बचपन से लेकर बड़े होने तक हमने अक्सर देखा है कि जब हम कभी गिर जाते थे, तो मामूली खरोंच या फिर चोट लगने पर मुंह की थूक को चोट या खरोंच पर लगाने से चोट से थोड़ी राहत मिल जाया करती थी. हालांकि, हमें अपने इस्तेमाल करने वाली वस्तुओं जैसे कि अपना मोबाइल, हाथ घड़ी या फिर कोई ऐसी चीज़ जो दैनिक जीवन में हम इस्तेमाल करते हैं, कभी उसमें कोई खराबी आ जाये, तो मोबाइल ठीक करने वाले के पास जाना पड़ता है या घड़ी की मरम्मत करने वाले दुकान पर जाना पड़ता है. ऐसे में मन में विचार आता है कि क्या कभी ऐसा हो सकता है कि मोबाइल कि खराबी या घड़ी की खराबी अपने आप ठीक हो जाए?? जी हां, यह अब संभव हो पा रहा है....
गौरतलब है कि दैनिक जीवन में उपयोग किए जाने वाले उपकरण अक्सर यांत्रिक क्षति के कारण खराब हो जाते हैं, जिससे उपयोगकर्ताओं को या तो उन्हें सुधारने या बदलने के लिए मजबूर होना पड़ता है. इससे उपकरण का जीवन कम हो जाता है और रखरखाव की लागत भी बढ़ जाती है.
यांत्रिक क्षति होती है स्वायत्त मरम्मत
इन्हीं सभी बताओं के मद्देनजर जहाँ मानवीय हस्तक्षेप संभव नहीं है, खराबी को ठीक कर बहाली के लिए, ऐसे कई मामलों में अंतरिक्ष यान की तरह, जिसमें केवल अंतरिक्ष यात्री होता है, में ऐसी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, कोलकत्ता स्थित भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान के शोधकर्ताओं ने आईआईटी खड़गपुर के सहयोग से पीजोइलेक्ट्रिक आणविक क्रिस्टल विकसित किया है जो बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप की आवश्यकता के यांत्रिक क्षति से खुद को ठीक करता है.
इन आणविक ठोसों में, यांत्रिक प्रभाव पर विद्युत आवेश उत्पन्न करने की अनूठी संपत्ति के कारण, टूटे हुए टुकड़े दरार जंक्शन पर विद्युत आवेश प्राप्त करते हैं, जिससे क्षतिग्रस्त भागों द्वारा आकर्षण और सटीक स्वायत्त मरम्मत होती है.
ऐसा माना गया है कि बाइपीराजोल कार्बनिक क्रिस्टल, वैज्ञानिकों द्वारा विकसित पीजोइलेक्ट्रिक अणु बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के यांत्रिक फ्रैक्चर के बाद पुनर्संयोजन करते हैं, क्रिस्टलोग्राफिक परिशुद्धता के साथ मिली सेकंड में स्वायत्त रूप से स्व-उपचार करते हैं.
डीएसटी द्वारा सीएम रेड्डी को अपनी स्वर्णजयंती फैलोशिप और साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड (एसईआरबी) अनुदान के माध्यम से समर्थित यह शोध हाल ही में ‘साइंस’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.
इस प्रक्रिया को शुरू में आईआईएसईआर कोलकाता टीम द्वारा प्रोफेसर सी मल्ला रेड्डी के नेतृत्व में विकसित किया गया था, जिन्हें विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा स्वर्णजयंती फेलोशिप (2015) मिली थी. आईआईएसईआर कोलकाता के प्रो. निर्माल्य घोष, जो ऑप्टिकल पोलराइजेशन में सोसाइटी ऑफ फोटो-ऑप्टिकल इंस्ट्रुमेंटेशन इंजीनियर्स (एसपीआईई) जी.जी. स्टोक्स अवॉर्ड 2021 के विजेता हैं, ने पीजोइलेक्ट्रिक ऑर्गेनिक क्रिस्टल की उत्कृष्टता को जांचने और मापने के लिये विशेष रूप से तैयार अत्याधुनिक पोलराईजेशन माइक्रोस्कोपिक सिस्टम का उपयोग किया. अणुओं या आयनों की पूर्ण आंतरिक व्यवस्था वाले इन पदार्थों को 'क्रिस्टल' कहा जाता है, जो प्रकृति में प्रचुर मात्रा में होते हैं.