालन राज्य में शुरू किया गया. योजना की सफलता के बाद गुजरात और केरल की सरकारों ने भी 1995 में अपने राज्य के स्कूलों में मध्याह्न भोजन की शुरुआत की. वर्ष 1990-91 के बीच अन्य बारह राज्य सरकारों ने भी इस योजना का अपने प्रांतों में क्रियान्वयन शुरू किया.
मिड-डे मील योजना का महत्व और उद्देश्य
योजना से सरकारी और सहायता प्राप्त विद्यालयों में छात्रों की भागीदारी बढ़ी है. कई बच्चे घर से बिना कुछ खाए घर से स्कूल आते थे. ऐसे छात्रों को योजना से लाभ मिला है. मिड डे मिल योजना का उद्देश्य बच्चों को निरंतर पोषाहार प्रदान करने की भुमिका अदा करती है.
विद्यालयों में यदि योजना का संचालन प्रभावी रूप से किया जाए तो बच्चों में कई प्रकार की अच्छी आदतें विकसित होती हैं. मसलन खाने से पहले और बाद में हाथों की सफाई करना. योजना के सहारे सामाजिक समानता को बढ़ावा दिया जाता है. इसमें अलग-अलग सामाजिक पृष्ठभूमि से आने वाले बच्चे एकजुट होकर भोजन करते हैं.
एमडीएम योजना का प्रमुख उद्देश्य देश के लगभग 10 लाख स्कूलों में 12 करोड़ छात्रों को पोषण से भरपूर आहार उपलब्ध कराना है. मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार इससे लगभग 26 लाख लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ है.
पोषाहार योजना के लिए चुनौतियां
मिड-डे मील में दिए जा रहे भोजन में कंकड़, विषाक्त रसायन, जहरीले जीव, खराब गुणवत्ता का भोजन की खबरें लगातार आती रहती हैं. यह योजना, अब तक की सबसे बढ़िया योजना साबित हो सकती थी अगर इसके क्रियान्वयन और खाद्य सामग्रियों की गुणवत्ता पर ध्यान दिया होता.
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की मिड-डे मील योजना पर तैयार रिपोर्ट के अनुसार, नौ राज्यों में खाद्य विभाग द्वारा लिए गए भोजन के सैंपल जांच के दौरान दोषपूर्ण मिले हैं. केवल दिल्ली में ही लिए गए 2012 नमूनों में से 1876 नमूने तय पोषण मानकों पर खरे नहीं उतर पाए.
ग्रामीण स्तर पर योजना की स्थितियां और दयनीय है. ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित विद्यालयों में न तो सही समय पर खाद्य सामग्री पहुंच पाती है और न ही स्कूल स्तर से सही समय पर इनका भुगतान हो पाता है. ग्राम प्रधान, स्कूल के प्रधानाध्यापक और रसोइए की तिकड़ी इस योजना को ग्राम स्तर पर ठीक से न लागू करने के लिए जिम्मेदार है.
जानकारों का यह भी कहना है कि सरकारी तंत्र मिड-डे मील का बजट इतना नहीं देता जिससे तय मानकों के अनुसार बच्चों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराया जा सके.
बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन योजना में ये आहार होना जरूरी
पोषक तत्व |
प्रा. विद्यालय (कक्षा 1 से 5) |
उ.प्र. विद्यालय(कक्षा 6 से 8)
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चावल/गेहूं |
100 ग्राम
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150 ग्राम |
दाल |
20 ग्राम |
30 ग्राम
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हरी सब्जियां |
50 ग्राम |
75 ग्राम
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तेल और वसा |
5 ग्राम |
7.5 ग्राम
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एमडीएम योजना से जुड़े ताजा घोटाले और विवाद
शिक्षक खा गया 11.46 करोड़ रुपये का मिड-डे मील: उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के एक शिक्षक ने मिड-डे मिल वितरण के लिए मिले 11.46 करोड़ रुपये का घोटाला कर दिया. जांच में पाया गया कि इस घोटाले में बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी और बैंक अधिकारी की मिलीभगत थी.
मध्य प्रदेश में मीड-डे मील खाने से बच्चे 50 से अधिक बच्चे बीमार: राज्य के बालाघाट जिले में एक विद्यालय में मिड-डे मिल खाने से 50 बच्चों को फूड प्वाइजनिंग हो गई. मौके पर पहुंची एडीएम कामिनी ठाकुर ने कार्रवाई का आश्वासन दिया है.
अयोध्या में बच्चों को परोसा चावल के साथ नमक:उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले के बीकापुर प्राथमिक विद्यालय में चावल के साथ नमक खाते बच्चों का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. आनन फानन में बेसिक शिक्षा विभाग ने प्रधानाध्यापक पर कार्रवाई करते हुए उसे सस्पेंड कर दिया.
बैतुल के बच्चों को थाली में मिलीं इल्लियां और घुन: मध्य प्रदेश के बैतुल जिले के एक सरकारी स्कूल के एमडीएम में जिंदा इल्लियां और घुन मिलने से हड़कंप मच गया. खबर मिलने पर जब शिक्षा विभाग के अधिकारी पहुंचे तो वहां शिक्षकों और स्वयं सहायता समूह का दंगल जारी था.
मिड-डे मील योजना की आलोचनाएं
एमडीएम का सबसे बड़ी योजना का तमगा हासिल करने के बावजूद राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय संस्थाएं भारत में कुपोषण की समस्या पर रिपोर्ट प्रस्तुत करती रहती हैं. ग्लोबल हंगर इंडेक्स के मुताबिक देश के बच्चों में कुपोषण एक बड़ी समस्या बन रही है. रिपोर्ट में दिए गए आंकड़ों के अनुसार 5 साल के कम उम्र के 42.5 फीसदी बच्चों का वजन सामान्य से कम पाया गया है.
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अंतर राष्ट्रीय संस्था के मुताबिक भारत दुनिया की सबसे बड़ी खाद्य असुरक्षा वाली आबादी का घर है. अधिकांश राज्यों में कुपोषण से लड़ने के लिए प्रभावी योजनाओं का अभाव है. देश में रोज 20 करोड़ लोग भूखे पेट सोते हैं.
योजना पर विशेषज्ञों की राय
तमाम समस्याओं के बावजूद इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मिड-डे मील योजना ने आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग के बच्चों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है. हालांकि योजना के कार्यान्वयन को लेकर तंत्र अगर प्रभावी रूप से कार्य करेगा तो योजना से जुड़े घोटलों और विवादास्पद खबरों की संख्या में कमी आएगी.